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राजस्थान चुनाव: जाति-गोत्र के बीच किसका बनेगा सत्ता का जोग, ये भी जानें कि क्या कहता है सट्टा बाज़ार

कांग्रेस में कौन बनेगा मुख्यमत्री का खेल चल रहा है. कांग्रेस जीत के प्रति इस कदर आश्वस्त है कि अभी से मंत्रीमंडल तक बन गया है और बस शपथ लेनी बाकी है. वैसे ये सब तो तब होगा जब जीत हासिल होगी. फलौदी के सटोरिए भी आखिरी दौर को लेकर चुप हैं. हालांकि करीब चार हजार किलोमीटर घूमने के बाद बदलाव के साफ संकेत मिलते हैं.

जोधपुर से जैसलमेर जाते समय बीच में एक कस्बा आता है फलौदी. यहां के लोगों के अनुसार 80 फीसद लोग सट्टा खेलते हैं. यहां का सट्टा बड़ा सटीक होता है और कहा जाता है कि चुनावों के भाव तो यहीं से खुलते हैं. यहां यह भी कहा जाता है कि जो सट्टा अच्छा खेलता है उसका ब्याह संपन्न घर में हो जाता है. हम गांधी चौक पहुंचे तो वहां भीड़ ही भीड़ थी. उस दिन का भाव खुला था- कांग्रेस की सीटें 125-127 और बीजेपी की 56-58.

चुनावों के समय से इसे सैशन कहते हैं जो 24 घंटों तक रहता है. गौर करने वाली बात है कि कांग्रेस में टिकट वितरण के बाद हमारा फलौदी जाना हुआ था और सटोरियों का कहना था कि बागीयों के कारण कांग्रेस को घाटा हो सकता है और उसकी सीटें घटकर 115 तक हो सकती हैं, उधर बीजेपी 65 पार कर सकती है. कुल मिलाकर फलौदी का सट्टा बाजार राजस्थान में चुनावों की सारी कहानी बयान करता है.

तीन महीने पहले यहीं का सट्टा बाजार कांग्रेस को 140 के पार पहुंचा रहा था और बीजेपी 50 पार करने में भी हांफती नजर आ रही थी. लेकिन तीन महीनों में ही सियासी खेल में बदलाव आया है. मतदान का दिन यानी सात दिंसबर आते आते क्या खेल पलट भी सकता है. इस सवाल का जवाब देने से यहां के लोग हिचकते हैं लेकिन फलोदी से निकलते समय दिमाग में यही सवाल तैर रहा था कि क्या अंतिम ओवरों में बीजेपी के बड़े नेता संभावित हार के जबड़े से छीन कर जीत में बदल सकते हैं.

ऐसा इसलिए कि लोग कहते हैं कि कांग्रेस ने पहले मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित नहीं करके गलती की और टिकट वितरण में गुटबाजी, धड़ेबाजी, खेमेबाजी खुलकर सामने आई. यहां धड़ेबाजी का मतलब अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की सियासी जंग से है. अशोक गहलोत दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. इस समय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी और महासचिव हैं. उधर सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा रहे हैं. इस पर बात करने से पहले चलते हैं.

पोकरण एक सोता हुआ खदबदाता हुआ कस्बा है जिसे 1974 और 1998 के परमाणु परीक्षण से पहचान मिली. यहां अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर डॉ कलाम को चमचम की मिठाई खिलाने का दावा करने वाले एक दुकानदार ने कहा कि बीजेपी वापस लड़ाई में आ गयी है हालांकि उनके हिसाब से कांग्रेस को जीतना चाहिए और उनके मारवाड़ का होने के नाते गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनना चाहिये.

पोकरण में इस बार दो मठाधीशों के बीच दिलचस्प मुकाबला हो रहा है. कांग्रेस की तरफ से पीर पगारों गद्दी के सालेर मोहम्मद हैं जिनके पिता गाजी फकीर की किसी वक्त यहां तूती बोलती थी. बीजेपी ने तारातर मठ के महंत प्रतापपुरी को मैदान में उतारा है. योगी यहां भाषण दे चुके हैं और हमारे पार बजरंग बली उनके पास अली जैसा बयान दिया जा चुका है. कुल मिलाकर हिंदू मुस्लिम का खेल बनाने की कोशिश उस पोकरण में हो रही है जहां से सटा रामदेवरा मंदिर है. वहां के बाबा रामदेव पीर भी कहे जाते हैं. कहा जाता है कि मक्का मदीना से आए पांच पीरों ने बाबा रामदेव की धार्मिक परीक्षा ली थी और कहा था हम तो पीर हैं लेकिन बाबा रामदेव ने पांच-पांच पीरों को पछाड़ दिया लिहाजा वह तो पीरों के पीर हैं. हिंदु मुस्लिम एकता की मिसाल है रामदेवरा.

