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हरियाणा चुनाव के नतीजों ने अब बदल दिया महाराष्ट्र और झारखंड का सियासी खेल

महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव आयोग की तरफ से मतदान की तारीखों के एलान के बाद अब राज्य में आचार संहिता लग चुकी है. यानी, अब किसी तरह की नई घोषणाएं नहीं की जा सकती है. लोकसभा चुनाव के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव (हरियाणा और जम्मू कश्मीर) में 1-1 के परिणाम के साथ एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच ये सेमीफाइनल का मुकाबला टाई रहा.  

इससे पहले, लोकसभा चुनाव के नतीजे महाराष्ट्र में महाविकास अघाडी के पक्ष में रहे थे. लेकिन, हरियाणा में बीजेपी की जीत ने भविष्य की चुनौतियों पर उसे एक बड़ा हौसला दिया है. महाराष्ट्र एक बड़ा राज्य है, जहां से यूपी के बाद सबसे ज्यादा यानी 48 लोकसभा सांसद चुने जाते हैं. इसके साथ ही, देश की वित्तीय राजधानी मुंबई भी यहीं पर है. ऐसे में यहां के चुनाव पर देश की पैनी नजर रहने वाली है.

क्यों महाराष्ट्र-झारखंड चुनाव है खास?

पिछले पांच सालों के दौरान महाराष्ट्र के अंदर बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिला है, जहां पर दो क्षेत्रीय पार्टियों में टूट हुई. झारखंड में भी हाई वोल्टेज पॉलिटिकल ड्रामे देखने को मिला और ईडी ने राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गिरफ्तार तक कर लिया. इन सियासी घटनाओं के बीच 2024 में हुए लोकसभा चुानव में इंडिया ब्लॉक यानी महाविकास अघाडी (कांग्रेस, शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी- शरदचंद्र पवार) ने राज्य की 48 में से 30 सीटों पर शानदार जीत दर्ज की थी.

जबकि, महायुति यानी एनडीए (बीजेपी, शिवसेना-एकनाथ शिंदे, और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-अजीत पवार) की पार्टी सिर्फ 17 सीटों पर सिमट गई. यानी, 2019 के मुकाबले एनडीए को यहां पर 17 सीटों का बड़ा नुकसान हुआ. उस वक्त राजनीतिक जानकारों ने माना कि राज्य की जनता ने बीजेपी की तोड़फोड़ की राजनीति को खारिज किया है.

महायुति ने नतीजे को बेहद गंभीरता से लिया और उसके बाद कई लोक लुभावनी योजनाओं का एलान किया गया, जैसे- महिलाओं के लिए 1500 रुपये (लड़की-बहन योजना), ओबीसी का क्रीमी लेयर बार बढ़ाना, राज्य अनुसूचित जाति आयोग को संवैधानिक दर्जा और मुंबई एंट्री को टोल चार्ज मुक्त करना. महायुति गठबंधन की तरफ से इस कदम के जरिए एंटी इनकम्बैन्सी फैक्टर को कम करने की कोशिशें की गई.

जबकि, झारखंड की बात करें तो एनडीए (बीजेपी और ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन) ने राज्य की 14 में से 9 सीटों पर जीत दर्ज की. जबकि, इंडिया ब्लॉक (झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, सीपीआई और सीपीआई-एमएल) ने 5 सीटों पर विजय का पताका लहराया. यानी, उसे 2 लोकसभा सीटों का फायदा हुआ.

डगमगा गया MVA, महाविकास अघाडी का विश्वास

इंडिया ब्लॉक ने अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सभी पांच सीटें जीत ली. लोकसभा चुनाव के दौरान आदिवासियों की सहानुभूति जेल में बंद हेमंत सोरेन के पक्ष में थी, जिसकी वजह से सभी रिजर्व सीटों पर इसका फायदा हुआ. जेएमएम की अगुवाई वाली सरकार ने भी कई योजनाएं चलाई, जैसे- मैय्या सम्मान योजना, जिसमें आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले मदद की राशि हजार रुपये से बढ़ाकर 1500 रुपये कर दी गई.

दोनों ही राज्यों में इंडिया ब्लॉक अपनी जीत को लेकर आश्वस्त था. लेकिन हरियाणा के चुनाव नतीजों ने महिराष्ट्र में महाविकास अघाडी और झारखंड में इंडिया ब्लॉक के नेताओं के विश्वास को डगमगा कर रख दिया है.

