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लोकसभा चुनाव परिणाम 2024

UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
00
OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
00
OTH
DELHI (07)
07
NDA
00
INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

किसान आंदोलन की राजनीतिक मार, बीजेपी को सता रहा नुकसान का डर

पंजाब में म्युनिसिपल कारपोरेशन के चुनावों में बीजेपी की हार हुई है. जानकारों का कहना है कि पश्चिमी यूपी, हरियाणा और राजस्थान में जाट वोटों की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ सकती है. यूपी में जिला पंचायतों के चुनाव होने को हैं.

किसान आंदोलन के सियासी नफा नुकसान का डर बीजेपी को सताने लगा है. पंजाब में म्युनिसिपल कारपोरेशन के चुनावों में बीजेपी की हार हुई है. जानकारों का कहना है कि पश्चिमी यूपी, हरियाणा और राजस्थान में जाट वोटों की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ सकती है. यूपी में जिला पंचायतों के चुनाव होने को हैं.

पश्चिमी यूपी में जिला पंचायतों की संख्या 26 है इसमें से बीजेपी ने पिछली बार 25 पर कब्जा किया था. इन 26 में से 18 जिला पंचायतों में जाटों का खासा असर है. राजस्थान में चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. कांग्रेस किसानों की तीन कानूनों को वापस लेने की मांग को बड़ा मुद्दा बनाने जा रही है. अगले साल यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं. बीजेपी को लगने लगा है कि किसान आंदोलन लंबा खिंचने वाला है और जितना लंबा खिंचेगा उतनी ही ज्यादा नुकसान बीजेपी को हो सकता है.

पश्चिमी यूपी की 18 लोकसभा सीटों पर जाटों का दखल है

हाल ही में बीजेपी के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की बैठक दिल्ली में हुई. आमतौर पर ऐसी बैठकों में प्रधानमंत्री नहीं जाते हैं लेकिन इस बार वह भी मौजूद थे. वहां जानकारों के अनुसार किसान आंदोलन का तोड़ निकाले जाने पर गंभीर चर्चा हुई. जाट बहुल इलाकों में तो जाट नेताओं के जाने पर ही परेशानी आ रही है. यह बात भी बैठक में कहने की कोशिश की गई. तो कुल मिलाकर बीजेपी इसका तोड़ निकालने के लिए जुट गयी है.

राजस्थान की विधानसभा के 200 विधायकों में से 35 से चालीस जाट विधायक आमतौर पर चुने जाते हैं. इसी तरह लोकसभा की 25 सीटों में से सात से आठ पर जाट वोटों का असर है. पश्चिमी यूपी की 18 लोकसभा सीटों पर जाटों का दखल है. यहां कहा जाता है कि सौ से ज्यादा विधानसभा सीटों पर जाट वोटों का असर है. हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से चालीस जाट वोटरों के प्रभाव में आती हैं.

लोकसभा की सभी दस सीटों पर जाट अपना दम खम दिखाते हैं. दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से दस सीटें जाट सीटें कहलाती है. कम से कम दो लोकसभा सीटों पर भी जाट अपना दम खम दिखाते हैं. तो कुल मिलाकर पश्चिमी यूपी, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली को अखबारी भाषा में जाटलैंड कहा जाता है. इस जाटलैंड या जाट पटटी में चालीस लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां जाट वोटों के बगैर सीट निकालना मुश्किल है. 2019 में इन 40 सीटों में से बीजेपी ने तीस से ज्यादा सीटें जीती थी. ऐसे में किसान आंदोलन के चलते बीजेपी को जाट वोट खोने का डर सताने लगा है.

हरियाणा के जाट ओबीसी में शामिल नहीं किये गये थे

दिलचस्प तथ्य है कि बीस साल पहले जाट कांग्रेस के समर्थक माने जाते थे या फिर हरियाणा में बंसीलाल देवीलाल के और पश्चिमी यूपी में चौधरी चरण सिंह, बाद में उनके बेटे छोटे चौधरी अजित सिंह को वोट देते रहे थे. लेकिन 1999 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने पासा पलट दिया. तब तत्त्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जाटों को ओबीसी अन्य पिछड़ी जाति में शामिल करने की बड़ी घोषणा की थी.

