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लोकसभा चुनाव परिणाम 2024

UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
00
OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
00
OTH
DELHI (07)
07
NDA
00
INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

जेल से बाहर आनंद मोहन: क्यों नीतीश कुमार का ये कदम खौफनाक है, लेकिन हैरान करनेवाला नहीं

बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन गुरुवार को जेल से रिहा हो गए. आनंद मोहन गोपालगंज के पूर्व IAS अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद आजीवन जेल में सजा काट रहे थे. बिहार की नीतीश सरकार ने कारा अधिनियम में बदलाव करके आनंद मोहन समेत 26 दुर्तांत अपराधियों को जेल से रिहा किया. इस कदम के बाद नीतीश सरकार की जमकर आलोचना हो रही है. डीएम जी कृष्णया की पत्नी ने इस घटना को दुखद बताया है और इस फैसले की आलोचना की है.

लेकिन, पहली बात तो यह कि छोटन शुक्ला नामक एक अपराधकर्मी थे और बाहुबली थे और वो आनंद मोहन के पार्टी के नेता भी थे. उनकी हत्या हो गई थी और लोगों ने उनकी हत्या के विरोध में एक जुलूस निकाला था. ना उन हत्यारों से और ना ही वहां के पुलिस-प्रशासन से जी कृष्णय्या साहब का कोई ताल्लुक था.

वह तो गोपालगंज से थे और शुक्ला की हत्या वैशाली और उधर के इलाके में हुई थी. कृष्णाया राहगीर थे. वह उस रास्ते में आ रहे थे, जी कृष्णय्या दलित समाज के थे. उनका बड़प्पन ये था कि जब वे भीड़ का शिकार हुए तो लोगों ने उनके अंगरक्षक को खींच लिया था. वो उसको छुड़ाने के लिए लोगों से बात करना चाहते थे. इनका गाड़ी का ड्राइवर भी गाड़ी को दूसरी तरफ मोड़ लिया था और इनको बचाना चाहता था.

आनंद मोहन के लिए क्यों इतनी दरियादिली?

चूंकि पुलिस वाला तो गया लेकिन डीएम साहब को किसी तरह से बचा लिया जाए. लेकिन इनका बड़प्पन देखिए कि वह अपने एक कर्मचारी को बचाने के लिए अपने ड्राइवर से बोले की तुम फिर से गाड़ी घुमाओ और वहां चलो. हम चलेंगे और वहां लोगों को समझाएंगे, बात करेंगे. उसमें यह घटना घट गई थी और चूंकि वो उग्र आंदोलन आनंद मोहन जी के नेतृत्व में चल रहा था तो उन्हें लोगों को समझाना चाहिए था, रोकना चाहिए था. लेकिन यह सब उन्होंने नहीं किया. इस घटना में और भी लोग उनके पार्टी के पकड़े गए थे.

चूंकि आनंद मोहन की छवि रॉबिनहुड की थी, बाहुबली की थी तो इसलिए वह इसमें दोषी भी करार दिए गए. मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हुई. इन पर मुकदमा भी पर चला और जेल भी गए. मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो वहां से मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास में बदला गया. हमने भी सुना है कि जेल में इनका आचरण ठीक-ठाक रहा है. कुछ कविताएं और कुछ किताबें भी लिखी हैं. समय के साथ आदमी का आचरण बदल जाता है. ये समझ में आता है. लेकिन इसका संदेश ठीक नहीं गया है और खासकर के दलित समाज के बीच मैं मैसेज ठीक नहीं गया है. जो बाकी कैदी छुटे हैं वह इनके चलते ही छोटे हैं. अगर यह नहीं होते तो बाकी लोग भी नहीं छूट पाते. मेरा कहना है कि अगर सरकार ने जेल मैनुअल में बदलाव किया है तो बहुत सारे लोग हैं जो टाडा में बंद है जो और भी छोटे-मोटे क्राइम में बंद है. उनकी रिहाई के लिए भी समीक्षा की जानी चाहिए. बाकी लोगों की भी समीक्षा की जानी चाहिए.

