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ट्विन टावर को ढहाने से किस हद तक डरेगा देश का बिल्डर माफ़िया?

नोएडा में सरकार की निगाह के नीचे गैर कानूनी तरीके से बने 62 मंजिला जिस ट्वीन टावर को गिराया गया है, वह सही मायने में भ्रष्ट नेताओं, भ्रष्ट अफसरों और बिल्डर माफ़िया के नापाक गठजोड़ को तोड़ने की देश में पहली और अनूठी मिसाल है. इसके लिए हर देशवासी को हमारी न्यायपालिका यानी सर्वोच्च न्यायालय का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिसने किसी लालच या दबाव में आये या फिर किसी भी डर की परवाह किये बगैर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाकर देश के सबसे बड़े बिल्डर कहलाने वालों पर भी लगाम कसी है. 

लेकिन सवाल ये पूछा जा रहा है कि ट्वीन टावर ढहाने से क्या देश का बाकी बिल्डर माफ़िया और उसे संरक्षण देने वाले नेता-अफ़सर कोई नसीहत लेंगे? इसका सीधा-सा जवाब यही मिलेगा कि बिल्कुल भी नहीं. तो फिर रास्ता क्या है कि अपने आशियाने का सपना पालने वालों को लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी  तय वक़्त पर और कानूनी तरीके से अपना घर मिल जाये. इसका भी जवाब है. उसके लिए नोएडा के इस ट्वीन टॉवर में अपना फ्लैट खरीद चुके लोगों की एकजुटता और बिल्डर के खिलाफ उनकी लंबी चली कानूनी लड़ाई से सबक लेने की जरुरत है, जिनके इस सब्र ने आज पूरे देश को ये नज़ारा दिखाया,  जिसकी कल्पना देश के हुक्मरानों ने भी शायद कभी नहीं की होगी. 

पिछले तीन से भी ज्यादा दशक से बिल्डर माफ़िया ने शासन-प्रशासन में अपना जो दबदबा बनाया है, वह सिर्फ दिल्ली या एनसीआर में ही नहीं है बल्कि कमोबेश हर प्रदेश की यही कहानी है. इसलिये छोटे शहरों में भी आज जमीन की कीमतें आसमान को छूती जा रही हैं और साधारण-सी नौकरी करने वाले एक आम इंसान के लिए अपना आशियाना बनाना,  महज़ सपना बनकर ही रह गया है. हरियाली से भरे जंगलों को दिनोंदिन सीमेंट के जंगलों में तब्दील किया जा रहा है और इससे होने वाली काली कमाई में बिल्डर माफ़िया ने बाबू से लेकर सरकार में बैठे "बड़े बाबू" तक को भी अपना हिस्सेदार बना रखा है. किसी भी राज्य के दो-चार बड़े शहरों की पड़ताल कर लीजिए, हर जगह आपको नोएडा का ट्वीन टावर जैसा हाल ही दिखाई देगा. 

हालांकि बिल्डरों की कारगुजारियों पर नकेल कसने के मकसद से ही मोदी सरकार नया कानून लेकर आई थी. लेकिन हमारे यहां पुरानी कहावत है कि देश की संसद कोई भी नया कानून बाद में पास करती है लेकिन उससे बचने का रास्ता पहले ही निकल आता है और यही बिल्डरों से जुड़े इस कानून के साथ आज भी हो रहा है. 

सच तो ये है कि जो काम सरकार का है, उसे न्यायपालिका नहीं कर सकती और दो दिन पहले ही रिटायर हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन.  वी. रमन ने कई अवसरों पर ये दोहराया है कि सरकार हमें इसके लिये आख़िर मजबूर क्यों करती है कि जिसका निपटारा उसे ही करना है, उसके लिए भी न्यायपालिका को ही दखल देनी पड़े.  न्यायपालिका की कही बातों को तरजीह न देने को हम सरकार का अहंकार समझ सकते हैं लेकिन इतिहास में ऐसा बहुत ही कम हुआ है, जब न्यायपालिका ने अपनी हदों को जानबूझकर पार करने की ताकत दिखाई हो. 

बहरहाल, अब आपको भी समझ आ जायेगा कि एक बिल्डर माफ़िया कितना ताकतवर होता है कि वो अपने ख़िलाफ़ दर्ज हुई एफआईआर पर भी कोई कार्रवाई इसलिये नहीं होने देता क्योंकि उसके हाथ इतने लंबे होते हैं, जिसकी पहुंच सीधे सत्ता के गलियारों तक होती है.  जानकर हैरानी होगी कि जिस वक्त ट्विन टावर का निर्माण हो रहा था,  उसी दौरान इसमें गड़बड़ी और अनियमितता की शिकायत मिलने के बाद नोएडा प्राधिकरण के 24 अधिकारियों,  चार बिल्डरों और दो वास्तुविदों पर गंभीर आरोप लगे थे.  उन सबके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और मामले की एसआईटी जांच भी कराई गई थी. लेकिन मज़ाल है कि उस पर कोई कार्रवाई होती. वह तो अब तक भी नहीं हुई. 

ट्विन टावर गिरते ही मीडिया में जब ये सवाल उछला कि उस एफआईआर पर कार्रवाई कब होगी,  तब लखनऊ से लेकर नोएडा तक घंटी घनघनाने लगी है.  यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार के आदेश के बाद नोएडा प्राधिकरण कार्यालय में अब उस फाइल को ढूंढा जा रहा है,  जो एफआईआर दर्ज होने के बाद बनाई गई थी.  योगी सरकार ने प्राधिकरण से उस फाइल के साथ ही एफआईआर की कॉपी भी मांगी है,  जिसमें उन सभी आरोपियों के नामों का जिक्र है. 

जाहिर है कि सरकार अब उन सब आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने की तैयारी में है.  लेकिन सवाल ये है कि योगी सरकार तो साल 2017 से ही यूपी की सत्ता में है, लिहाज़ा इन सालों में उसे ये क्यों नहीं पता लगा कि ट्विन टावर बनाने वाले बिल्डर 'सुपरटेक' के मालिक समेत कई अफसरों के ख़िलाफ़ पुलिस में मामला दर्ज है, जिस पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. पुरानी कहावत है कि "सौ सुनार की और एक लोहार की. " इसलिये देश के लिए तो हमारी न्यायपालिका एक लौहार ही है, जिसे बारंबार सेल्यूट करने से गुरेज़ नहीं करना चाहिए.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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