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'क्या त्रिपुरा की तरह मेघालय में भी बीजेपी का पूरा होगा सपना, या फिर कोनराड संगमा और टीएमसी से बिगड़ेगा खेल'

ये संयोग ही है कि पिछली बार की तरह इस बार भी मेघालय विधानसभा चुनाव 27 फरवरी को ही हो रहा है. यहां की 60 में से 59 सीटों पर वोटिंग जारी है. मेघालय के सोहियांग से यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार एच डी आर लिंगदोह के निधन की वजह से इस सीट पर फिलहाल मतदान नहीं हो रहा है.

मेघालय का राजनीतिक समीकरण बाकी राज्यों की तुलना में बेहद दिलचस्प है. आपको शायद जानकर हैरानी होगी कि यहां एनडीए गठबंधन का हिस्सा होते हुए भी नेशनल पीपुल्स पार्टी और बीजेपी एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रही है.पिछली बार भी ऐसा ही हुआ था. मेघालय में 2018 चुनाव नतीजों के बाद एनपीपी की अगुवाई में गठबंधन सरकार बनी थी. इस गठबंधन में एनपीपी के साथ यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी , पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट, हिल्स स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और बीजेपी शामिल थे.

मेघालय का समीकरण है दिलचस्प

पांच साल तक सरकार में रहने के बावजूद 2023 के चुनाव में एनपीपी और बीजेपी सत्ता हासिल करने के लिए एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं. जिसके साथ बीजेपी पिछले 5 साल से सरकार में हिस्सेदारी निभा रही थी, इस बार चुनाव प्रचार में बीजेपी के नेता उसी पार्टी के खिलाफ आग उगल रहे थे. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तो मेघालय की कोनराड संगमा सरकार को सबसे भ्रष्ट सरकार तक करार दे दिया. बीजेपी का कहना है कि कोनराड संगमा राज्य में प्रशासन संभालने में नाकाम साबित हुए है. जबकि खुद बीजेपी उसी सरकार का हिस्सा रही.

त्रिपुरा की तरह प्रदर्शन करना चाहती है बीजेपी

जिस तरह से 2018 में त्रिपुरा में बीजेपी ने नतीजों से सबको चौंका दिया था, उसी तरह से इस बार उसकी कोशिश मेघालय में भी है. जिस तरह 2018 से पहले तक बीजेपी त्रिपुरा में एक भी विधानसभा सीट नहीं जीत पाई थी, लेकिन 2018 में ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए सरकार बनाने में कामयाब रही और साथ ही सीपीएम के 25 साल के शासन का भी अंत कर दिया था. बीजेपी मेघालय में भी इस बार कुछ ऐसा ही प्रदर्शन करने का मंसूबा पाल रखी है. मेघालय के सियासी रण को जीतने के लिए इस बार बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी के दिग्गज नेताओं तक को उतार दिया. पीएम मोदी ने जब ये कहा कि मेघालय को वंशवादी राजनीति से मुक्त करने की जरूरत है, तो उनका सीधा निशाना मौजूदा मुख्यमंत्री और एनपीपी नेता कोनराड संगमा पर था. बीजेपी के लिए अकेले मेघालय की सत्ता को हासिल करना उतना आसान नहीं है. बीजेपी यहां की सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

बीजेपी के लिए मुश्किल भरा रहा है सफर

बीजेपी पहली बार मेघालय के चुनाव में 1993 में कूदी थी. बीजेपी ने 20 उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसे किसी सीट पर जीत नहीं मिली. इसके बाद 1998 में हुए चुनाव में पहली बार बीजेपी मेघालय विधानसभा में पहुंचने में सफल रही. बीजेपी के 28 उम्मीदवारों में से तीन जीतने में कामयाब रहे. 2003 में बीजेपी दो सीटों पर जीती. इसके अगले चुनाव में उसे एक ही सीट से संतोष करना पड़ा. 2013 में बीजेपी फिर से शून्य पर पहुंच गई. पिछली बार बीजेपी ने 47 सीटों पर किस्मत आजमाई थी और महज़ 2 सीट ही जीत पाई थी. लेकिन उसके लिए सबसे ज्यादा खुश होने की बात ये थी कि पार्टी को पहली बार करीब 10 फीसदी वोट हासिल हो गए थे. और यहीं से बीजेपी को एहसास हो गया था कि वो आने वाले चुनाव में त्रिपुरा जैसा प्रदर्शन मेघालय में भी कर सकती है. पिछली बार बीजेपी को गारो और खासी हिल्स में बहुत उम्मीदें थी. गारो हिल्स के पांच जिलों में कुल 24 विधानसभा सीट है. 2018 के चुनाव में बीजेपी इनमें से कम से कम 5 से 6 सीट जीतने को लेकर आश्वस्त थी. लेकिन बीजेपी गारो इलाके में कोई भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हुई. खासी के इलाकों में बीजेपी को सिर्फ दो सीट से ही संतोष करना पड़ा. अगर बीजेपी को मेघालय की सत्ता पर काबिज होना है तो उसे गारो और खासी हील्स में बेहद प्रदर्शन करना होगा.

