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लोकसभा चुनाव परिणाम 2024

UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
00
OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
00
OTH
DELHI (07)
07
NDA
00
INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

क्या अपने ही बनाए चक्रव्यूह में फंसते जा रहे हैं समीर वानखेड़े?

बरसों पहले साहिर लुधियानवी ने मुंबई के बारे में लिखा था-"ये वो मायावी नगरी है जो तुझे फर्श से अर्श पर तो ले जायेगी लेकिन जब वो नीचे गिरायेगी तो यहीं पर फर्श तलाशना भी तेरे लिए दुश्वार हो जाएगा. " साहिर की इस हकीकत का अहसास तो उन्हीं को होगा,  जिन्होंने इसे झेला होगा. लेकिन एक उम्दा शायर हो या लेखक, वो अपने समाज का आईना होने के साथ ही कुछ हद तक भविष्यदृष्टा भी होता है. फिल्मों के सुपर स्टार रह चुके शाहरुख खान के बेटे को ड्रग्स मामले में पकड़कर रातोंरात हीरो बनने वाले समीर वानखेड़े ने कभी सोचा था कि जिस हाई प्रोफाइल केस के चलते उन्होंने अपना सीना इतना चौड़ा कर रखा था, उसका साइज सिकोड़ने में उस सरकार को महज़ चंद सेकंड ही लगेंगे जिसके वो मुलाज़िम हैं.

हम न तो समीर वानखेड़े की कार्यप्रणाली पर उठ रहे सवालों पर कोई फैसला देने के हकदार हैं और न ही महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक के उन पर लगाये आरोपों को सही या गलत साबित करने की किसी अदालत के मजिस्ट्रेट हैं. लेकिन इतना नासमझ कोई भी नहीं होता, जिसे ये न पता हो कि धुँआ वहीं से उठता है जहां आग लगी होती है. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी एनसीबी एक केंद्रीय जांच एजेंसी है जो गृह मंत्रालय के अधीन है. ठीक वैसे ही जैसे हमारी खुफिया एजेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी है,  जो तमाम राजनीतिक-धार्मिक संगठनों, एक्टिविस्टों, समाचार माध्यमों से जुड़े लोगों के अलावा नौकरशाहों पर भी

अपनी खुफिया निगाह रखती है. सो, ऐसा नहीं है कि वानखेड़े से सिर्फ शाहरुख के बेटे जैसे हाई प्रोफाइल माने जाने वाले केस की ही जांच छीनी गई है, बल्कि उन्हें पांच और ऐसे मामलों की जांच से भी हटाया गया है जिनका अन्तराष्ट्रीय स्तर पर भी खासा महत्व है. हालांकि जो भी लोग खुफिया विभाग से मिलने वाले इनपुट्स की गंभीरता और उसके आधार पर सरकार द्वारा तत्काल या फिर कदम-दर-कदम लिए जाने वाले फैसलों से वाकिफ होंगे,  तो फिर वे ये भी जानते होंगे कि किसी 'ब्लू आइड' अफसर को बेहद संवेदनशील समझे जाने वाले मामलों की जांच से हटाने का फैसला यों ही हवा में नहीं लिया जाता. उस अफसर के बारे में सरकार को अपने ही सूत्रों के जरिये वो कुण्डलिया जुटाना भी आता है, जिसे पढ़कर कोई ज्योतिषी दावे के साथ ये नहीं बता सकता कि कल उसके साथ क्या होने वाला है. लिहाज़ा,  ये कहना गलत होगा कि वानखेड़े को आर्यन खान केस की जांच से हटाना,  नवाब मलिक की जीत है बल्कि इस फैसले के बाद  केंद्र सरकार ने उन पर न्यायपालिका के शक के दायरे को एक तरह से और मजबूत कर दिया है.

गौर करने वाली बात ये है कि मंत्री नवाब मलिक द्वारा वानखेड़े पर जबरन उगाही करने और भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर एनसीबी की विजिलेंस टीम के अलावा मुंबई पुलिस भी अपनी जांच कर रही है. इसी जांच में अपनी संभावित गिरफ्तारी से बचने के लिए वानखेड़े ने पिछले महीने बॉम्बे हाइकोर्ट की शरण ली थी कि इस जांच पर रोक लगाई जाए. लेकिन कोर्ट ने इसे ठुकराते हुए उन्हें सिर्फ इतनी राहत दी थी कि पुलिस कोई भी सख्त कार्रवाई करने से पहले उन्हें 72 घंटे का नोटिस देगी. कानून की भाषा में इसे Pre Arrest नोटिस कहा जाता है. लिहाज़ा, कानून के जानकारों की नज़र में वानखेड़े को एक साथ छह अहम मामलों की जांच से हटाए जाने के बाद मुंबई पुलिस के लिए आगे की कार्रवाई करना अब और आसान हो गया है. इसलिये कह सकते हैं कि जिससे बचने के लिए उन्होंने कानून की शरण ली थी, अब वे खुद ही उस कानून के शिकंजे में फंसते नज़र आ रहे हैं.

कहते हैं कि पुराने जमाने के राजा-महाराजा हर हफ्ते अपने घोड़ों की रेस करवाते थे, सिर्फ ये देखने के लिए कि उनका कौन-सा घोड़ा जरुरत से भी ज्यादा तेज़ दौड़ता है. तब वो इकलौता घोड़ा उस राजा का सबसे प्रिय यानी ब्लू आइड बन जाता था. लेकिन राजा उस घोड़े देखभाल करने वाले से इसका राज जरुर जानता था कि आखिर इसमें ऐसी क्या खासियत है कि ये बाकियों से अलग है. लेकिन उसकी सबसे बड़ी चिंता ये जानने की होती थी कि इसकी तेज़ रफ़्तार ही किसी दिन मेरे लिए खतरा तो नहीं बन जाएगी?

अगर गौर से देखें, तो आधुनकि समय में सत्ता और नौकरशाही का भी कुछ वैसा ही रिश्ता है. यदि कोई अफसर अपने सारे अनुकूल कामों के जरिये सरकार की आंखों का तारा बनने के साथ ही खुद को एक हीरो समझकर ये गुमान करने लगे कि उसकी गलतियों से कभी पर्दा नहीं उठने वाला,  तो ये उसकी सबसे बड़ी व भयंकर भूल होती है. लगता है कि वानखेड़े ने भी उसी रास्ते को ही अपनी कामयाबी की मंज़िल मान लिया था लेकिन वे शायद ये भूल गए कि उनकी हैसियत नौकरशाही के मैदान के उस तेज घोड़े जैसी ही है, जिसकी लगाम किसी और के हाथ में है. बरसों पहले कूटनीति के महान विद्वान आचार्य चाणक्य ने लिखा था-"सफल शासक वही होता है, जो दुश्मन के खतरे से बचने और खुद को बचाने के लिए अपने सबसे प्रिय सेनापति की कुर्बानी देने से भी पीछे नहीं हटता."

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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