'सतीश कौशिक की एक अलग पर्सनेलिटी थी, हर रोल बखूबी निभाते थे, जल्द चले गए'

लोकप्रिय एक्टर, कॉमेडियन, निर्माता और निर्देशक सतीश कौशिक ने 9 मार्च को इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उनके जाने से बॉलीवुड में शोक की लहर है. ये बहुत बड़ी क्षति इसलिए है क्योंकि एक राइटर, डायरेक्टर, एक्टर और प्रोड्यूसर बहुत कम लोग होते हैं जो इतना कुछ प्राप्त कर सकते हैं. इन्होंने तो बिल्कुल नीचे से काम करना शुरू किया. दिल्ली में ही शेखर कपूर के साथ मासूम फिल्म से अपना काम शुरू किया और फिर एक-एक सीढ़ी चढ़कर आगे बढ़ते गए. अपनी कंपनी भी खोली और फिर प्रोड्यूसर बने, एक्टर बने और डायरेक्टर की भूमिका में भी अपनी जगह बनाई. वे खुद से स्क्रिप्ट लिखते थे.
लिखने में भी वे बहुत माहिर थे और मेरा मुंबई में जो पहला काम रहा था तो उस समय 'जाने भी दो यारों' में वो एक्टर की भूमिका में थे. इस तरह का आदमी जिसने फिल्म के हर विधा में अपनी पहचान बनाई और अपने आप को स्थापित किया हो और इस उम्र में इतनी जल्दी चला जाता है तो नुकसान तो सभी का है. घर वालों को जो नुकसान हुआ है वो तो है ही लेकिन इंडस्ट्री का भी है. हमने तो बहुत सालों पहले एक बार इनके साथ काम किया था जब इन्होंने अपनी कंपनी शुरू की थी और एड शुरू किया था.
एनएसडी से शुरू हुआ था सफर
उसके बाद उनके साथ काम करने का तो मौका नहीं मिला, लेकिन मुंबई में हम यारी रोड पर रहते थे तो कभी-कभी पार्क में वॉक करते समय मिलना हो ही जाता था. एकाध बार दिल्ली जाते हुए फ्लाइट में मुलाकात हुई थी. ब्लैक फ्राइडे की परफॉर्मेंस को लेकर इन्होंने फोन करके मुझे बधाई दी थी. इसके बाद भी एकाध फिल्मों के लिए फोन करके बधाई दिया करते थे. ये हरियाणा से एनएसडी आए और फिर वहां से मुंबई और फिर वहां अपनी एक जगह बनाई. वहां पर इन्होंने बेस्ट लोगों के साथ काम किया चाहे डायरेक्टर हो, एक्टर्स हो या राइटर हो तो कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि इनकी यात्रा तो अपने आप में पूरी हो गई थी.
इस दुनिया से एक दिन तो सबको जाना है, लेकिन 66 साल की उम्र में जाना बहुत जल्दी है. जहां तक मैं उन्हें समझ पाया तो जब वे एक बार मुंबई पहुंच गए थे तो उनका फोकस सिर्फ काम पर था. वैसे उनकी हंसी और जोक्स सबको याद रहेंगे या उनके वन लाइनर सभी के जेहन में रहेंगे. वे काम के बीच-बीच में एक लाइन बोल दिया करते थे जिस पर सभी लोग हंस पड़ते थे. वो उनकी एक अलग पर्सनालिटी थी. लेकिन उनकी जो सबसे बड़ी उपलब्धि है, वो ये कि सतीश कौशिक काफी नीचे स्तर से काम करते हुए मुंबई तक पहुंचे और वहां पर बड़े-बड़े लोगों के साथ काम कर एक अलग मुकाम हासिल किया. ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है.
बड़ी जल्दी छोड़कर चले गए
सतीश कौशिक के निधन पर यही कह सकता हूं कि उनका जाना अभी बहुत जल्दी है. लोगों को हंसाना तो मुश्किल काम ही है. ये तो सभी लोग कहते हैं लेकिन अगर कोई कहे वे सिर्फ एक कॉमेडियन थे तो ऐसा नहीं है. एक्टिंग करते समय एक स्टैंप होती है और आप कॉमेडी के सिन्स करते रहते हैं लेकिन उस कॉमेडी के बीच में हार्ड कोर कमर्शियल फिल्मों में जब इमोशनल सीन करना होता था तो उसमें भी वे उतने ही खरे उतरे. आप जब उनकी फिल्में देखेंगे तो उस कॉमेडी के बीच में जब एकाध बार इमोशनल सीन करना होता था तब उन्होंने उतने ही अच्छे से किरदार को निभाया. चाहे वो मिस्टर इंडिया में किरदार की बात हो जिसमें जब बच्चों को भूख लगती थी, जो भाव उनके चेहरे पर आता था वो भी उसी तरह से निभाते थे.
