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'अनाड़ियों' के हाथो में 'माइक' थमाने से क्यों मजा आता है इस नई बीजेपी को?

जनसंघ के अघ्यक्ष रहे बलराज मधोक के जिस 'दीपक' को साल 1980 में  अटल बिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी ने बीजेपी यानी 'कमल' में बदलने का जो फैसला लिया था,वो बेहद दूरदर्शिता वाला होने के साथ ही केंद्र की सत्ता में आने की एक अहम सीढ़ी भी था. लेकिन बीजेपी के इन दोनों युग पुरुषों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि इस पार्टी मे कभी ऐसे अनाड़ी लोगों को भी प्रवक्ता बना दिया जायेगा जिन्हें इस देश के इतिहास,भूगोल, धार्मिक संस्कृति और गंगा-जमुनी तहज़ीब के बारे में जरा भी ज्ञान न होगा औऱ ऐसे लोग दुनिया में हमें इतना शर्मिंदा कर देंगे कि सरकार की हालत माफ़ी मांगने वाली हो जाएगी.

वाजपेयी जी तो दुनिया से विदा हो गए लेकिन बीजेपी के दूसरे बड़े संस्थापक आडवाणीजी न्यूज चैनलो पर आने वाली ये खबरें देखकर अपना माथा जरुर पीट रहे होंगे कि हमारे परिश्रम से सींची गई इस पार्टी की आखिर क्या गत बना दी गई है.

पिछले 42 साल के बीजेपी के इतिहास में ये पहला मौका है,जब पार्टी को अपनी एक प्रवक्ता नुपुर शर्मा को सस्पेंड करना पड़ा और दिल्ली बीजेपी के मीडिया प्रमुख कहलाने वाले नवीन कुमार को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से बर्खास्त करना पड़ा.खुद बीजेपी के नेता ही कहते रहे हैं कि इस नवीन में ऐसा क्या अजूबा है कि सरकार ने उसे  सिक्योरिटी भी दे रखी है ,जिसके अनुचित इस्तेमाल की खबरें आलाकमान तक भी पहुंचाई जा चुकी हैं.लेकिन कहते हैं कि सियासत में पाप का घड़ा भरने में देर तो लगती है लेकिन उसे फूटने में चंद सेकंड भी नहीं लगते.

लेकिन आप जरा सोचिये कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश पर राज करने वाली पार्टी के इन दोनों अनाड़ी प्रवक्ताओं की जुबान से मोहम्मद पैगम्बर साहब के लिए ऐसे अल्फ़ाज़ निकले हैं ,जिसने न सिर्फ तमाम इस्लामिक जगत को हिलाकर रख दिया है ,बल्कि उन्होंने तो भारत से अपने संबंध तोड़ने तक की पेशकश भी कर दी है.इन दोनों  के मूर्खता भरे बयानों से पैदा हुए संकट को संभालने के लिए भारत सरकार के विदेश मंत्रालय को मैदान में कूदना पड़ा,ताकि चीजें हाथ से बाहर न निकल जाएं.

साल 1996 मे बनी 13 दिनों वाली सरकार को अगर छोड़ भी दें, तो साल 1998 से लेकर 2004 तक केंद्र की सत्ता में रही वाजपेयी सरकार के दौरान भी बीजेपी के किसी भी प्रवक्ता की इतनी हिमाकत नहीं थी कि वह इतना महत्वाकांक्षी बन जाये कि पार्टी और सरकार की लाइन से बाहर निकलकर और ऐसे बड़बोले बयान देकर पार्टी और सरकार को शर्मिंदगी झेलने की हालत में ले आये.

लेकिन खुद आरएसएस के ही कुछ आला पदाधिकारी कहते हैं कि "ये नए दौर की बीजेपी है,जहाँ किसी की दी हुई सलाह को मानने  से अधिक अपनी इच्छा और अपने नामों को उस पद पर बैठाने की चाहत है,जो उस पर बैठने की न तो योग्यता रखता है और न ही उसके मुहल्ले में ही लोग उसे सम्मान की दृष्टि से देखते हैं.जाहिर है कि जब ऐसे निर्णय लिये जाएंगे, तो ऐसे अपरिपक्व लोगों के कारण पूरी पार्टी और सरकार को शर्मिंदगी का सामना करना ही पड़ेगा.वही इस मामले में भी हुआ,जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.लेकिन अब बीजेपी को गंभीरता से सोचना होगा कि वह अपना 'माइक' किन हाथों में दे रही है."

