Opinion: कहीं आप ज्यादा एंटीबायोटिक दवा तो नहीं ले रहे, जानें क्या है इसके खतरे
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) आज वैश्विक स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और विकास के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है. Antimicrobial resistance को ही रोगाणुरोधी प्रतिरोध के नाम से जानते हैं.
2001-2010 के बीच एंटीबायोटिक के उपयोग में 62% की वृद्धि के साथ भारत एंटीबायोटिक दवाओं का दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता है. हाल ही में आई एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक हर साल 10 मिलियन लोग एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के कारण मरेंगे. विकासशील देशों में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस की वजह मानव और गैर-मानव उपयोग दोनों के लिए रोगाणुरोधी दवाओं यानी एंटीबायोटिक का व्यापक दुरुपयोग है.
एंटीबायोटिक्स के साथ-साथ उनके मेटाबोलाइट्स अस्पतालों, घरों, खेतों के जैविक कचरे (मूत्र, मल, ऊतक आदि) या जानवरों (जैसे मवेशी, पक्षी, कुत्ते, सूअर) और ग्रामीण गांवों या स्लम क्षेत्रों में खुले मानव शौच से निकलते हैं. यह आखिरकार सीवेज, अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र और सतह के बहाव के माध्यम से पानी को दूषित कर देता है और खेतों में फैल जाता है. इससे इनका प्रवेश प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से खाद्य श्रृंखला प्रणाली में हो जाता है.
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस बैक्टीरिया मानव सिस्टम पर आक्रमण करने के लिए समान मार्ग का अनुसरण करते हैं. इसके अलावा मनुष्य दूषित खाद्य पदार्थों के सेवन, दूषित वातावरण समेत अन्य मार्गों से प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों को प्राप्त कर सकता है. मनुष्य के लिए इन दवाओं के दुरुपयोग के पीछे की वजह अनुचित नुस्खे, कुछ प्रथाएं, अपर्याप्त रोगी शिक्षा, एंटीबायोटिक का अनधिकृत बिक्री और उचित दवा नियामक तंत्र की कमी है.
कई रोगाणुओं पर एंटीबायोटिक्स दवाएं बेअसर साबित हो रही हैं. इसके पीछे की कई वजहें हैं. अस्पताल में संक्रमण पर सही तरीके से नियंत्रण नहीं किया जा रहा है. संक्रमण या बीमारी के दौरान जरूरत से ज्यादा दवा दी जा रही है. इलाज को बीच में अधूरा छोड़ना भी एक वजह है. पशुपालन, मछलीपालन और पक्षी पालन में एंटीबायोटिक्स का ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है.
एंटीबायोटिक एजेंटों का उपयोग पशुओं में रोगों के उपचार और रोकथाम के लिए और कभी-कभी पशु प्रजनन में वृद्धि के लिए दवा के रूप में भी किया जाता है. इसके अलावा, फसल उत्पादकता बढ़ाने के लिए खेती में भी उनका उपयोग किया जाता है. जानवरों और पौधों में इन एंटीबायोटिक दवाओं के अनियंत्रित और अंधाधुंध उपयोग से न सिर्फ पौधों और जानवरों के लिए बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी नकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं क्योंकि इससे प्रतिरोधी बैक्टीरिया का विकास हो सकता है.
प्रतिरोधी बैक्टीरिया को भोजन की खपत के माध्यम से या खाद्य-उत्पादक जानवरों के सीधे संपर्क के माध्यम से या पर्यावरण प्रसार के माध्यम से मनुष्यों में स्थानांतरित किया जा सकता है. खाद्य श्रृंखला के माध्यम से रोगाणुरोधी प्रतिरोध का फैलाव एक बढ़ती हुई चिंता है. भोजन के माध्यम से एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस बैक्टीरिया के प्रति मनुष्यों का जोखिम वर्तमान में हस्तक्षेप डिजाइन के लिए एक महत्वपूर्ण अंतर छोड़कर नकारात्मक पहलू ही है.
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस की चिंताओं को कम करने की संभावित पहलों में से एक है लोगों में इसके बारे में जागरूकता बढ़ाना. शिवाजी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ. रेणु बावेजा और डॉ. अभिजीत मिश्रा की शोध टीम आम जनता, स्कूल और कॉलेज के छात्रों, खाद्य विक्रेताओं और किसानों के बीच एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के खतरे के बारे में जागरूकता पैदा करने की दिशा में काम कर रही है. उनका मानना है कि जागरूकता कार्यक्रम एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के चालकों और इस खतरे से निपटने के लिए आवश्यक कार्रवाइयों पर जनता का ध्यान आकर्षित करने के लिए हितधारकों की एक विस्तृत श्रृंखला को एक साथ लाएंगे.
अपनी परियोजना के माध्यम से, उनका उद्देश्य लोगों को शिक्षित करना है कि संक्रामक रोगों को ठीक करने के लिए एंटीबायोटिक्स एक कीमती उपकरण हैं और उन्हें एंटीबायोटिक प्रतिरोध जीनों पर सीमित प्रभावों के साथ जिम्मेदारी से उपयोग किया जाना चाहिए. जेएनयू के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ निकुंज मकवाना का मानना है कि एक स्वास्थ्य नीति के तहत ही एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस पर नियंत्रण पाया जा सकता है. एक शिक्षण और अनुसंधान समुदाय के प्रतिनिधियों के रूप में, हम मानते हैं कि एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है. हमारा उद्देश्य खेती और पशुओं में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को कम करने के लिए रणनीति तैयार करना है और समाज को एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के खतरे से लड़ने में मदद करना है.
(ये आलेख दिल्ली यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ रेनू बवेजा और डॉ अभिजीत मिश्रा के साथ मिलकर जेएनयू के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ निकुंज मकवाना ने लिखा है.)
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