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कड़ाके की ठंड और चुनावी तपिश वाले कश्मीर में राहुल की यात्रा कोई गुल खिलाएगी?

जम्मू-कश्मीर में कड़ाके की ठंड पड़ रही है लेकिन वहां विधानसभा चुनाव की तपिश ने दस्तक दे दी है. इसका असर जनवरी के तीसरे हफ्ते से दिखना शुरु हो जायेगा, जब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा इस केंद्रशासित प्रदेश में प्रवेश करेगी.ऐसे कयास हैं कि ठंड कम होते ही वहां अप्रैल-मई में चुनाव हो सकते हैं.लेकिन उससे पहले कांग्रेस राहुल की इस यात्रा के जरिये वहां के सियासी माहौल को बदलने की भरपूर कोशिश करेगी क्योंकि आठ दिनों तक प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से गुजरते हुए श्रीनगर पहुंचकर ये खत्म होगी.

3500 किलोमीटर की सड़क नापने के बाद कांग्रेस के लिए वह दिन खास तो होगा लेकिन उसका पहला इम्तिहान भी जम्मू-कश्मीर से ही शुरु होगा  क्योंकि सबसे पहले वहीं पर चुनाव होंगे. उसके बाद इस साल में अन्य आठ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे ही तय करेंगे कि राहुल गांधी इस यात्रा से लोगों का मिज़ाज़ बदल पाने में किस हद तक कामयाब हुए हैं.

हालांकि बीजेपी को टक्कर देने और उसे प्रदेश की सत्ता से बाहर रखने के मकसद से क्षेत्रीय दलों का बनाया गया 'गुपकार अलायन्स' अब बिखर चुका है,जिसका सियासी फ़ायदा मिलने की उम्मीद बीजेपी लगाये बैठी है.गुपकार बनाया तो इसलिये गया था कि राज्य को मिला विशेष दर्जा फिर से बहाल किया जाये और इसके लिये हर पहलू से केंद्र सरकार के इस फैसले के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी जाए. लेकिन उसका सियासी मकसद यही है कि बीजेपी को राज्य की सत्ता में आने से किसी भी तरह से रोका जाए.लेकिन पिछले साल नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुखिया फारुक अब्दुल्ला ने खुद को गुपकार से अलग करते हुए ऐलान कर दिया कि उनकी पार्टी महबूबा मुफ्ती की पीडीपी के साथ मिलकर आगामी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेगी.उसके बाद बीते नवंबर में उन्होंने कश्मीर घाटी की सब्जी 47 सीटों पर अपनी पार्टी के उम्मीदवारों का ऐलान भी कर दिया.

धारा 370 निरस्त किये जाने के बाद गुपकार के नेताओं खासकर महबूबा मुफ्ती ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को लेकर जिस तरह का अपमानजनक बयान दिया था,तभी गृह मंत्री अमित शाह ने गुपकार को एक नापाक गठबंधन बताते हुए कहा था कि ये वे नेता हैं,जो पाकिस्तानी आतंकवादियों के लिए लाल कालीन बिछाकर उनकी आवभगत करते हैं. लेकिन कांग्रेस की रणनीति है कि गुपकार के बिखराव का सियासी फायदा बीजेपी को न मिल सके, इसीलिये उसने समान विचारधारा वाले क्षेत्रीय दलों के नेताओं से अपील की है कि वे भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होकर सूबे की जनता को संदेश दें कि हम सबकी लड़ाई नफ़रत और डर पैदा करने वाली बीजेपी से ही है.

दरअसल,कांग्रेस भी इसे अपने लिये एक अच्छा प्लेटफार्म इसलिये मान रही है कि सूबे में जनाधार रखने वाले नेता अगर यात्रा से जुड़ते हैं,तो इससे पार्टी की सियासी जमीन वहां और मजबूत होगी.इसीलिये कांग्रेस नेता इस कोशिश में जुटे हैं कि फारुक अब्दुल्ला, उनके बेटे उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे दमदार नेता कश्मीर घाटी में कहीं भी इस यात्रा में हिस्सा जरुर लें.हालांकि फिलहाल घाटी के किसी भी बड़े नेता ने ये ऐलान नहीं किया है कि वे यात्रा में शामिल होंगे.

लेकिन सच तो ये है कि चुनाव होने से पहले तीन बातों ने जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक और जनसंख्या के लिहाज़ से पूरा नक्शा ही बदल दिया है.पहला,धारा 370 का निरस्त होना. दूसरा,इसके विरोध में गुपकार अलायन्स बनना और फिर उसका बिखरना.और  तीसरा ये कि आबादी के लिहाज से विधानसभा सीटों का परिसीमन होना.

परिसीमन के बाद राज्य में विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो गई है.इनमें 43 सीटें हिन्दू बहुल जम्मू क्षेत्र में है, जबकि मुस्लिम आबादी वाली कश्मीर घाटी में 47 सीटें हैं.हालांकि देश का सबसे संवेदनशील सूबा होने के नाते वहां शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव करवाना,चुनाव आयोग और हमारे सुरक्षा बलों के लिए बड़ी चुनौती होगी क्योंकि पाकिस्तान अपनी कोई करतूत करने से बाज़ नहीं आयेगा. बीजेपी को विकास के एजेंडे के अलावा गुपकार के बिखराव के साथ ही परिसीमन से फायदा होने की उम्मीद है.लेकिन देखना ये होगा कि भारत जोड़ो यात्रा सूबे की सियासत में क्या नया गुल खिलाती है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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