तब राजस्थान के सीकर में अटल बिहारी वाजपेयी ने घोषणा की थी. उस समय राजस्थान में जाट ओबीसी में शामिल होने के लिए आंदोलन कर रहे थे. वाजपेयी ने जाटों को केन्द्र की ओबीसी सूची में डाला तो धीरे-धीरे राजस्थान यूपी और दिल्ली में भी राज्य सरकारों ने इसका अनुसरण करते हुए राज्यों की सूची में शामिल कर लिया. यहां हरियाणा के जाट ओबीसी में शामिल नहीं किये गये थे. वो दिन था कि जाट बीजेपी के मुरीद हो गये.

जाटों ने कांग्रेस का साथ छोड़ा और कमल पर बटन दबाना शुरु कर दिया . लेकिन अब लंबा खिचं रहा किसान आंदोलन बीजेपी नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें खींच रहा है. बीजेपी को सबसे ज्यादा चिंता यूपी की है जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. उससे पहले पंचायत चुनाव होने हैं. गाजीपुर बार्डर पर बैठे किसानों में से करीब करीब सभी पश्चिमी यूपी के हैं. इस जाट वोट बैंक को लुभाने के लिए राकेश टिकैत, अजित सिंह, उनके बेटे जयंत चौधरी और यहां तक कि प्रियंका गांधी भी सक्रिय हो गयी हैं. कोई खाप पंचायत कर रहा है तो कोई किसान सम्मेलन.

बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनावों में 37 सीटें जीती थी

इन खाप पंचायतों और किसान सम्मेलनों में उमड़ रही भीड़ बीजेपी को चिंता में डाल रही है. पश्चिमी यूपी की 44 विधानसभा सीटें तो शुदद रुप से जाट सीटें कहलाती हैं. इन 44 सीटों में से बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनावों में 37 सीटें जीती थी. इसी तरह लोकसभा की 9 जाट सीटों में से सात पर कब्जा किया था. 2014 के लोकसभा चुनावों में तो सभी नौ सीटें जीती थी. कुल मिलाकर बीजेपी को 75 से लेकर 90 फीसद तक जाटों ने वोट दिया था.

2019 के लोकसभा चुनावों में पूरे यूपी में बीजेपी को 51 फीसद वोट मिले थे लेकिन पश्चचिमी यूपी की जाट सीटों पर 52 फीसद वोट मिला था. इसी तरह विधानसभा चुनावों में बीजेपी को पूरे यूपी में 41 फीसद वोट मिले थे लेकिन पश्चिमी यूपी की 120 सीटों पर करीब 44 फीसद  वोट मिला था. जाहिर है कि बीजेपी को जाटों का वोट भी मिला और प्यार भी.

लेकिन क्या ये सिलसिला आगे भी बना रहेगा .हाल ही में बीजेपी के रणनीतिकार अमित शाह और अध्यक्ष जे पी नडडा ने जाट नेताओं की बैठक बुलाई. इसमें नाराज  जाट वोटरों तक पहूंचने की रणनीति बनाई गयी. पश्चिचमी यूपी में मौटे तौर पर गन्ना उत्पादक किसान हैं जिनका करोड़ो रुपया चीनी मिल मालिकों पर बकाया है. पिछले साल सिंतबर में ये दस हजार करोड था जो अब बढकर 13 हजार करोड़ को पार कर गया है. पता चला है कि बीजेपी दो मोर्चों पर एक साथ काम करेगी. मोदी सरकार में पशुपालन राज्य मंत्री संजीव बालियान का कहना है कि खाप नेताओं से बीजेपी के जाट नेता मिलेंगे और उन्हें तीन कृषि कानूनों के बारे में बताएंगे कि कैसे ये कानून किसानों की जिंदगी बदल कर रख देंगे. दो, गन्ना किसानों को उनका रुका हुआ पैसा जल्द से जल्द दिलाने की कोशिश की जाएगी.

देश में करीब साढे़ तीन करोड़ किसान हैं

बीजेपी नेताओं का कहना है मायावती और अखिलेश यादव सरकारों के कुल दस सालों में गन्ना किसानों को एक लाख 47 हजार करोड़ रुपए दिए गये थे जबकि योगी सरकार ने अपने पौने चार साल के कार्यकाल में ही सवा लाख करोड़ रुपए किसानों को चीनी मिल मालिकों से दिलवाएं हैं. बीजेपी को लगता है कि बकाया भुगतान से जाट मान जाएंगे.

