मोहम्मद युनुस के बदले सुर के पीछे अमेरिका में सत्ता परिवर्तन व बदली भू-राजनीति है वजह

मोहम्मद युनुस, जो कि एक प्रमुख सामाजिक उद्यमी और नोबेल पुरस्कार विजेता हैं, उनको बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्तापलट के बाद 'अंतरिम सरकार' का 'मुखिया' बनाया गया. अब अचानक ही से उनके सुर में बदलाव देखा जा रहा है. कल तक भारत के खिलाफ आग उगलने वाले मोहम्मद युनुस अब अपनी मज़बूरी की कहानी सुना रहे हैं. मोहम्मद युनुस ने अपने एक इंटरव्यू में कहा है कि बांग्लादेश के पास भारत से अच्छे संबंध रखने के अलावा कोई और 'ऑप्शन' नहीं है! उन्होंने ये भी कहा कि कुछ दुष्प्रचार की वजह से दोनों देशों के बीच संघर्ष जरूर पैदा हुआ है, लेकिन बांग्लादेश भारत के साथ अपने संबंध में सुधार चाहता है. अब तक हुई सभी तरह की गलतफहमियों को दूर करना चाहता है.
अचानक 'मंद्र' में गाने लगे युनुस
युनुस का बयान ऐसे समय में सामने आया है, जब एक महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी मुलाकात होने की संभावना है. 3-4 अप्रैल को थाईलैंड में होने वाले बिम्सटेक (BIMSTEC) यानी (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation) शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मोहम्मद यूनुस के बीच द्विपक्षीय बैठक होने की संभावना है. 1997 में ही बने इस संगठन को मोदी के सत्ता में आने के बाद भारत ने बहुत अधिक तवज्जो दी है और बंगाल की खाड़ी में भारत के प्रभुत्व को बनाए रखने और चीन को रोकने के लिए अमेरिकी प्रशासन भी इस पर निगाहें गड़ाए हुए हैं. इस संगठन में फिलहाल पाकिस्तान को छोड़कर सात सदस्य हैं और भारत, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका के अलावा म्यांमार और थाईलैंड भी इसके सदस्य हैं, जिसमें भूटान और भारत को छोड़कर सभी देशों को चीन ने अपनी डेट डिप्लोमैसी का निशाना बनाया हुआ है. अगले महीने जब इसकी बैठक में युनुस एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर मोदी का सामना करेंगे तो उनको पता है कि दांव पर लगाने को उनके पास क्या है? और, मोदी के हाथ में कैसे पत्ते हैं.

इसीलिए, युनुस के सुर बदले हैं. अब वह कह रहे हैं कि भारत-बांग्लादेश के रिश्ते बहुत अच्छे हैं. ये रिश्ते हमेशा अच्छे रहेंगे, उन्हें कोई अलग नहीं कर सकता. भविष्य में भी हमारे संबंध अच्छे बने रहेंगे. हम बहुत करीबी हैं. ऐतिहासिक, राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से हम इतने जुड़े हुए हैं कि कभी अलग नहीं हो सकते!
यह देखकर यकीन नहीं होता कि यह वही युनुस हैं, जिन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं के नरसंहार को सिरे से नकार दिया था, पाकिस्तान से मिलकर भारत के खिलाफ लगातार गठबंधन तैयार करने की कोशिश कर रहे थे, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के मुखिया को बुलाकर भारत के उस भौगोलिक क्षेत्र तक सैर पर गए थे, जिसको चिकेन-नेक कहा जाता है, जिससे भारत का उत्तर-पूर्व पूरे भारत से जुड़ता है. इन्हीं युनुस की सरकार के एक 'सलाहकार' ने तो पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड, मणिपुर, असम को मिलाकर "ग्रेटर बांग्लादेश" बनाने की बात कर दी थी, लेकिन अब ऐसा क्या हो गया है कि 'बदले-बदले से मेरे सरकार नजर आते हैं'!
