पंजाब में बीजेपी की जमीन को कितना मजबूत कर पायेंगे कैप्टन अमरिंदर सिंह?

75 बरस की उम्र होते ही अपने नेताओं को चुनावी राजनीति से रिटायर करने वाली बीजेपी ने 80 साल के कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए अपने दरवाजे खोलकर सबको चौंका दिया है. दो बार पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके कैप्टन को सूबे में खासे जनाधार वाला नेता माना जाता रहा है लेकिन छह महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में चली आप की आंधी में वे खुद अपनी ही सीट नहीं बचा पाये थे. इसलिये सवाल उठ रहा है कि उनके बीजेपी में आने से क्या वाकई पार्टी पंजाब में अपनी जमीन मजबूत कर पायेगी?
हालांकि ये तो तय है कि मोदी सरकार में उन्हें मंत्रीपद नहीं मिलने वाला है, इसलिये कयास लगाये जा रहे हैं कि बीजेपी उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना सकती है.लेकिन अगर ऐसा हुआ, तो फिर पार्टी को अपने ही बनाये उम्र के नियम को तोड़ना पड़ेगा जिससे पार्टी बचना चाहेगी. एक अनुमान ये भी लगाया जा रहा है कि उन्हें किसी प्रदेश का राज्यपाल बनाया जा सकता है. अगर ऐसा हुआ, तो फिर वे सक्रिय राजनीति में हिस्सा नहीं ले सकते, लिहाजा बीजेपी जिस मकसद से उन्हें पार्टी में लाई है, वह पूरा ही नहीं हो पायेगा.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनावों में पंजाब में अपनी जमीन मजबूत करने के मकसद से ही उन्हें बीजेपी में शामिल किया गया है.बेशक इस विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की झाड़ू ने सबको साफ कर दिया लेकिन कैप्टन को आज भी पंजाब की राजनीति का बड़ा चेहरा माना जाता है.
सूबे के मालवा इलाके में उनकी खासी पकड़ है और वहीं पर लोकसभा की सबसे अधिक सीटें हैं.इसलिये कुछ सूत्र दावा कर रहे हैं कि उनकी लोकप्रियता का फायदा उठाने के लिए बीजेपी अपने बनाये नियम को अपवाद स्वरुप तोड़ भी सकती है क्योंकि पार्टी की रणनीति कैप्टन को पंजाब में अपने सबसे बड़े चेहरे के रुप में प्रोजेक्ट करने की है.
इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि पंजाब के किसानों के बीच कैप्टन की मजबूत पकड़ है.याद दिला दें कि सूबे का मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने किसान आंदोलन का समर्थन किया था.बेशक केन्द्र सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस हक़ीक़त से भी वाकिफ़ हैं कि पंजाब के किसानों की नाराजगी अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है.लिहाज़ा, बीजेपी के लिए कैप्टन अब एक ऐसा चेहरा बन जाएंगे, जो किसानों के बीच जाकर, उनसे घुल-मिलकर सरकार के प्रति उनकी इस नाराजगी को दूर करने में काफी हद तक कामयाब हो सकते हैं.
पंजाब में लोकसभा की कुल 13 सीट है. साल 2019 के चुनाव मे शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी गठबंधन ने 5 सीटों पर जीत हासिल की थी.इनमें से चार पर अकाली दल जबकि होशियारपुर की एकमात्र सीट पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को चार-चार सीटें मिली थीं. मोदी सरकार द्वारा लाये गए तीन कृषि कानूनों से नाराज होकर अकाली दल ने एनडीए से अपना नाता तोड़ लिया था. लेकिन सरकार द्वारा इन्हें वापस लेने के बाद हालात बदल चुके हैं.
चुनावों से पहले बीजेपी की कोशिश रहेगी कि अकाली फिर से एनडीए का हिस्सा बन जायें, ताकि एक तरफ जहां कैप्टन अमरिंदर का चेहरा कांग्रेस के पुराने वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब होगा, तो वहीं अकालियों के परंपरागत वोट बैंक का भी बीजेपी को फायदा मिलेगा. इसीलिये बीजेपी ने कैप्टन को अपने पाले में लाकर और अकालियों का साथ लेकर 2024 में अधिकतम सीटों पर कब्जा जमाने की रणनीति बनाई है.
हालांकि बीजेपी में आने से कैप्टन को भी व्यक्तिगत रुप से फायदा ये हुआ है की अब वह अपने बेटे-बेटी को एक राष्ट्रीय पार्टी के बैनर तले सूबे की राजनीति में स्थापित करने में कामयाब होंगे. चूंकि कैप्टन ने अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस (पीएलसी) का भी बीजेपी में विलय कर दिया है, लिहाजा उनके बेटे रणइंदर सिंह और बेटी जय इंदर कौर ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया है.
जय इंदर कौर फिलहाल अमरिंदर का राजनीतिक काम संभालती हैं और पंजाब के चुनाव में भी उनकी भूमिका पहली कतार में थी. इसलिये माना जा रहा है कि उनकी बेटी को भी बीजेपी में कोई अहम भूमिका मिल सकती है.जबकि बेटे रणइंदर सिंह को तो पंजाब के लोगों ने अभी से पिता की राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी मानना भी शुरु कर दिया है.
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.


























