पीएम की तारीफ करने से क्या बिहार को मिल जाएगा विशेष राज्य का दर्जा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो दिन पहले अपने इंटरव्यू में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ क्या कर दी कि उन्हें फिर से अपना पुराना राग अलापने का ऐसा मौका मिल गया जो एनडीए गठबंधन के लिए थोड़ी मुश्किल को पैदा कर ही सकता है. नीतीश की पार्टी जनता दल यू ने पीएम मोदी की इस तारीफ को लपकने में जरा भी देर नहीं लगाई और पूछ लिया कि फिर केंद्र सरकार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं दे रही है? वैसे यह एक ऐसी मांग है जिसे नीतीश कुमार पिछले एक दशक से उठाते आ रहे हैं. ये जानते हुए भी कि नियम-कानून के दायरे में रहते हुए केंद्र के लिए ऐसा कर पाना नामुमकिन है. इसीलिये विपक्षी दल नीतीश सरकार पर लगातार ये आरोप लगाते रहे हैं कि वे जनता की सहानुभूति बटोरने के लिए इस मुद्दे पर शुरु से ही राजनीति करते आ रहे हैं.
दरअसल, किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने को लेकर कुछ विशेष नियम बनाए गए हैं. न तो ये लॉलीपॉप थमाने जैसा है और न ही केंद्र में बैठी कोई भी सरकार ये अधिकार देने में अपनी मनमर्जी चला सकती है. फिलहाल देश के 29 राज्यों में से 11 को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है लेकिन पांच राज्य ऐसे हैं जो विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की गुहार समय-समय पर केंद्र सरकार से लगाते आ रहे हैं. इनमें बिहार भी शामिल है, जहां बीजेपी भी सत्ता में भागीदार है. हालांकि इस बार ये मांग उठाने के लिए नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के अध्यक्ष ललन सिंह को आगे किया है. उन्होंने गुरुवार को पीएम मोदी को संबोधित करते हुए अपने ट्वीट में लिखा, "नरेंद्र मोदी जी, लोहिया-जेपी, जॉर्ज फर्नान्डिस व कर्पूरी को आदर्श मानकर नीतीश कुमार ने बिहारवासियों को ही अपना परिवार माना और उनकी सेवा की. "सामाजिक न्याय के साथ विकास" का अभूतपूर्व मॉडल भी दिया." आगे उन्होंने कहा, "हर घर शिक्षा, सड़क, बिजली व शुद्ध नल-जल नीतीश कुमार से पहले शायद ही किसी व्यक्ति की सोच रही हो. विकास व बदलाव जगजाहिर है, विपरीत परिस्थितियों में भी बिहार तीव्रता से आगे बढ़ा है. विशेष राज्य का दर्जा मिलने से राष्ट्रीय औसत को शीघ्र छू लेगा. देश के प्रधान, बिहार पर दें ध्यान."
लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस मांग को सीएम नीतीश कुमार पिछले कई वर्षों से काफी ज़ोर-शोर से उठाते रहे हैं. वैसे इस समय भारत के 11 राज्यों- असम, जम्मू एवं कश्मीर, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्जा हासिल है. लेकिन पिछले कुछ सालों में बिहार के अलावा आंध्र प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और गोवा ने भी विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग केंद्र से की है. पर, सवाल उठता है कि केंद्र सरकार इस मांग को पूरा करने से आखिर कतराती क्यों है? तो इसका जवाब ये है कि इसके लिए जो विशेष नियम बनाये गए हैं, उनमें पांच महत्वपूर्ण बिंदु है, जिसे पूरा करने वाले राज्य को ही विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सकता है.
पहला ये कि अगर वह राज्य दुर्गम क्षेत्रों वाला पर्वतीय भूभाग हो, तो उसे यह दर्जा दिया जा सकता है. दूसरा, किसी राज्य की कोई भी सीमा अगर अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगती हो तो भी वह विशेष राज्य का दर्जा पाने का हकदार बन सकता है. तीसरा, राज्य के प्रति व्यक्ति आय और गैर-कर राजस्व बेहद कम होने पर भी यह दर्जा दिया जा सकेगा. चौथा, किसी राज्य में आधारभूत ढांचा नहीं होने या पर्याप्त नहीं होने पर भी उसे विशेष राज्य का दर्जा प्रदान किया जा सकता है. पांचवा ये कि ऐसे किसी राज्य को भी विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सकेगा जिसमें जनजातीय यानी एसटी की जनसंख्या की बहुलता हो या फिर जनसंख्या का घनत्व बेहद कम हो.
लेकिन इन पांच पहलुओं के अलावा किसी राज्य का पिछड़ापन, वहां की विकट भौगोलिक स्थितियां या फिर उसकी सामजिक समस्याएं भी विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने का एक आधार बन सकती हैं. तो अब सवाल उठता है कि केंद्र की कोई भी सरकार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को पूरा क्यों नहीं कर पा रही? इसका जवाब भी उन्हीं पांच विशेष नियमों से जुड़ा है कि बिहार इनमें से कोई भी शर्त पूरी नहीं करता है. बिहार का कोई हिस्सा किसी अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा हुआ नहीं है और न ही राज्य के किसी भी हिस्से को दुर्गम इलाका कहा जा सकता है. इसके अलावा जनजातीय आबादी वाला झारखंड पहले ही यानी साल 2000 में एक अलग राज्य बन चुका है. लिहाज़ा, अब बिहार की आबादी में जनजातीय जनसंख्या की बहुलता भी नहीं है. चूंकि राज्य में पर्याप्त आधारभूत ढांचा भी है और बिहार के लोगों के प्रति व्यक्ति आय और राज्य का गैर-कर राजस्व भी कम नहीं है. मोदी सरकार अगर उसे विशेष राज्य का दर्जा देना भी चाहे तो भला कैसे दे?
दरअसल, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली UPA सरकार ने ही लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी थी कि विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने का मुद्दा सबसे पहले राष्ट्रीय विकास परिषद की अप्रैल 1969 में हुई बैठक के दौरान 'गाडगिल फॉर्मूला' के अनुमोदन के वक्त उठा था. सबसे पहले साल 1969 में ही असम, जम्मू एवं कश्मीर और नागालैंड को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था. इसके बाद अगली पंचवर्षीय योजना के दौरान यह दर्जा पांच और राज्यों - हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम और त्रिपुरा को भी दे दिया गया. फिर 1990 में दो और राज्यों - अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम को यह दर्जा दिया गया.आखिरी यानी साल 2001 में उत्तराखंड के गठन के साथ ही उसे भी विशेष राज्य का दर्जा दे दिया गया.
बिहार की राजनीति के जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार के लिए ये एक ऐसा मुद्दा है जिसके जरिए वे एक तरफ तो विपक्ष को मात देने की सियासी चाल चलते हैं तो वहीं दूसरी तरफ इसी बहाने वे राज्य की जनता से सहानुभूति बटोरने की राजनीति भी करते है. हालांकि बिहार से ही ताल्लुक रखने वाले केंद्र सरकार के एक मंत्री साफ-साफ कह चुके हैं कि मौजूदा प्रावधानों के तहत बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता. बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता RJD के तेजस्वी यादव भी ये बात कई बार दोहरा चुके हैं कि इस मसले पर नीतीश कुमार सिर्फ राजनीति करते हैं और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाना उनके लिए संभव नहीं है.
इसलिये सवाल उठता है कि पीएम के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर नीतीश बाबू को कहीं यह गलतफहमी तो नहीं हो गई कि मोदी सरकार उनकी बात मानने के लिए सारे नियम ताक पर रखने वाली है?
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