महाराष्ट्र में एनडीए और इंडिया ब्लॉक में शामिल दलों की संख्या 2 से बढ़कर 3 हो चुकी है. 2019 को लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने 164 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जबकि शिवसेना ने 126 सीट पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे. ऐसे में हरियाणा चुनाव के नतीजे बीजेपी को सहयोगियों से हार्ड बार्गेनिंग का एक बड़ा मौका दे दिया है. साथ ही, 2019 में जिन सीटों पर वे लड़े थे, वे सभी सीटें वे जीत चुके हैं.    

कांग्रेस ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान 2019 में 147 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे, जबकि सहयोगी एनसीपी को 121 सीटें दी थी. उसके बाद अब एनसीपी में टूट हुई और शरद पवार खेमा अभी भी कांग्रेस गठबंधन के साथ है.

हरियाणा की हार से बिगड़ा समीकरण

शिवेसना (उद्धव गुट) भी अब कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा है. कांग्रेस की कोशिश थी कि वे 115 से 120 सीट पर लड़े और बाकी 160 सीटें सहयोगी एनसीपी (शरद पवार गुट) और शिवेसेना (उद्धव बाल ठाकरे गुट) में बांट दे. लेकिन, सहयोगी दलों ने एक तिहाई सीटों की डिमांड की. ऐसे में हरियाणा में कांग्रेस की हार से उसकी बारगेनिंग पावर कम हुई है.

महाराष्ट्र के मुकाबले झारखंड में सीट बंटवारा कहीं ज्यादा आसान है. हालांकि, यहां पर बीजेपी के लिए सभी सहयोगी दलों को खुश रख पाना आसान नहीं है, जिसमें उसके साथ जेडीयू, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) और लोक जनशक्ति पार्टी है. लोकसभा चुनाव के बाद झारखंड में कांग्रेस ज्यादा सीटों की मांग कर रही थी, लेकिन हरियाणा में हार ने उसके पूरे गणित को ही बिगाड़ कर रख दिया है.

हरियाणा के चुनाव नतीजों ने ये जाहिर कर दिया है कि छोटे दल, निर्दलीय प्रत्याशी और आम आदमी पार्टी ने कई सीटों पर कांग्रेस पार्टी को भारी नुकसान पहुंचाया. महाराष्ट्र में भी अन्य की अच्छी उपस्थिति रही है, जिन्होंने बीते चुनावों में करीब एक चौथाई वोट शेयर पाया है और करीब 30 सीटों पर जीत दर्ज की है. झारखंड में भी छोटी पार्टियां और निर्दलीय उम्मीदवार करीब 30 फीसदी वोट शेयर पाया है और 2005 और 2009 की सरकार बनने के दौरान इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

जहां तक महाराष्ट्र की बात है तो ये हरियाणा और जम्मू कश्मीर की तुलना में सीटों के लिहाज से तीन गुणा बड़ा है. ये छह रीजन में बंटे हुए हैं- विदर्भ, नॉर्थ, वेस्टर्न, मराठवाड़ा, मुंबई, ठाणे-कोंकण. विदर्भ में बीजेपी वर्सेज कांग्रेस का मुकाबला है. मुंबई/ठाणे-कोंकण में ठाकरे का दबदबा रहा है. जबकि, वेटर्न हिस्सा में पवार का वर्चस्व रहा है. तो वहीं मराठवाडा बीजेपी और शिवसेना का मजबूत गढ़ रहा है, जहां पर ओबीपी में शामिल होने के लिए जबरदस्त मराठा आंदोलन देखा गया.

विदर्भ, वेस्टर्न महाराष्ट्र और मराठवाडा में महाविकास अघाडी ने महायुति को शिकस्त दी. यहां की 48 विधानसभा क्षेत्रों में महायुति के मुकाबले उसने बढ़त बनाई थी. महाविकास अघाडी लगातार विदर्भ में किसानों की परेशानी और मराठवाड़ा में मराठा आंदोलन का समर्थन किया. हालांकि, शहरी क्षेत्रों में जहां पर करीब 45 फीसदी आबादी है, बीजेपी राज्य के विकास के नाम पर वोट मांगती है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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