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सरसों की फसल से बरसेगा किसानों पर पैसा, मार्केट में इतनी ज्यादा बढ़ गई है डिमांड

बाजार में सरसों के तेल की खपत और भी बढ़ने वाली है. फिलहाल की रिपोर्ट पर नजर डालें तो हिंदुस्तान में रोजाना तकरीबन 10,000 टन सरसों के तेल की आवश्यकता होती है.

सरसों की खेती करने वाले किसानों को इस बार मोटा मुनाफा होने वाला है. इसके पीछे कई कारण हैं, सबसे पहला और बड़ा कारण है मार्केट में सरसों के तेल की ज्यादा खपत और उसकी लगातार बढ़ती कीमत. जाहिर सी बात है जो मार्केट में सरसों के तेल की डिमांड ज्यादा होगी तो किसानों से सरसों भी ज्यादा मात्रा में खरीदे जाएंगे और व्यापारी इसके लिए मुंह मांगी रकम भी देंगे. हालांकि, हाल ही में सरसों के तेल में पांच रुपए की गिरावट आई है, लेकिन जानकार मानते हैं कि आने वाले दिनों में इसमें फिर से तेजी देखने को मिलेगी.

ऐसे तो देश में सरसों की बुआई 5 से 25 अक्टूबर के बीच हो जाती है. लेकिन कई जगह मौसम के हिसाब से इसमें थोड़ा आगे पीछे भी चलता है. हालांकि, दिसंबर के मध्य तक तो ज्यादातर किसान सरसों की बुआई कर चुके होते हैं. सरसों के लिए कहा जाता है कि यह कम लागत में सबसे ज्यादा और अच्छा उत्पादन देने वाली फसल होती है. अगर आपने भी सरसों लगाया है तो यह खबर आपको पढ़नी चाहिए.

बाजार में बढ़ने वाली है सरसों की डिमांड

बाजार में सरसों के तेल की खपत और भी बढ़ने वाली है. फिलहाल की रिपोर्ट पर नजर डालें तो हिंदुस्तान में रोजाना तकरीबन 10,000 टन सरसों के तेल की आवश्यकता होती है. जानकारों के अनुसार आने वाले समय में बाजार में सरसों की कीमत और दाम दोनों बढ़ेंगे. ऐसे में इसका सीधा फायदा किसानों को होगा. जुलाई की रिपोर्ट पर नजर डालें तो उस दौरान छोटे स्थानीय पेराई मिलों और कच्ची घानी की बड़ी मिलों में सरसों की रोजाना मांग तकरीबन साढ़े तीन लाख बोरियों की थी, लेकिन उस दौरान मंडियों में महज दो से सवा दो लाख बोरियां ही मौजूद थीं.

सिर्फ इन राज्यों में होती है सरसों की खेती

सरसों की बढ़ती डिमांड की वजह यह भी है कि भारत में इसकी खेती हर जगह नहीं होती. दरअसल, सरसों के तेल का इस्तेमाल जहां पूरे भारत में होता है, वहीं इसकी खेती देश के कुछ चुनिंदा राज्यों में ही प्रमुखता से होती है. राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश ऐसे राज्य हैं जहां के किसान प्रमुखता से सरसों की खेती करते हैं. हालांकि, सरसों के तेल की डिमांड इन राज्यों के अलावा देश के तमाम राज्यों में दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है. सरकार भी अब इस समस्या को गंभीरता से ले रही है और वह आने वाले 5 सालों में राष्ट्रीय तिलहन मिशन पर वह लगभग 19,000 करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बना रही है.

काली सरसों की मांग सबसे ज्यादा

सरसों मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं. एक काली वाली और दूसरी पीली वाली. हालांकि, बाजार में इस वक्त काले सरसों की डिमांड सबसे ज्यादा है. उसका कारण यह है कि इसका तेल कई मामलों में पीले वाले सरसों के तेल से ज्यादा फायदेमंद होता है. कीमत की बात करें तो काले वाले सरसों की कीमत भी पीले वाले सरसों से ज्यादा होती है. देश की प्रमुख मंडियों में इस वक्त काली सरसों की कीमत 5500 से लेकर 7000 के बीच है. वहीं सरकार ने इस पर न्यूनतम समर्थन मूल्य 2023-24 के लिए 5450 रुपए तय किया है, जो पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले 400 रुपए ज्यादा है. इन तमाम मुद्दों पर नजर डालने से पता चलता है कि आने वाले समय में सरसों की खेती करने वाले किसानों के दिन अच्छे रहने वाले हैं.

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