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नवीन पटनायक की राजनीति ये बात साबित करती है कि पॉलिटिक्स में टाइमिंग का बड़ा महत्व है

नवीन पटनायक के बारे में ओडिशा में कहा जाता है 'जिसने भी उनको समझ लिया, समझो वो ब्रह्मा है.' कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि पटनायक जब तक चाहेंगे, ओडिशा में राज करेंगे. उनकी परफ़ेक्ट टाइमिंग ने उन्हें अजेय बना रखा है.

कहते हैं कि अगर टाइमिंग सही हो तो फिर आपको कोई हरा नहीं सकता है. बात सोलह आने सच है. टाइमिंग से मतलब, किस वक़्त क्या फ़ैसला करना है? इस मामले में नवीन पटनायक का कोई जवाब नहीं है. वे बेजोड नेता हैं. जब से राजनीति में आए, सत्ता हमेशा उनके साथ रही. दो साल वो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे. अब पिछले 18 सालों से वो ओडिशा के मुख्य मंत्री हैं. सिर्फ़ राजनीति में अपनी परफ़ेक्ट टाइमिंग की बदौलत. उन्हें उड़िया भाषा नहीं आती. तो क्या हुआ? ओडिशा के लोग उन्हें अपने माथे पर बिठाते हैं. पीएम नरेन्द्र मोदी भी नवीन बाबू की टाइमिंग के फ़ैन हैं. ख़ास तौर से जिस तरीक़े से पटनायक अपने विरोधियों को निपटाते हैं. उनकी टाइमिंग की नक़ल करने की कई नेताओं ने कोशिश की लेकिन सब फ़ेल हो गए.

नवीन पटनायक की टाइमिंग के ताज़ा शिकार बने हैं केन्द्रापाडा से लोकसभा के सांसद वैजयंत उर्फ़ जय पांडा. दो दिनों पहले उन्होंने एमपी के पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. क़रीब 10-12 सालों तक वो नवीन पटनायक के बेहद क़रीबी रहे. वो राज्यसभा में भी बीजू जनता दल के सांसद रह चुके हैं. उनकी पत्नी जागी मंगत ओडिशा के सबसे पॉपुलर न्यूज़ चैनल ओटीवी की मालकिन हैं. जय पांडा के घर अक्सर नवीन बाबू डिनर पर जाया करते थे. सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था. लेकिन पिछले दो-ढाई सालों से नवीन बाबू से उनकी बन नहीं रही थी. कहा जा रहा था कि जय पांडा लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में जा सकते हैं. लेकिन दो महीने पहले अचानक नवीन बाबू ने उन्हें पार्टी से सस्पेंड कर दिया. अब पांडा क्या करें? उन्होंने ने तो सोचा भी नहीं था कि उन पर इतनी जल्द एक्शन हो जायेगा. बीजेपी भी अब उन्हें अपने कैंप में लेने को बहुत दिलचस्पी नहीं दिखा रही है. मजबूरी में पांडा ने लोक सभा से इस्तीफ़ा दे दिया.

नवीन पटनायक की राजनीति ये बात साबित करती है कि पॉलिटिक्स में टाइमिंग का बड़ा महत्व है केन्द्रापाडा से लोकसभा के सांसद वैजयंत उर्फ़ जय पांडा. दो दिनों पहले उन्होंने एमपी के पद से इस्तीफ़ा दे दिया है.

ओडिशा के सीएम रहे बीजू पटनायक के निधन के बाद उनके नाम पर नवीन पटनायक ने नई पार्टी बनाई. नाम रखा गया- बीजू जनता दल. बात 26 दिसंबर 1997 की है. जनता दल से अलग होने के बाद बीजेडी एनडीए सरकार में शामिल हो गई. नवीन पटनायक केन्द्र में मंत्री बने. साल 2000 में ओडिशा में विधानसभा के चुनाव हुए. उन दिनों बीजेडी में विजय महापात्र सबसे ताक़तवर नेता हुआ करते थे. वही सबको टिकट बॉंट रहे थे. नवीन पटनायक को सब अनाड़ी समझते थे. वो बीजेडी के कार्यवाहक अधयक्ष थे. लेकिन सारे फ़ैसले महापात्र करते थे. वे केन्द्रापाडा से चुनाव लड़ते थे. नामांकन का आख़िरी दिन था. लेकिन नवीन बाबू ने टिकट अपने एक क़रीबी पत्रकार को दे दिया. चुनाव बाद वे सीएम बन गए और महापात्र फिर कभी चुनाव नहीं जीत पाए. एक झटके में पटनायक ने उनका राजनैतिक करियर चौपट कर दिया. लोगों ने पहली बार उनकी टाइमिंग का लोहा माना.

