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Blog: बीजेपी-एनसीपी की सरकार बनी: महाराष्ट्र के सियासी खेल का असली मदारी कौन?

राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश करने से मात्र एक दिन पहले भतीजा अजित पवार महाराष्ट्र में कांग्रेस और शिवसेना नेताओं के साथ चल रही गोपनीय बैठक के बीच से उठकर अचानक निकल जाता है और चाचा शरद पवार के कान तक नहीं खड़े होते!

क्या आप गुमसुम और उदास रहते हैं? क्या आपको बहुत दिनों से कोई शॉक नहीं लगा है? क्या आप बहुत दिनों से पेट पकड़-पकड़ कर हंसे नहीं हैं? चिंता मत कीजिए. आपके इन सभी मर्जों की एक ही दवा है- महाराष्ट्र का राजनीतिक घटनाक्रम. आज सुबह 8 बजे जब महाराष्ट्र के ज्यादातर लोग दंतमंजन कर रहे होंगे, ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे होंगे, ठीक उसी वक्त देवेंद्र फडणवीस राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे. जी नहीं, शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की घर वापसी के चलते नहीं बल्कि एनसीपी विधायक दल के नेता अजित पवार की घरफोड़ी के चलते. शुक्रवार शाम तक कांग्रेस-एनसीपी के सहयोग से शिवसेना के सरकार बनाने की चर्चाएं थीं लेकिन शनिवार सुबह खेल बदल गया. देवेंद्र फडणवीस के दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री पद का 'ख्वाब' देख रही शिवसेना को यकीनन तगड़ा शॉक लगा होगा. आपको शॉक लगा?

चाचा शरद पवार की पार्टी तोड़कर बीजेपी की गोद में जा बैठने वाले अजित पवार का दावा है कि वह राज्य के किसानों की लगातार हो रही अनदेखी और दुर्दशा से इतने मर्माहत थे कि महाराष्ट्र को स्थिर सरकार देने से वह खुद को रोक नहीं सके. तो क्या यह अनदेखी वर्षों से सत्ता से बाहर चल रही एनसीपी या कांग्रेस कर रही थी या सत्तारूढ़ बीजेपी? ये वही अजित पवार हैं, जिन्होंने सरकार में मंत्री रहते हुए 7 अप्रैल 2013 को महाराष्ट्र में छाए भयंकर सूखे के संकट पर 55 दिन तक उपवास करने वाले किसान से कहा था कि अगर बांध में पानी नहीं है, तो क्या हमें उसमें पेशाब करना चाहिए!

और आपके गुमसुम और उदास रहने की तो अजित पवार ने कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ी क्योंकि उन्होंने आपको दिल बहलाने के लिए दो फेमस डायलॉग सौंप दिए हैं- 1) राजनीति में कुछ भी नामुमकिन नहीं है. 2) इतिहास अपने आपको दोहराता है. बीजेपी को समर्थन देकर खुद अजित पवार ने नामुमकिन को मुमकिन करके दिखा दिया है और शरद पवार का 1978 वाला इतिहास दोहरा दिया है. 41 साल पहले चाचा शरद पवार ने सीएम बनने के लिए पार्टी छोड़ी थी, आज भतीजे ने उप-मुख्यमंत्री पद लेकर पार्टी तोड़ने की कोशिश की है. शरद पवार ने कहा है कि अजित का बीजेपी को समर्थन देने का फैसला निजी है और उनकी सांसद बेटी सुप्रिया सुले को शॉक लगा है कि जिंदगी में अब किसका भरोसा करें, इस तरह कभी धोखा नहीं मिला.

शरद पवार जिसे निजी फैसला बता रहे हैं, वह ईसबगोल की भूसी खाकर भी पचाए नहीं पच रहा है. आप देखिए कि इधर वह शिवसेना तथा कांग्रेस के केंद्रीय और राज्यस्तरीय नेताओं समेत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री, दीगर मंत्री और न्यूनतम साझा कार्यक्रम को लेकर दिन-रात बातचीत कर रहे हैं और उधर उनका किसानों की समस्याओं को लेकर पीएम मोदी के साथ भेंटवार्ता का कार्यक्रम भी बन जाता है! राजनीतिक गलियारों में शोर उठता है कि सीनियर पवार के सामने राष्ट्रपति पद और एनसीपी को केंद्र में जिम्मेदारी दिए जाने का गाजर लटकाया गया है. इतना ही नहीं, पीएम मोदी राज्यसभा में एनसीपी सांसदों के सदाचार की तारीफों के पुल बांधने लगते हैं!

राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश करने से मात्र एक दिन पहले भतीजा अजित पवार महाराष्ट्र में कांग्रेस और शिवसेना नेताओं के साथ चल रही गोपनीय बैठक के बीच से उठकर अचानक निकल जाता है और चाचा शरद पवार के कान तक नहीं खड़े होते! महाराष्ट्र की सियासत को समझने वाला मामूली विश्लेषक भी जानता है कि अजित पवार की राजनीतिक हैसियत इतनी नहीं है, जो वह अकेले दम पर एनसीपी को लेकर इतना बड़ा फैसला ले सकें और शरद पवार के दम पर जीत कर आए सारे विधायक अजित के कहने पर रातोंरात बीजेपी को समर्थन दे दें. दया! कहानी में कोई ट्विस्ट जरूर है!

