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बिहार: अमेरिकी अंदाज़ में हुई फायरिंग को आखिर साज़िश क्यों बता रहे हैं नीतीश कुमार?

मुझे लगता है कि हममें से अधिकांश लोगों ने अब तक सीरियल फायरिंग की वारदातें सिर्फ अमेरिका में ही होते हुए हुए देखी हैं और वो भी वहां के न्यूज़ चैनलों के जरिये ही.लेकिन देश में अब बिहार इकलौता ऐसा राज्य बन गया है,जो अमेरिका से मुकाबला करने के लिए तैयार बैठा है. आप सबने भी देखा होगा कि बिहार के बेगूसराय में बाइक पर बैठे चार नकाबपोश लगातार 30 घंटे तक एक साथ कई लोगों को अपनी गोलियों का निशाना बनाते रहते हैं. और, पुलिस जवाबी कार्रवाई करने की बजाय थाने के कमरों में छुपकर बैठ जाती है, ये सोचकर कि शायद ये कोई आतंकी हमला है.

आज़ाद भारत में इसे पुलिस की सबसे बड़ी लापरवाही इसलिये माना जाना जाएगा क्योंकि दो बाइक पर बैठे चार नकाबपोश हमलावर बेगूसराय जिले के चार पुलिस थानों से गुजरते हुए ये संदेश दे गए कि तुम,चाहकर भी हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकते.यही उनका मकसद था और वे इसमें तो फिलहाल कामयाब हो ही गए लगते हैं.सीरियल फायरिंग की ऐसी वारदात देश को पहली बार देखने को मिली है.लेकिन हैरानी तो ये है कि इस वारदात को अंजाम देने वालों का मकसद न तो लूटपाट करना था,और न ही मास किलिंग्स यानी एक साथ इतने सारे लोगों को मारना ही था. लिहाज़ा, सुरक्षा से जुड़े तमाम जानकर भी ये मान रहे हैं कि बेगूसराय की इस फायरिंग को हम कोई आंतकी मामला मानने की गलती नहीं कर सकते.

इसलिये पटना से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारों में एक बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि आखिर ऐसी वारदात के पीछे उन लोगों का मकसद क्या था? सरकार को बदनाम करना या फिर ये संदेश देना कि विपक्ष को एकजुट करने की हिमाकत करने का अंजाम इससे भी बुरा हो सकता है? शायद इसीलिये बिहार को सुशासन देने का वादा करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कह दिया कि "हमें लगता है कोई साजिश है."सीएम ने कहा कि अधिकारियों को कह दिया है कि एक-एक चीज पर नजर रखी जाए. अतिपिछड़ी जाति के लोगों को निशाना बनाया गया. मैं तो कह ही रहा हूं एक बार हो गया तो समझ लीजिए कि कहीं भी कुछ भी हो सकता है."

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस बयान की भाषा को पढ़कर हम सबको ये समझना होगा कि वो अप्रत्यक्ष रुप से इसका ठिकरा केंद्र के सिर पर फोड़ते हुए ये दिखाना चाहते हैं कि साजिश की इस करतूत में  कहीं केंद्र भी शामिल न हो.वे सीधे आरोप नहीं लगा रहे हैं लेकिन इशारा तो वही है. लेकिन सवाल ये उठता है कि एक राज्य का मुख्यमंत्री अपने सूबे में हुई इतनी अभूतपूर्व वारदात को किसी साज़िश का नाम देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला कैसे झाड़ सकता है? और सवाल ये भी है कि सचमुच अगर इसके पीछे कोई साजिश है,तो उसका खुलासा सिर्फ बिहार को नहीं, बल्कि पूरे देश को भी पता लगना चाहिए कि इसके पीछे कौन-सी ताकत शामिल थी? लिहाज़ा, नीतीश कुमार अपने लापरवाह पुलिस-प्रशासन की इस हरकत की जायज़ नहीं ठहरा सकते कि जो आज तक देश के किसी भी राज्य के लोगों ने न तो सुना और देखा था,वो नज़ारा आपके बेगूसराय ने देश-दुनिया को दिखाकर रख दिया.

देश की राजधानी दिल्ली को छोड़ दें,तो कानून-व्यवस्था का जिम्मा संभालने और वहां के लोगों के जान-माल रक्षा करने की जिम्मेदारी उस राज्य सरकार की ही होती है, जिसके मिले वोटों की बदौलत वह सत्ता तक पहुंची है.लिहाज़ा ,किसी साजिश की आड़ लेकर सीएम नीतीश अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते और आख़िरकार उनकी सरकार की फिलहाल तो सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा यही है कि वे पहले उन अपराधियों को पकड़े और फिर वो सच उगलवाये कि उन्होंने किसके इशारे पर इतनी बड़ी व दहलाने वाली वारदात को अंजाम दिया था.

हालांकि पटना से लेकर दिल्ली तक सब जानते हैं कि नीतीश कुमार राजनीति के नौसिखिया नहीं हैं.उनकी एक बड़ी खूबी ये भी है कि वे अपने राज्य की कमान संभालने से बहुत पहले से ही केंद्र की राजनीति में एक बड़े खिलाड़ी रहे हैं,जिनकी काबलियत को अटलजी-आडवाणी जी भी मानते थे. साल 1998 में अटलजी जी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में जब नीतीश देश के रेल मंत्री बने, तब बिहार से जुड़े कई दिग्गज़ नेताओं की हार्ट-बीट इतनी बढ़ गई थी कि आखिर ऐसा कैसे हो गया! शुक्र है कि तब उनमें से एक-दो ही हॉस्पिटल पहुंचे थे,जो सही -सलामत घर लौट भी आये.

बिहार की राजनीति को समझने वाले विश्लेषक कहते हैं कि उसी जमाने से नीतीश में ये अहंकार आना शुरु हो गया था कि वे बिहार में रामविलास पासवान से भी बड़े नेता बन चुके हैं,जिसे कोई टक्कर नहीं दे सकता. हालांकि पासवान की तरह वे भी राजनीति के मौसम-विज्ञानी ही साबित हुए,जिन्होने बहती हुई फ़िज़ा के साथ चलते हुए सत्ता का स्वाद चखने में  कोई गुरेज नहीं किया. लेकिन बेगूसराय के बन्दूकबाजों की इस फायरिंग ने नीतीश-तेजस्वी सरकार के इस दावे की पोल खोलकर रख दी है कि ये जनता की सरकार है. इसलिये अगर बीजेपी के नेता ये आरोप लगा रहे हैं कि ये जंगल नहीं "महा जंगल राज" आ चुका है, तो इसे गलत साबित करने के लिये नीतीश सरकार को बेहद जल्द उन गुनहगारों को अपने शिकंजे में लाना होगा, वरना साजिश की थ्योरी पर तो बिहार का बच्चा भी यकीन नहीं करेगा.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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