अमेरिका में सत्ता परिवर्तन का प्रभाव
अमेरिका में सत्ता परिवर्तन का प्रभाव केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर भी महसूस किया जाता है. जब एक नया प्रशासन सत्ता में आता है, तो उसकी नीतियां और दृष्टिकोण भी बदलते हैं. यह बदलाव विभिन्न देशों और उनके नेताओं पर भी प्रभाव डालता है. मोहम्मद युनुस के बदले सुर के पीछे अमेरिका में सत्ता परिवर्तन एक महत्वपूर्ण कारण है. शेख हसीना ने तो साफ तौर पर यह कहा था कि बांग्लादेश में हुई 'तथाकथित क्रांति' के पीछे अमेरिकी डीप स्टेट का हाथ था और जब तक बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति रहे, हम सबने देखा कि युनुस हों या उनके दूसरे कारिंदे, लगभग भारत पर हमलावर रहे. अब अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद नई नीतियां हैं, नए दृष्टिकोण के साथ भू-राजनीति भी बदल रही है.
ट्रंप ने जिस दिन से अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर कमान संभाली है, वह नो-नॉनसेंस मोड में कुछ इस तरह काम कर रहे हैं, जिससे पूरी दुनिया की राजनीति और डिप्लोमैसी में उथलपुथल है. भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के साथ जब उनकी मुलाकात हुई तो उन्होंने साफ तौर पर कह दिया कि बांग्लादेश को वह भारत के लिए छोड़ रहे हैं. उसके बाद भारतीय विदेशमंत्री एस जयशंकर, जो अपने कूटनीतिक बयानों और वन-लाइनर्स के लिए मशहूर हैं, उन्होंने भी बांग्लादेश को साफ शब्दों में कह दिया कि वह तय कर ले कि भारत के साथ कैसे रहना चाहता है? ट्रंप ने चुनाव के दौरान भी बांग्लादेश में हिंदुओं के नरसंहार को लेकर बात कही थी और जिस तरह से उन्होंने और अमेरिकी उप-राष्ट्रपति वांस ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेन्स्की की भी कोई मुरव्वत न की, युनुस जान चुके हैं कि अमेरिका अब किसी भी तरह से बांग्लादेश को घास नहीं डालेगा. बदलती हुई भू-राजनीति के दौर में युनुस का यह बयान उनकी व्यावहारिकता से अधिक, उनकी मजबूरी का दस्तावेज है.
मोदी से मुलाकात का महत्व
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात का महत्व केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है. मोदी एक प्रभावशाली नेता हैं और उनकी नीतियां और दृष्टिकोण भारत और क्षेत्रीय सहयोग पर गहरा प्रभाव डालते हैं. यदि मोहम्मद युनुस बिम्सटेक बैठक में मोदी से मुलाकात करते हैं, तो जाहिर तौर पर मोदी उनसे यह सवाल पूछेंगे कि तमाम कटु बयानों के बावजूद भारत ने जिस तरह बांग्लादेश की आर्थिक सहायता की है, लाखों टन अनाज दिया है, उसके बारे में उनके क्या खयाल हैं. बांग्लादेश चारों तरफ से भारत से घिरा है, यह अगर भुला भी दिया जाए कि बांग्लादेश के जन्म के पीछे ही भारत का हाथ है, तो भी बिना भारत के भला बांग्लादेश का गुजारा कैसे होगा? जिस पाकिस्तान के भरोसे वह उछलने की सोचेगा भी, वह खुद चारों तरफ से मुसीबतों में है, हाल ही में फिर वहां दो बम-ब्लास्ट हुए हैं, भुखमरी के जैसे हालात हैं और वह खुद चीन की दया पर निर्भर है.
युनुस एक अच्छे अर्थशास्त्री है, यह तो मानना ही होगा. उन्होंने चारों तरफ के जमा-खर्च का हिसाब लगाया है और तब यह तय किया है कि बांग्लादेश को वापस अपनी पतलून में रहने में ही फायदा है. वैसे भी, बांग्लादेश के सेनाध्यक्ष ने हाल ही में जो बयान दिया है, उससे भी युनुस की पेशानी पर लकीरें खिंची ही होंगी.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]



