बीजू पटनायक के साथी रहे नवीन पटनायक सरकार में कई सीनियर मंत्री उन्हें बॉस मानने को तैयार नहीं थे. पटनायक को वो सब बच्चा समझते थे. वित्त मंत्री राम कृष्ण पटनायक और शहरी विकास मंत्री नलिनी मोहंती ऐसे ही नेता थे. कैबिनेट की मीटिंग में ही ऐसे मंत्री नवीन बाबू को खरी-खोटा सुना दिया करते थे. आए दिन इनके सुपर सीएम बनने की शिकायतें मिल रही थीं. अचानक एक दिन सवेरे ख़बर आई कि रामकृष्ण और नलिनी समेत 5 मंत्री बर्खास्त कर दिए गए. नवीन बाबू को सीएम बने छह महीने ही हुए थे. पांचो नेताओं का भविष्य बीजेडी में ख़त्म हो गया. बीजेडी के सभी नेताओं ने नवीन बाबू के आगे सरेंडर कर दिया.

बीजेडी और बीजेपी के रिश्तों में दरार आने लगी थी. सीटों के बंटवारे पर पेच फंस गया था. ये बात 2009 के लोकसभा चुनाव की है. नवीन पटनायक से बातचीत के लिए बीजेपी नेता चंदन मित्रा उनके घर पर बैठे रहे. दूसरे दरवाज़े से बाहर निकल कर पटनायक ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ने का एलान कर दिया. सच तो ये है कि पटनायक को बीजेपी बोझ लगने लगी थी. वे अब इससे मुक्ति पाना चाहते थे. नवीन बाबू का फ़ैसला सही साबित हुआ. लोकसभा चुनाव में बीजेपी अपना खाता तक नहीं खोल पाई. जबकि बीजेडी को 14 सीटें मिलीं. नवीन पटनायक ने अपनी टाइमिंग से बीजेपी को चारों खाने चित कर दिया.

प्यारीमोहन महापात्र, नवीन पटनायक के राजनीतिक सलाहकार थे. बतौर आईएएस वो बीजू पटनायक के प्रमुख सचिव भी रहे. जब बीजू बाबू ओड़िशा के सीएम थे. नवीन बाबू राज्य के मुख्यमंत्री बने तो प्यारीमोहन फिर से ताक़तवर हो गए. उनका क़द कुछ ऐसा ही था जैसा मोदी राज में अमित शाह का है. अफ़सर से लेकर मंत्री तक प्यारीमोहन के कहने पर ही चलते थे. वो 2004 में राज्यसभा के सांसद भी बन गए थे. ओडिशा में उन्हें सुपर सीएम कहा जाने लगा था. कहते हैं कि उनके बिना न पार्टी और न ही सरकार में पत्ता हिलता था. नवीन पटनायक जब अपने पहले विदेश दौरे पर लंदन में थे. प्यारीमोहन ने उन्हें सत्ता से हटाने की कोशिश की. पटनायक को लंदन दौरा छोड़ कर ओडिशा लौटना पड़ा. बड़ी चतुराई से उन्होंने प्यारीमोहन और उनके समर्थकों को ठिकाने लगा दिया. प्यारी बीजेडी से बाहर कर दिए गए.

नवीन बाबू के बारे में ओडिशा में कहा जाता है 'जिसने भी उनको समझ लिया, समझो वो ब्रह्मा है.' कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि नवीन बाबू जब तक चाहेंगे ओडिशा में राज करेंगे. उनकी परफ़ेक्ट टाइमिंग ने उन्हें अजेय बना रखा है.

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