चूंकि जब जेल मैनुअल में बदलाव हो गया है तो यह देखना चाहिए. मैं जब पत्रकार था तो मैंने एक स्टोरी की थी और उसमें एक कैदी था वह कुष्ठ रोग से पीड़ित था और उसने अपनी सजा भी पूरी कर ली थी. लेकिन फिर भी वह जेल में कैद था. जेल में बहुत सारे ऐसे लोग होते हैं जिनकी कोई जमानत कराने वाला भी नहीं होता है. जब आप जेल में जाएंगे तो वहां दलित-पिछड़े, पसमांदा, मुसलमान और सभी वर्ग के लोगकैद होते हैं जिनका कोई जमानतदार ही नहीं मिलता है. वह इसलिए ही बंद हो रहे चाहते हैं.

बीजेपी भी आलोचना से बची

ऐसे तमाम लोगों की समीक्षा होनी चाहिए तब यह समझा जायेगा कि सरकार सिर्फ आनंद मोहन जी के लिए ही चिंतित नहीं है, बल्कि आम लोगों व कैदियों के लिए भी चिंतित है. अब जब जेल से आनंद मोहन छूट गए हैं तो उन्हें जेलों में बंद और आम कैदी बंद है उन्हें भी जेल से रिहा कराने के लिए उन्हें आवाज उठानी चाहिए क्योंकि वह इतने दिन जेल में रहे और उन्हें इस पीड़ा का अनुभव है तो वह इसे भली-भांति समझते होंगे तब सही मायने में न्याय हो पाएगा. देखिए. यह बात सच है कि आनंद मोहन को छोड़ा जाना राजनीति चुनावी का खेल है. मान लीजिए कि अगर गुजरात में बिलकिस बानो के रेपिस्ट को छोड़ दिया जाता है. हमने तो इसके विरुद्ध दिल्ली में लखनऊ में जाकर प्रदर्शन किया आंदोलन किया क्योंकि वह सरासर गलत है. इस मामले में बीजेपी भी दोमुहा बात कर रही है. वह भी आनंद मोहन के बचाव के पक्ष में है बहुत ज्यादा खुलकर नहीं बोल रही है. गिरिराज सिंह को देखिए वह आनंद मोहन को बेचारा कह रहे हैं. यह बचाव की ही तो स्थिति है. मैं पार्टी में भले ही हूं लेकिन मेरा मानना है कि आनंद मोहन की रिहाई का जो मैसेज है वह दलितों में अच्छा नहीं जाएगा. बीजेपी की मजबूरी यह है कि उससे कहीं नाराज राजपूत वोट नहीं हो जाए.

बीजेपी तो आनंद मोहन से ऊपर के अपराधियों को भी बचाने का कार्य करती है. देखिए हमें यह नहीं पता कि आने वाले चुनाव में महागठबंधन को आनंद मोहन के छोड़े जाने से कितना फायदा होगा. उनका कितना समर्थन मिलेगा. क्योंकि यह तो देखने वाली बात होगी. चूंकि अब तक महागठबंधन को अपर कास्ट का वोट या खुलकर समर्थन नहीं मिलता रहा है. लेकिन हम लोग भी चाहते हैं कि भाजपा को हराया जाए. चूंकि हम लोग जानते हैं थे कि भाजपा को हराने के लिए नीतीश कुमार को सवर्ण का वोट नहीं मिलता. लेकिन मेरा मानना है कि बीजेपी को हराने के लिए कोई सैद्धांतिक रास्ता अपनाया जाना चाहिए और सिर्फ जोड़-तोड़ से जो बीजेपी को हराने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए चूंकि कई बार हम लोग इसे देख चुके हैं. इसलिए सैद्धांतिक रास्ता और न्याय संगत रास्ता अपनाया जाना चाहिए. 

हम लोग बिल्कुल बीजेपी को हराना चाहते हैं और हम लोग या वैसे ही फोर्सेस (ताकतों) की मदद करते हैं जो बीजेपी को हराना चाहते हैं. खास करके हमारा संगठन और हम लोग और वैसे सेकुलर पार्टी या लोगों को समर्थन देते हैं जो भाजपा को हराना चाहते हैं. क्योंकि अब जब आनंद मोहन को छोड़ दिया गया है तो हम सरकार से यह मांग करते हैं कि ऐसे तमाम लोगों को जो दलित हैं, पिछड़े हैं किसी वजह से जेल में बंद हैं. उन्हें जमानत नहीं मिल पा रही है, उन सब को भी समीक्षा करके जेल से रिहा किया जाना चाहिए.

 
[ये आलेख निजी विचारों पर आधारित है.]
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