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Delhi Assembly Election: दिल्ली की पटपड़गंज सीट का उत्तराखंड कनेक्शन, पहाड़ फैक्टर कितना आएगा काम?

Delhi Assembly Election: दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, सत्ता में काबिज आम आदमी पार्टी ने अपने तमाम उम्मीदवारों का ऐलान भी कर दिया है. इस बार कुछ ऐसे चेहरे भी चुनावी मैदान में उतारे गए हैं, जो नए हैं या फिर दूसरे दलों से AAP में शामिल हुए हैं. फिलहाल सभी सीटों में से चर्चा पटपड़गंज सीट की हो रही है, जहां से दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम और आम आदमी पार्टी के नंबर दो नेता मनीष सिसोदिया ने चुनाव लड़ा था. पार्टी ने सभी को हैरान करते हुए इस बार सिसोदिया की जगह हाल ही में पार्टी का दामन थामने वाले अवध ओझा को इस सीट से उतार दिया है. ऐसे में इस सीट के बारे में कई ऐसी बातें हैं जो आपको जाननी जरूरी हैं. 

सीट बदलने को लेकर सवाल
पटपड़गंज सीट से चुनाव जीतने वाले मनीष सिसोदिया की सीट बदलकर इस बार उन्हें जंगपुरा से चुनावी मैदान में उतारा जा रहा है, जिसे लेकर राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चा हो रही है. लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर सिसोदिया की सीट क्यों बदली गई और इस पर पार्टी के डेब्यू करने वाले खिलाड़ी अवध ओझा को क्यों उतार दिया गया. 

सिसोदिया ने दिया जवाब
अब इसका जवाब हम दें उससे पहले खुद मनीष सिसोदिया का जवाब जान लीजिए. सिसोदिया ने जंगपुरा से टिकट मिलने के बाद पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल का धन्यवाद दिया और कहा कि वो इस बात से खुश हैं कि उन्हें ये जिम्मेदारी मिली है. इसके अलावा उन्होंने पटपड़गंज सीट का भी जिक्र किया और कहा कि ये उनके लिए कोई विधानसभा क्षेत्र नहीं बल्कि शिक्षा क्रांति का दिल था. उन्होंने बताया कि अवध ओझा के पार्टी में शामिल होने के बाद उनके चुनाव लड़ने की बात शुरू हुई, तो इस दौरान हमने सोचा कि एक शिक्षक के लिए इससे बेहतर सीट कौन सी हो सकती है. 

पटपड़गंज सीट का जातीय समीकरण
जब भी किसी विधानसभा क्षेत्र में चुनाव होता है तो यहां तमाम तरह के समीकरणों को साधा जाता है. दिल्ली में पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पटपड़गंज सीट पर भी कुछ ऐसा ही किया. बीजेपी ने इस सीट से रविंद्र सिंह नेगी को चुनावी मैदान में उतारा, जो उत्तराखंड के ठाकुर समुदाय से आते हैं. रविंद्र सिंह नेगी जैसे चेहरे को मनीष सिसोदिया के सामने उतारने से हर कोई हैरान था, लेकिन जातीय समीकरणों का गुणा भाग करके इस नाम पर मुहर लगी थी, जिसका नतीजा चुनाव में भी नजर आया. 

दिल्ली में शिक्षा क्रांति के जनक कहलाने वाले मनीष सिसोदिया को रविंद्र सिंह नेगी ने कड़ी टक्कर दी, 2019 के विधानसभा चुनाव में जहां आप का झाड़ू चल रहा था, वहीं पटपड़गंज सीट पर मामला फंसता हुआ नजर आया, आखिरी दौर की काउंटिंग तक सिसोदिया पिछड़ते दिख रहे थे. हालांकि बाद में 11वें राउंड से मनीष सिसोदिया आगे निकले और करीब 3500 वोटों से उन्होंने जीत दर्ज की. 

ये है उत्तराखंड कनेक्शन
अब आप समझ ही गए होंगे कि सिसोदिया को कड़ी टक्कर देने वाले रविंद्र सिंह नेगी को बीजेपी ने क्यों टिकट दिया था. दरअसल इस विधानसभा क्षेत्र में पहाड़वाद जमकर हावी है, यहां उत्तराखंड के प्रवासी लोग काफी ज्यादा संख्या में रहते हैं. खासतौर पर वेस्ट विनोद नगर, ईस्ट विनोद नगर और चंदन विहार इलाके में पहाड़ी लोगों की संख्या काफी ज्यादा है. इस सीट पर करीब 20% वोटर उत्तराखंड से हैं, जिनमें नेगी और रावत जाति के लोगों की तादात काफी ज्यादा है. ये उत्तराखंड के ठाकुर वोटर्स हैं, जो अपने राज्य की राजनीति में भी सबसे ज्यादा प्रभुत्व रखते हैं.  

अब अगर बीजेपी एक बार फिर रविंद्र नेगी को टिकट देती है तो वो इन तमाम ठाकुर वोटों को साधने की एक बार फिर कोशिश करेंगे. उत्तराखंड के लोग शहरों में पहाड़ कनेक्शन की तरफ झुकाव रखते हैं, ऐसे में पटपड़गंज के इस 20 परसेंट वोट पर हर किसी की नजर रहेगी. हालांकि पूर्वांचली कम्युनिटी के 25% वोटर भी चुनाव के नतीजे पलट सकते हैं, जैसा कि पिछली बार हुआ था. 

बीजेपी के लिए कई सालों का सूखा
हालांकि पिछले करीब तीन दशक से बीजेपी को इस सीट पर हार का ही सामना करना पड़ा है, 1993 में आखिरी बार बीजेपी ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी. इसके बाद से ही पटपड़गंज सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन 2013 में आम आदमी पार्टी ने इस विजय रथ पर लगाम लगाई और मनीष सिसोदिया यहां से विधायक बने. 

आसान कर दी बीजेपी की राह?
मनीष सिसोदिया के पटपड़गंज सीट से चुनाव नहीं लड़ने को लोग कई तरह से देख रहे हैं. कुछ लोगों का कहना है कि आम आदमी पार्टी ने बीजेपी के लिए इस सीट पर कई चीजें आसान कर दी हैं. बीजेपी उम्मीदवार अगर पहाड़वाद के झंडे के साथ-साथ पूर्वांचल के वोटर्स को भी साध लेते हैं तो ये आम आदमी पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है. इसीलिए अब पटपड़गंज की ये सीट अवध ओझा के लिए कांटों के ताज से कम नहीं है. 

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