स्थानीय संवेदनाओं को दिया है महत्व

मेघालय बीजेपी के अध्यक्ष अर्नेस्ट मावरी दावा कर रहे हैं कि आगामी चुनाव में बीजेपी अपने दम पर सरकार बनाएगी और इसे वास्तविकता के धरातल पर उतारने के लिए वो ये भी कहने से परहेज नहीं कर रहे थे कि मैं भी बीफ खाता हूं और इसको लेकर मेघालय में कोई प्रतिबंध नहीं है. इस बयान के सियासी मायने रहे हैं. मेघालय में बीफ खाने की परंपरा रही है, ये वहां के जीवन शैली का हिस्सा है. बीजेपी इस बयान के जरिए ये दिखाना चाहती थी कि उसकी छवि बाकी राज्यों में चाहे जैसी रही हो, मेघालय में वो इस मुद्दे पर बिल्कुल अलग है. अर्नेस्ट मावरी इस बयान के जरिए मेघालय की जनता को ये भी जताना चाहते थे कि विरोधी दलों ने राजनीतिक लाभ के लिए ये प्रचार किया है कि बीजेपी ईसाई विरोधी पार्टी है, जबकि वास्तविकता से इसका कोई लेना-देना नहीं है. दरअसल मेघालय में करीब 75 फीसदी आबादी ईसाई है और बीजेपी को भलीभांति पता है कि मेघालय में चुनाव जीतने के लिए इस समुदाय का समर्थन बेहद जरूरी है.

कोनराड संगमा के लिए भी आसान नहीं है राह

बीजेपी दावा जरूर कर रही है कि इस बार मेघालय की जनता एनपीपी और सीएम कोनराड संगमा को नकार देगी. लेकिन बीजेपी की राह की सबसे बड़ी चुनौती  कोनराड संगमा ही हैं. ये बात सही है कि कोनराड संगमा के सामने सत्ता में बरकरार रहने की चुनौती है और उन्हें सत्ता विरोधी लहर (एंटी इनकंबेंसी) का डर भी सता रहा होगा. लेकिन इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि अब नेशनल पीपुल्स पार्टी मेघालय की राजनीति में बड़ा नाम बन चुकी है. इसकी स्थापना कोनराड संगमा के पिता पी ए संगमा ने की थी. उन्होंने जुलाई 2012 में एनसीपी से निकाले जाने के बाद इस पार्टी को बनाया था. एक जमाने में पी ए संगमा कांग्रेस के बड़े नेता में शुमार थे. बाद में उन्होंने एनसीपी का दामन थाम लिया था. नेशनल पीपुल्स पार्टी  जून 2019 में राष्ट्रीय पार्टी बन गई थी. पूर्वोत्तर भारत से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने वाली एनपीपी पहली पार्टी है. पिछली बार 52 सीट पर चुनाव लड़कर एनपीपी 20.6% वोट शेयर के साथ 20 सीटों पर जीत हासिल कर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. बाद में बीजेपी और दूसरे सहयोगियों के साथ मिलकर कोनराड संगमा ने सरकार बना ली थी. हालांकि इस बार उन्हें बीजेपी के साथ ही टीएमसी से भी कड़ी टक्कर मिल रही है. क्षेत्रीय अस्मिता को मु्द्दा बनाकर वे दावा कर रहे हैं कि उनके खिलाफ का विरोधी वोट बीजेपी और टीएमसी में बंटेगा जिससे एनपीपी को फायदा होगा. कोनराड संगमा दावा भले कर रहे हों कि मेघालय की जनता लगातार दूसरी बार उनपर भरोसा जताएगी. लेकिन पिछली बार के मुकाबले बदले सियासी समीकरणों से उनकी भी चिंता बढ़ी हुई है.