देश में करीब साढे़ तीन करोड़ किसान हैं. इनमें से सबसे ज्यादा राजस्थान में हैं. एक करोड़ दस लाख के आसपास. राजस्थान में लोकसभा की हर तीसरी सीट और विधानसभा की हर पांचवी सीट पर जाट वोट असर रखते हैं. राजस्थान में कभी नाथूराम मिर्धा, कभी परसराम मदेरणा, कभी बलराम जाखड़, कभी शीश राम ओला जैसे दिग्गज जाट नेता कांग्रेस में हुआ करते थे और कांग्रेस को भरपूर जाट वोट मिलता था. लेकिन पिछले बीस सालों में जाट बीजेपी की तरफ शिफ्ट हुए हैं. राजस्थान हरियाणा बार्डर पर शाहजहांपुर में बैठे किसानों की नाराजगी अब साफ दिखाई दे रही है.

नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल ने तो एनडीए का साथ ही छोड़ दिया है. उनकी पार्टी आरएलपी का नागौर और बाड़मेर में अछ्छा असर बताया जाता है. बेनीवाल अब किसान पंचायतें कर रहे हैं. उधर किसानों की नाराजगी का सियासी लाभ उठाने के लिए राहूल गांधी हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, अजमेर और नागौर जिलों में किसान सम्मेलन कर चुके हैं. सचिन पायलट किसान सम्मेलन कर रहे हैं. राहूल गांधी समझ रहे हैं कि राजस्थान में जाटों में सेंध लगाने का इससे बेहतर मौका मिलने वाला नहीं है. वो किसी रैली में खाट पर बैठे, किसी रैली में ट्रैक्टर चलाया, एक रैली तो ट्रैक्टर रैली के अंदाज में की गयी जहां मंच भी चार टैक्टर ट्राली जोड़ कर बनाया गया था.

जाट पावर पालिटिक्स में यकीन रखते हैं

यानि किसानों यानि जाटों को लुभाने में कोई कौर कसर नहीं छोड़ी जा रही है.  राहुल भाषण की  पिछले लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने राजस्थान की सभी 25 सीटें लगातार दूसरी बार जीती थी. इनमें जाहिर है कि सभी जाट बहुल सीटें भी शामिल हैं. राजस्थान में आमतौर पर राजपूत और जाट एक साथ वोट नहीं करते हैं लेकिन राष्ट्वाद यानि जय जवान के नाम पर दोनों एक हुए जो अब जय किसान के नाम पर छिटक भी सकते हैं.

लोकसभा चुनावों में हरियाणा में बीजेपी को 59 फीसद वोट मिले थे जो विधानसभा चुनावों में घटकर 37 फीसद ही रह गई. इसकी वजह जाटों की नाराजगी रही जो ओबीसी में आरक्षण नहीं मिलने से गुस्सा थे. यहां तक कि खटटर सरकार को बहुमत के लिए जजपा के दुष्यंत चौटाला के दस विधायकों का समर्थन लेना पड़ा. बीजेपी को डर है कि किसानों की नाराजगी बनी रही तो उसे हरियाणा में विधानसभा चुनावों के साथ-साथ लोकसभा चुनावों में भी नुकसान उठाना पड़ सकता है. कहा जाता है कि जाट पावर पालिटिक्स में यकीन रखते हैं. लेकिन मोदी सरकार में एक भी कैबिनेट स्तर का जाट मंत्री नहीं है. दोनों राज्य मंत्री हैं. संजीव बालियान और कैलाश चौधरी . जानकारों का कहना है कि जाटों का प्रतिनिधित्व बढाने की जरुरत है.

जानकारों का कहना है कि अगले चुनावों में भी जरुरी नहीं है कि राजस्थान और हरियाणा में  राष्ट्वाद के नाम पर भी जाटों को एक किया जा सके . इसी तरह पश्चिमी यूपी में मुज्जफरनगर दंगों के नाम पर जाट बनाम मुस्लिम का ध्रुवीकरण भी संभव नहीं है. ऐसे में किसान आंदोलन जितना लंबा खिंचेगा उतना ही चुनावी नुकसान होने की आशंका बनी रहेगी . जरुरत है कोई बीच का रास्ता निकालने की .  कुल मिलाकर जाट राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक रुप से प्रभावशाली रहे हैं . लेकिन पिछले दस सालों में रसूख कम हुआ है . ऐसे में जाट किसान आंदोलन की सफलता में रसूख की वापसी देख रहे हैं . जाहिर है कि इसकी राह में जो आएगा उसके खिलाफ जाटों को जानी ही होगा . बीजेपी भी इसे समझ रही है इसलिए गंभीरता से भी ले रही है .

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस किताब समीक्षा से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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