समकालीन भारतीय राजनीति के शरद पवार जैसे असली चाणक्य की अगली चाल को भांपना किसी के बस की बात नहीं है. दोबारा शपथ लेने के बाद फडणवीस ने सिर्फ अजित पवार का नाम लिया है, शरद पवार का नहीं. जब यह बात आईने की तरह स्पष्ट हो चुकी थी कि महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस मिलकर सरकार बनाने जा रही हैं, तब अचानक मंजर कैसे बदल गया? क्या मतदाताओं को महज इस दिशा में सोचने के लिए व्यस्त कर दिया गया है कि भतीजे ने चाचा को ऐन वक्त पर धोखा दे दिया? हालांकि अजित भी बखूबी जानते हैं कि उप-मुख्यमंत्री पद कोई संवैधानिक पद नहीं है और यह सजावटी तथा सौदेबाजी का उपहार मात्र होता है. ऐसे में क्या इसे लगभग एक साथ पारी शुरू कर रही केंद्र और राज्य सरकार की मलाई में हिस्सेदार बनने की सियासत के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए?

शिवसेना के साथ महाराष्ट्र में सरकार के गठन को लेकर शरद पवार दिल्ली जाकर सोनिया गांधी से वार्ताएं जरूर कर रहे थे लेकिन समझा जा सकता है कि सोनिया के विदेशी मूल को मुद्दा बनाकर कांग्रेस के टुकड़े करने वाले पवार के दीगर राजनीतिक इतिहास को लेकर भी उनके मन में क्या भावनाएं होंगी. शायद इसीलिए कांग्रेस सारी कवायद को रबर की तरह खींचती रही. बीजेपी-शिवसेना के रास्ते अलग होने के बाद राजनीतिक विश्लेषकों के कान यों भी खड़े हो गए थे कि एनसीपी मौका मिलते ही बीजेपी के साथ जा सकती है, क्योंकि 2014 में भी उसने बीजेपी को समर्थन दिया था. अजित पवार ने यह आशंका सच साबित कर दी. अब राजनीतिक खो-खो के खेल में शिवसेना कह रही है कि अजित पवार ने शरद पवार को धोखा दिया है, कांग्रेस शरद पवार पर धोखा देने का आरोप लगा रही है, शरद पवार कह रहे हैं कि अजित पवार ने दगा की है और अजित पवार कह रहे हैं कि उन्‍होंने अपने चाचा को पूरे घटनाक्रम से पहले ही अवगत करा दिया था. तब चाचा शिवसेना और कांग्रेस को बैठकों में निरर्थक क्यों उलझाए हुए थे?

बीजेपी-एनसीपी की नवगठित सरकार के लिए विधानसभा के फ्लोर पर बहुमत साबित करने, दल-बदल कानून के प्रावधान के तहत एनसीपी के अलग गुट को मान्यता मिलने का तकनीकी पहलू और सियासी समीकरण बहसतलब हैं, लेकिन एनसीपी प्रवक्ता प्रवक्ता नवाब मलिक ने दावा किया है कि पार्टी ने अपने सभी विधायकों के हस्ताक्षर शिवसेना के साथ गठबंधन सरकार बनाने के लिए थे और इसी का बेजा इस्तेमाल आज शपथ ग्रहण के लिए कर लिया गया. यह तो किसी के एटीएम से रुपए निकाल लेने या किसी का बैंक एकाउंट ही हैक कर लेने जैसी बात हुई!

किसी पार्टी के एकाउंट से पूरे विधायकों की जमा पूंजी की हैंकिंग सुनकर दिमाग घूम गया न? अगर नहीं, तो पूछा जाना चाहिए कि प्रेस कांफ्रेंस में बड़े-बड़े दावे करने वाले शरद पवार 1500 करोड़ रुपए के सिंचाई घोटाले के आरोपी भतीजे को विधायक दल नेता पद से हटाकर उसे उसकी असली जगह दिखाने के लिए क्या कर रहे हैं? अपने विधायकों को अपने पीछे फिर से लामबंद करने की उनकी रणनीति क्या है? शिवसेना का आरोप है कि आननफानन में राष्ट्रपति शासन हटाने के लिए आज दिल्ली में सूर्योदय से पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई गई थी! ऐसे में पूछा जाना चाहिए कि यह बैठक किस बात की आश्वस्ति मिलने पर बुलाई गई थी? अब अगर एनसीपी में बड़ी बगावत होती है और नवगठित सरकार बची रहती है तो स्पष्ट हो जाएगा कि महाराष्ट्र में रातोंरात सियासी समीकरण बदल कर रख देने वाला असली मदारी कौन है?

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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