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नीतीश कुमार पीएम मैटेरयल नहीं हैं, ये हैं वजह

बिहार की राजनीति में खेला होने के बाद से चर्चा है कि नीतीश को पीएम के चेहरे के तौर पर आगे किया जा सकता है. यानी 2024 में पीएम मोदी के मुकाबले ‘विकास पुरुष’ नीतीश कुमार को उतारा जा सकता है. बिहार की राजनीति के बड़े खिलाड़ी सुशासन बाबू नीतीश कुमार देश की राजनीति की पिच पर कहां ठहरते हैं इसका एक छोटा सा विश्लेषण पेश है.

1.  कभी अखियां मिलाऊं, कभी अखियां चुराऊं क्या तूने किया जादू... साल 1995 में जब राजा फिल्म का ये गीत आया था तब नीतीश कुमार लालू से बगावत कर समता पार्टी बैनर तले अपनी जगह बना रहे थे. साल 2000 में 21 विधायकों के सहारे नीतीश कुमार पहली बार 7 दिन के सीएम बने, लेकिन 2005 से अब तक बिहार में नीतीश का राज ही चल रहा है. करीब-करीब 16 साल से नीतीश सीएम रह चुके हैं. बस कुछ बदला है तो उनके सहयोगी. कभी बीजेपी के साथ, कभी RJD के साथ आंख मिलाने का खेल वो खेल रहे हैं. इससे उनके समर्थक तो खुश हो सकते हैं लेकिन पूरे देश में उनकी छवि मौका देखकर बदलने वाली की बनी है. बीजेपी ने इसी के लिए नीतीश को अभी से पलटूराम की उपाधि दे डाली है. ये बात चुनावों के जमकर उछाली जाएगी जो नीतीश की दावेदारी और लोकप्रियता को कम करेंगी. 

2. नीतीश की सबसे बड़ी ताकत है बड़ी मेहनत से गढ़ी उनकी सुशासन बाबू की छवि. साथ ही पिछड़ा और अति पिछड़ा वोटबैंक का समीकरण साधने में नीतीश अब तक कामयाब रहे हैं. इसके बाद भी कुछ तस्वीरें उनके उम्मीदवारी पर भारी पड़ती रहेंगी, जैसे 25 मार्च 2022 को योगी के शपथ ग्रहण समारोह की तस्वीर जिसमें नीतीश कुमार हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर पीएम मोदी का अभिवादन करते नजर आए थे. उस वक्त तो विपक्ष में मौजूद RJD ने इसे बिहार का अपमान बताया था. तब आरजेडी विधायक भाई वीरेंद्र का ट्वीट आया था-  "तुस्सी ग्रेट हो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार', आपने बिहार के सिर को नीचे कर दिया. अपनी कुर्सी बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. मुख्यमंत्री ने साबित कर दिया कि आप अपने पद के लिए, अपनी कुर्सी के लिए आप कहीं भी झुक सकते हैं."  लेकिन अब वही RJD उसी नीतीश को बिहार का गौरव बता रही है यानी सियासी समीकरण बदल गया है. संभावना है कि भाई वीरेंद्र का ट्वीट भी डिलीट हो जाए लेकिन  तस्वीर अब मिटाए नहीं मिटेगी. चुनावों के दौरान ऐसी तस्वीरें जरूर उछलेंगी जो नीतीश की छवि पर चोट करेंगी कि आखिर जिससे आगे सिर झुकाया उसके आगे सीना तान कर कैसे खड़े होंगे?

 
3. नीतीश की तीसरी समस्या ये है कि उनका बिहार से आगे बड़ा बेस नहीं है. 2019 में बिहार में 24 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें से 16 सीटों पर चुनाव जीता. कुल वोट नब्बे लाख वोट. 2019 में झारखंड विधानसभा में 45 सीट पर चुनाव लड़ा. एक पर भी जीत नहीं मिली. 2019 में अरुणाचल प्रदेश में 7 सीट जीती थीं. 2022 में मणिपुर में 6 सीट जीत कर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई. अगर कुल मिला लें तो जेडीयू के पास 16 लोकसभा सीट हैं और पूरे देश में 56 विधानसभा सीट हैं. ऐसे में सवाल है कि क्या गठबंधन वाकई नीतीश के चेहरे पर दांव लगाने को तैयार होगा? और क्या नीतीश अपने चेहरे के बूते चुनाव जिता पाएंगे?

4. बिहार में भी नीतीश कुमार अभी अपने बूते सरकार नहीं बना पाए. जैसे 2010 चुनाव में जब नीतीश ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था तब उसने 115 सीट जीती थीं, बहुमत से सात कम. ये तब की बात है जब बिहार में नीतीश का सिक्का चल रहा था लेकिन 2020 के चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू सिर्फ 43 सीट पर सिमट गई. नीतीश 8 बार सीएम बने जरूर लेकिन एक बार भी अपने दम पर नहीं बन पाए. ये बात सवाल खड़े करती है कि क्या नीतीश पीएम मैटिरियल है?

5. एक बार को मान लें कि कांग्रेस और RJD अपनी तरफ से नीतीश को आगे कर देंगी लेकिन सवाल है क्या बाकी पार्टियां इस नाम को स्वीकारेंगी. फिलहाल लोकसभा की वेबसाइड पर जेडीयू 16 सांसदों के साथ सातवें नंबर पर है. ममता बनर्जी की TMC, DMK और YSR की पार्टी के पास भी नीतीश से ज्यादा सांसद हैं. ममता ने नीतीश के बीजेपी से अलग होने का स्वागत तो किया है लेकिन सवाल ये है कि जब पीएम उम्मीदवार चुनने की बारी आएगी तो क्या ममता ये खेल होने देंगी? इसी तरह आम आदमी पार्टी की सत्ता दो राज्यों में है, सवाल है कि केजरीवाल विपक्ष के साझा उम्मीदवार के तौर पर दावा नहीं ठोकेंगे? एनसीपी के शरद पवार का अनुभव नीतीश से कहीं ज्यादा है. ऐसे में नीतीश के नाम पर विपक्ष एक हो पाएगा इस पर बड़ा सवाल है और यही बात विपक्ष के बिखरने की वजह बन सकती है.

6. नीतीश के खिलाफ ये भी बात जाती है कि उनकी छवि बेशक विकास पुरूष की बनी हो लेकिन उनका ट्रैक रिकॉर्ड़ बेहतरीन नहीं है. गरीबी में बिहार देश में पहले नंबर पर है. बेरोजगारी में बिहार चौथे नंबर पर है. प्रति व्यक्ति आय के मामले में बिहार देश के औसत का एक तिहाई ही है. ये सारे आंकड़े चुनाव से पहले उछाले जाने तय हैं. ऐसे में नीतीश बातें तो करेंगे लेकिन उनके जनता को दम कैसे दिखाई देगा? ऐसे में नीतीश की पीएम पद की दावेदारी शुरू होने से पहले ही सवालों को घेरे में रहेगी.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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