पोकरण में ही खेतोलाई गांव आता है. यह गांव अंतिम गांव है जहां नागरिक जा सकते हैं उसके बाद सेना का इलाका शुरू हो जाता है जहां दो दो परमाणु परीक्षण हुए. दोनों बार यहां के लोगों को गांव खाली करना पड़ा, रेडिएशन झेलना पड़ा, पशुओं तक को इसकी मार पड़ी. गांववाले कहते हैं कि उस समय कैंसर केन्द्र खोलने जैसे वायदे हुए थे लेकिन वक्त के साथ हरकोई उन्हें भूल गया. खेतोलाई में लोग गाय पालते हैं. छोटे से गांव में 6000 से ज्यादा गाय होने का दावा किया गया.

लोगों का कहना है कि देश में वसुंधरा राजे सरकार एकमात्र ऐसी सरकार है जिसने अलग से गौ मंत्रालय खोला लेकिन यहां गायें पानी और चारे के अभाव ने तड़प रही हैं. हालांकि जोधपुर से जैसलमेर के बीच बहुत सी गौशालाएं दिखती हैं जहां लोग हरा चारा गौ भक्तों को बेचते हैं. उनकी जीविका चल जाती है और गौ भक्त भी संसारिक वैतरणी पार करने के अहसास से गुजरते हैं.

गाय राजस्थान में बड़ा मुद्दा है. लोगों की आर्थिक हालत खेती और गाय के दूध से चलती और संभलती रही है लेकिन गांववालों का कहना है कि गोरक्षकों के नाम पर हो रही ज्यादती के कारण बुरे दिन देख रहे हैं. पहले दूध देना बंद करने वाली गाय बेच दी जाती थी और कुछ पैसे मिलाकर अच्छी नस्ल की नई गाय खरीद ली जाती थी. जिस साल अकाल पड़ता उस साल गाय का दूध बेचकर गुजारा हो जाता था लेकिन अब नकारा गाय बेचने में दिक्कतें आती हैं और नई गाय खरीद कर लाना भी मुश्किल होता जा रहा है.

ऐसे में या तो गाय को मुफ्त का चारा खिलाओ (ऐसा गांव वाले कहते हैं जिनके लिए गाय रोजगार का जरिया है) या फिर आवारा छोड़ दो. ऐसी आवारा गाय खेती नष्ट करती हैं, सड़क पर पॉलीथीन खाती हैं, हाईवे पर तेज रफ्तर से आ रहे ट्रकों का शिकार होती हैं. गांववालों का कहना है कि तीन-तीन चार-चार लाख रुपये खर्च कर खेतों की फेंसिंग करवानी पड़ रही है. यह तब हो रहा है जब प्याज दो से चार रुपए में बिक रहा है.

आमतौर पर लोग वसुंधरा सरकार से नाराज दिखते हैं. ऐसा नहीं है कि वसुंधरा सरकार ने खराब काम किया है लेकिन एक छवि ऐसी बन गयी हैं कि लोग राशन से लेकर पेंशन खा जाने का आरोप लगाते हैं. राशन के लिए पीओएस मशीनें लगाई गई हैं. देखा गया कि अंगुलियों की छाप की पहचान मशीन नहीं कर पाती या नेट कनेक्शन में गड़बड़ी होने पर राशन नहीं मिल पाता तो लोग सरकार को गलियाते.

एक सर्वे बताता है कि पिछले साल तक ऐसे 20 लाख लोगों को हर महीने राशन से महरूम रहना पड़ता था जिनकी उंगलियों की छाप किसी भी कारण से मशीन से मिलान नहीं होता है. हालांकि, एक साल में काफी तब्दीली आई है. लेकिन छवि पुरानी ही बनी हुई है. इसका खामियाजा बीजेपी को उस राज्य में उठाना पड़ सकता जहां वैसे भी हर पांच साल बाद सरकार बदलने की परंपरा पिछले बीस सालों से रही है.

उधर कांग्रेस में कौन बनेगा मुख्यमत्री का खेल चल रहा है. कांग्रेस जीत के प्रति इस कदर आश्वस्त है कि अभी से मंत्रीमंडल तक बन गया है और बस शपथ लेनी बाकी है. ऐसा कुछ कहा जा रहा है कि अगर कांग्रेस 105-110 के आसपास सिमटी तो अशोक गहलोत और अगर सवा सौ पार गयी तो सचिन मुख्यमंत्री होंगे. कुछ कह रहे हैं मुख्यमंत्री तो गहलोत ही होंगे जो लोकसभा चुनाव आने पर सचिन को कमान सौंप दिल्ली चले जाएंगे.

वैसे ये सब तो तब होगा जब जीत हासिल होगी. फलौदी के सटोरिए भी आखिरी दौर को लेकर चुप हैं. हालांकि करीब चार हजार किलोमीटर घूमने के बाद बदलाव के साफ संकेत मिलते हैं.

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