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...तो इंदिरा की राह चले पीएम मोदी!

कहते है समय अपने आप को दोहराता है और ऐसा ही कुछ आजकल देखने को मिल रहा है. हम अगर 70 के दशक की राजनीति की बात करें तो उस समय इंदिरा गांधी एक बडे चेहरे के रूप में थी जिस तरह आज नरेन्द्र भाई मोदी है. इंदिरा उन दिनों अपने विरोधियों पर वार करते हुए कहती थी कि मैं कहती हूं कि गरीबी हटाओ और वो कहते है इंदिरा को हटाओ...कुछ इसी तहर की बात नरेन्द्र मोदी भी अपने भाषणों कहते नज़र आते है. इसमें कोई दोराय नहीं कि नरेन्द्र मोदी इस समय की राजनीति का एक बडा चेहरा है इसी के चलते लोग और राजनीतिक पार्टियां उन पर डिक्टेटरशिप का आरोप लगाती हैं दूसरे राजनीतिक दल ही नहीं खुद उनकी पार्टी बीजेपी में दबी जुवान में नेता यह कहते नज़र आ जाएंगे. लेकिन बात यहां देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की हो रही है. जहां चुनावी रण सज़ चुका है. लखनऊ के रमाबाई पार्क में हुई बीजेपी की परिवर्तन रैली में एक बार फिर नरेन्द्र मोदी ने इंदिरा गांधी के ही अंदाज में भाषण के दौरान कहा कि मैं भ्रष्टाचार हटाना चाहता हूं सपा-बसपा मुझे. कुछ मिलाकर नरेद्र मोदी इंदिरा की तरह ही खुद को चुनावी मुद्दा बनाना चाहते हैं. सत्तर के दशक में जिस तरह सभी राजनीतिक पार्टीयां इंदिरा के विरोध में आ गई थीं और खुद उनकी पार्टी में फूट पड़कर उनके नेता जनसंघ की सरकार में शामिल हो गए थे उस समय भी नरेन्द्र मोदी की ही तरह देश की एक ही नेत्री इंदिरा हुई करती थीं. भले ही आज के भाषण में पीएम नरेन्द्र मोदी ने भारी जन सैलाब को देखते हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह का जिक्र किया हो लेकिन देखा जाए तो यूपी में बीजेपी के पास कोई सर्वमान्य चेहरा नहीं जो नरेन्द्र मोदी जैसा हो. हम आपको याद दिला दें कि लखनऊ की तरह ही बिहार चुनाव में 4 मार्च 2014 को नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में कहा था कि मोदी कहता है मंहगाई को रोको, वो कहते हैं कि मोदी को रोको. इस तरह की शैली इंदिरा की ही थी वह अपने आप को उस समय देश में एक मात्र नेता मानती थी जिस तरह आज मोदी को माना जा रहा है. लेकिन इंदिरा गांधी का जादू कुछ इस तरह खत्म हुआ कि 1975 में देश में आपातकाल की घोषणा खुद इंदिरा ने की. कुछ मिलाकर बात यह है कि भले ही नरेन्द्र मोदी अपने आप को पंडित दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और अटल बिहारी बाजपेयी के पद चिन्हों पर चलने वाला बताते हों लेकिन उनकी शैली पूरी तरह से इंदिरा गांधी जैसी नज़र आती है. अपने 36 मिनट के भाषण में जिस तरह पीएम मोदी ने जनता के सामाने प्रश्न रखे और और अपनी चिर परिचित शैली में अपने विरोधियों पर तीर छोड़े कुछ इसी तरह का अंदाजे बयां इंदिरा की भी शैली में था लेकिन एक वक्त वह आया जब इंदिरा को बुरी तरह हार का समाना करना पड़ा. बिहार में तो बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा यह तो सभी जानते हैं लेकिन जिस तरह नरेन्द्र मोदी अपने खुद के चेहरे पर यूपी फतेह करने की बात सोच रहे हैं वह अभी वक्त की कोख में है क्योंकि यूपी में कोई ऐसा क्षेत्रीय नेता भी नहीं जिसके चेहरे पर चुनाव लड़ा जा सके. जिसको लेकर नरेन्द्र मोदी एक मात्र चेहरे के रूप में व्यक्तिवाद की राजनीति करने में लगे हैं और अपने आप को जनता के सामने ऐसे पेश कर रहे है कि "आई एम द इश्यू".
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