टीएमसी बिगाड़ सकती है बीजेपी का खेल

मेघालय के सियासी पिच पर इस बार ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी जोरदार बैटिंग करने का दावा कर रही है. टीएमसी दावा कर रही है कि इस बार वो मेघालय की जनता के लिए नया विकल्प बनेगी. इस बार टीएमसी ने 56 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. टीएमसी के इस भरोसे के पीछे एक वजह है. 2018 के चुनाव में एक भी सीट नहीं जीतने वाली टीएमसी अचानक मेघालय विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई.  2018 तक टीएमसी का मेघालय में कोई जनाधार नहीं था. नवंबर 2021 में कांग्रेस के मुकुल संगमा समेत 12 विधायकों के टीएमसी में शामिल होने से ममता बनर्जी की पार्टी रातों रात मेघालय की मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई. मुकुल संगमा 2010 से 2018 तक मेघालय के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उनका अपना जनाधार रहा है, जिसकी बदौलत इस बार टीएमसी को यकीन है कि वो मेघालय की जनता के लिए नया विकल्प बनेगी. मुकुल संगमा की गारो हील्स के इलाके में जबरदस्त पकड़ है. टीएमसी के पक्ष में एक और बात जा रही है कि एनपीपी और सरकार में उसके सभी सहयोगी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. इसके अलावा मुख्यमंत्री कोनराड संगमा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का फायदा भी टीएमसी को मिल सकता है.

कांग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई

त्रिपुरा की तरह मेघालय में भी इस बार कांग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई है. कांग्रेस पिछली बार के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, लेकिन 2023  में होने वाले चुनाव से पहले एक तरह से उसका सफाया हो गया है. व्यावहारिक तौर से अभी उसके पास एक भी विधायक नहीं. 2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस सबसे ज्यादा 21 सीटें जीती थी. उसे सबसे ज्यादा 28.5% वोट भी मिले थे. लेकिन मुकुल संगमा के साथ कई विधायकों के पार्टी छोड़ने के बाद मेघालय में कांग्रेस की स्थिति दिन ब दिन खराब ही होते गई. एक के बाद एक पार्टी के कई विधायक और नेता कांग्रेस से पल्ला झाड़ते गए. कांग्रेस इस बार चुनाव तो सभी सीटों पर लड़ रही है और भले ही अपने चुनाव प्रचार में मेघालय को पांच सितारा राज्य में बदलने का वादा कर रही हो, लेकिन वास्तविकता तो यही है कि इस बार के कांग्रेस के सामने अपनी बची-खुची सियासी ज़मीन को बचाने की चुनौती है.

यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी बन सकती है किंगमेकर

कोनराड संगमा सरकार में हिस्सेदार रही यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी  भी मेघालय की राजनीति में महत्व रखती है. कई बार ऐसा हुआ है कि वो सूबे में सरकार बनाने में किंगमेकर साबित हुई है. पिछली बार यूडीपी को 6 सीटों पर जीत मिली थी. उस 11.6% वोट भी हासिल हुए थे, जो कि बीजेपी से ज्यादा था. यूडीपी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने और कोनराड संगमा सरकार बनाने का रास्ता साफ किया था. 2013 में भी 8 सीट जीतकर  यूडीपी किंगमेकर बनी थी. उसके सहयोग से ही उस वक्त कांग्रेस नेता मुकुल संगमा मुख्यमंत्री बने थे. उससे पहले 2008 में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी को 11 सीटों पर जीत मिली. बाद में एनसीपी के साथ  मिलकर यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी प्रमुख दोनकुपर रॉय ने सरकार बनाई. यूडीपी इस बार अकेले दम पर ताल ठोक रही है. उसने 47 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष मेटबाह लिंगदोह फिलहाल मेघालय विधानसभा के स्पीकर हैं. उनका भी दावा है कि इस बार यूडीपी अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन करेगी.

मेघालय के चुनावी रण में इस बार एनपीपी, बीजेपी, टीएमसी, कांग्रेस और यूडीपी सभी अलग-अलग एक -दूसरे से भिड़ रहे हैं. इसके अलावा हिल्स स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी 11 और 'वॉयस ऑफ द पीपल' 18 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. ऐसे में इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि यहां त्रिशंकु जनादेश की संभावना बन सकती है. ऐसा होने पर चुनाव बाद बनने वाले गठबंधन पर सबकी नज़र होगी और उसके बाद ही सरकार की तस्वीर साफ हो पाएगी.

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