लेकिन सच तो ये है कि राजनीति के प्राइमरी स्कूल में भर्ती होकर रातोंरात यूनिवर्सिटी पर कब्जा जमाने का सपना देखने वाले इन दोनों के आपत्तिजनक बयानों ने बीजेपी और मोदी सरकार को उस मुकाम तक पहुंचा दिया,जिसकी निंदा दुनियाभर में हो रही है. कतर के विदेश मंत्रालय ने रविवार को भारतीय राजदूत दीपक मित्तल को तलब किया और उन्हें एक आधिकारिक नोट सौंपा, जिसमें पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ बीजेपी नेताओं नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल द्वारा की गई विवादास्पद टिप्पणियों पर निराशापूर्ण अस्वीकृति और निंदा व्यक्त की गई. लेकिन भारतीय राजदूत को कतर के विदेश मंत्रालय को  ये सफ़ाई देनी पड़ी कि वे ट्वीट भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शाते हैं. भारत सरकार सभी धर्मों को सर्वोच्च सम्मान देता है.

आप सोचिये कि एक पिद्दी बराबर देश को भारत के राजदूत को ये समझाना पड़े कि इन दोनों अनाड़ी प्रवक्ताओं से भारत सरकार का सीधा कोई वास्ता नहीं है,तो इससे बड़ी बेइज्जती हमारे लिए और क्या हो सकती है.भारतीय राजदूत को कतर विदेश मंत्रालय को ये बताने के साथ समझाना भी पडा कि  “ट्वीट ... फ्रिंज तत्वों के विचार हैं." उन्होंने यह भी बताया कि अपमानजनक टिप्पणी करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा चुकी है. हालांकि बाद में विवादस्पद बयान देने वाले दोनों बीजेपी नेताओं के निलंबन का कतर ने स्वागत किया.

पुराने जमाने में सुनार कहा करता था कि छह दिन तो मेरे हैं लेकिन सातवां दिन तो लौहार का ही  होगा.लेकिन आजकल के नेताओ को इसकी आवाज सुनने की फुरसत ही नहीं है.लेकिन लगता है कि इन दो मूर्खता वाले बयानों के बाद बीजेपी को जिस 'बैकफुट' पर आना पड़ा,वो इसके इतिहास का सबसे खतरनाक मोड़ साबित हो सकता है. शायद इसीलिए संघ के चंद पदाधिकारी सही कहते  हैं कि क्या आपने पिछले 42 सालों में ऐसा बयान देखा होगा,जहाँ पार्टी के एक ताकतवर महासचिव को ये बयान देने पर मजबूर होना पड़े,जो वे कभी देना ही नहीं चाहते थे.

पार्टी की प्रवक्ता नूपुर शर्मा के बयान से उपजे विवाद के बीच बीजेपी महासचिव अरुण सिंह को दरअसल,मजबूरी में  बयान जारी करके ये कहना पड़ा है कि उनकी पार्टी को ऐसा कोई भी विचार स्वीकार्य नहीं है, जो किसी भी धर्म या संप्रदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाए. इस बयान में बीजेपी ने कहा- पार्टी सभी धर्मों का सम्मान करती है.बीजेपी ने अपनी एक प्रवक्ता द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर दिए गए कथित विवादित बयान से मचे बवाल को शांत करने के प्रयासों के तहत ये कहा कि वह सभी धर्मों का सम्मान करती है और किसी भी धर्म के पूजनीय लोगों का अपमान स्वीकार नहीं करती,. शायद आप इससे सहमत न हों लेकिन इस पूरे मामले पर कांग्रेस प्रवकता पवन खेड़ा का ये बयान का काबिले-तारीफ़ ही समझा जाना चाहिए कि -"जो  गलती बीजेपी ने की,उसकी माफ़ी दुनिया से भला भारत क्यों  मांगे?"

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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