सतीश कौशिक लोगों को पसंद थे. एक समय पर जब शक्ति कपूर, डेविड और कादर खान की एक टीम बनी हुई थी. ये सब लोग लोगों को हंसाते रहे हैं. लेकिन सतीश कौशिक ने तो श्याम बेनेगल के साथ भी काम किया चाहे वो मंडी हो या फिर जाने भी दो यारों हो, चाहे वो मासूम जैसी फिल्में हों तो इन फिल्मों में उन्होंने एक्टिंग भी की. और मासूम में तो कॉमेडियन का किरदार नहीं था सिर्फ दो या चार सीन का ही रोल था लेकिन अपना रोल उसमें सीरियस तरीके से ही निभाया. एक अभिनेता के तौर पर यह तो एक अलग बात होती है कि जब आप कमर्शियल फिल्म में काम कर रहे हैं, उसमें कॉमेडी भी करना है और उस जमाने में इस तरह की फिल्में बन रहीं थी.
उन्होंने हर तरह की फिल्में की. मिस्टर इंडिया में उनका कैलेंडर का रोल सभी को याद है. बाद में उन्होंने सलमान खान के साथ तेरे नाम जैसी फिल्में भी की और बाद में उन्होंने अपनी एक फिल्म जिसका नाम 'कागज' है वो भी बनाई. मिस्टर इंडिया में कैलेंडर के रोल के बाद 1997 में दीवाना मस्ताना में पप्पू पेजर का किरदार भी निभाया. बाद में इन्होंने साउथ में जाकर कादर खान और शक्ति कपूर के साथ बहुत सारी फिल्में की. अपनी जगह बनाई और खूब काम भी किया.
सतीश कौशिक की एक्टिंग थी लाजवाब
जब कोई शहर बदलकर जाता है तो यह तो तय है कि तो आपको हर किसी के पास ऐसी कहानियां मिल जाएंगी कि मैं वहां सोया, मुझे ये खाने को नहीं मिला. इसके लिए तो सभी को तैयार रहना पड़ता है. सब कोई उससे गुजरता है. लेकिन जो लगा रहता है, अडिग रहता है या मेहनत करने का काम है, राइटिंग भी कर ली, एक्टिंग का काम मिला तो एक्टिंग भी कर ली, जहां एडजस्ट करना है वो भी कर लिया. एक समय पर वे राइटिंग, एक्टिंग के साथ शेखर कपूर को असिस्ट कर ही रहे थे. जब आप कोई शहर बदलते हैं तो ये सारी चीजें देखनी पड़ती है. ये भी मुंबई आए, लेकिन ये काफी तेजी से एक के बाद एक अपने पायदान को पार करते गए क्योंकि वे सिर्फ एक्टिंग नहीं कर रहे थे, वो अपना राइटिंग भी कर रहे थे, डायरेक्शन में भी आ गए थे. इंडिपेंडेंट काम करना बाद में शुरू किया था. वो शेखर कपूर के साथ भी एक अभिनेता के तौर पर काम कर रहे थे, श्याम बेनेगल के साथ भी एक एक्टर के तौर पर काम कर रहे थे.
वे डेविड धवन के साथ भी काम कर रहे थे. वो उस दौर के साउथ की फिल्मों में भी काम कर रहे थे. वे सिनेमा के हर विधा के हिस्सा रहे. अपना एड भी बना रहे थे. टीवी सीरियल भी प्रोड्यूस की है और डायरेक्ट की है. मैं उनके फैंस के लिए सिर्फ एक ही चीज कहूंगा कि जीवन में एक ही चीज तय है वो है मृत्यु. उसमें हम लोग तो कुछ नहीं कर सकते हैं लेकिन उनके काम को हमेशा याद रख सकते हैं. ये एक प्लस प्वाइंट है कि आप इस प्रोफेशन में हैं तो आपको लोग बार-बार देखेंगे. बाकी ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूं कि उनको स्वर्ग में अपने चरणों में स्थान दें और मैं अपना सहानुभूति उनके परिवार, उनकी पत्नी और बच्ची के साथ प्रकट करता हूं.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल पवन मल्होत्रा से बातचीत पर आधारित है.]



























