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अगले लोकसभा चुनाव में CAA और यूनिफॉर्म सिविल कोड बनेंगे बीजेपी के लिए 'गेम चेंजर'?

साल 2024 का लोकसभा चुनाव बीजेपी मुख्य रूप से उन दो मुद्दों पर लड़ने की तैयारी में है, जिस पर विपक्षी दलों को खासा ऐतराज है. पहला- नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA और दूसरा समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) है. हालांकि सीएए तो जनवरी 2020 से ही प्रभावी हो गया है, लेकिन अभी तक इसके नियम नहीं बने हैं. 

किसी वजह से ये लागू नहीं हो पाया है लेकिन गृह मंत्री अमित शाह ने एक इंटरव्यू में जिस आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कही है, उससे साफ लगता है कि मोदी सरकार इसे लोकसभा चुनाव से पहले ही देश में लागू करके 'गेम चेंजर' बनाने के मूड में है. रहा सवाल यूसीसी का, तो आसार ऐसे दिखाई दे रहे हैं कि इस विवादित मुद्दे को संसद में लाने से पहले बीजेपी शासित लगभग सभी राज्य अपने यहां इस पर कानून बना चुके होंगे. सारी कवायद यह ही है कि लोकसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी वाले सभी राज्यों में इसे लागू कर दिया जाए.

दरअसल, CAA शुरू से ही विवादित मसला रहा है और बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को छोड़कर समूचे विपक्ष ने इसका विरोध किया था. दिसंबर 2019 में जब नागरिकता संशोधन कानून संसद से पास हुआ था, तब भी ममता बनर्जी की टीएमसी और कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया था. विरोध करने वालों का कहना है कि इस कानून से एक धर्म विशेष को टारगेट किया जा रहा है. हालांकि, सरकार की दलील है कि सीएए में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है और इससे भारत में रह रहे लोगों पर कोई असर नहीं होगा. 

विपक्ष सरकार की ये दलील मानने को तैयार नहीं है और उसका आरोप है कि सरकार लोगों को गुमराह कर रही है. बीते मई महीने में अमित शाह ने पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के एक समारोह में भी ये कहा था कि सरकार अब बहुत जल्द ही CAA लागू करने वाली है.

उनके इस बयान पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भड़क उठी थीं और उन्होंने पलटकर इसका जवाब देते हुए कहा था कि सीएए का मुद्दा उठाकर बीजेपी भारतीय नागरिकों का अपमान कर रही है. उन्होंने कहा, 'अमित शाह केवल बंगाली और हिंदी भाषी समुदाय के बीच, हिंदू-मुसलमानों के बीच दरार पैदा करना चाहते हैं. प्लीज आग से न खेलें.' बनर्जी ने कहा कि वोटिंग का अधिकार रखने वाला हर व्यक्ति भारत का नागरिक है.
 
चूंकि कोरोना महामारी के कारण इस कानून के नियमों को तैयार करने में देरी हुई इसलिए विपक्षी दलों को भी ये लगने लगा था कि सरकार ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं और शायद अब वो इसे लागू नहीं करेगी, लेकिन गृह मंत्री शाह ने विपक्ष की इस खुशफहमी को दूर करते हुए साफ कर दिया है कि जिन लोगों को लग रहा है कि सरकार ने सीएए को ठंडे बस्ते में डाल दिया है, वो गलत हैं. लोग इसे लेकर कंफ्यूजन में न रहें.

गुरुवार को प्राइवेट न्यूज चैनल के एक कार्यक्रम में अमित शाह ने कहा कि सीएए एक वास्तविकता है और इस देश का कानून है. इसे लागू नहीं होने को लेकर सपना देखने वाले भूल कर रहे हैं. सीएए को लागू करने में हो रही देरी को लेकर उन्होंने कहा, ''हमें इसे लेकर नियम बनाने हैं. कोरोना के चलते ये लागू नहीं पाया था, लेकिन अब कोरोना खत्म हो रहा है. अब इस पर काम होगा.''

शाह के इस बयान के बाद सियासी गलियारों में ये चर्चा है कि मोदी सरकार इसे अगले कुछ महीनों में ही पूरे देश में लागू करने की तैयारी में है. ममता बनर्जी द्वारा इस कानून के मुखर विरोध करने की बड़ी वजह ये भी है कि इसके लागू होते ही इसका सबसे ज्यादा असर बंगाल पर ही होगा. वह इसलिए कि तब बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करना आसान हो जाएगा, जो फिलहाल फर्जी तरीके से वोटर कार्ड बनवाकर वहां बड़ी तादाद में गैर कानूनी तरीके से रह रहे हैं. बताया जाता है कि ये टीएमसी का बड़ा वोट बैंक है.

रही बात समान नागरिक संहिता (UCC) की तो उसे लागू करने के लिए मोदी सरकार ने दूसरी रणनीति बनाई है. इसे संसद में लाने से पहले राज्यों में कानून लागू करने की तैयारी है. उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और गुजरात से इसकी शुरुआत हो चुकी है, जहां रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में समिति बनाई गई है, जो विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों के विचार जानकर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी.

दरअसल, यूसीसी एक ऐसा मसला है, जो जनसंघ से लेकर बीजेपी बनने तक की उसकी राजनीतिक यात्रा का सबसे बड़ा हमसफर रहा है और पार्टी देशवासियों से ये वादा करती आई है कि सत्ता में आने पर इसे हर हाल में लागू किया जाएगा. आसान भाषा में समझें तो यूसीसी का अर्थ है-सभी धर्मों के लिए एक कानून. फिलहाल हिंदुओं, मुस्लिमों और पारसियों के लिए अलग-अलग कानून हैं.

लिहाजा, अमित शाह ने साफ कर दिया है कि किसी भी पंथ निरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर कानून नहीं होना चाहिए बल्कि सभी के लिए एक ही समान कानून होना चाहिए. उनके मुताबिक सरकार ने उस पर भी अपने कदम पीछे नहीं खींचे हैं और सरकार इसे लागू करने पर अडिग है. साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के घोषणा-पत्र में क्या ये मुख्य एजेंडा होगा? शाह ने इसके जवाब में कहा, ''हो सकता है कि उससे पहले ही दो तिहाई राज्य कानून बनाकर इसे अपने यहां लागू भी कर लें.''

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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