Uttarakhand News: उत्तराखंड में 2021 की आपदा के बाद वैज्ञानिकों ने अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने पर दिया था जोर, शासन ने किया अनसुना
Uttarakhand News: उत्तराखंड के धराली में अचानक आई बाढ़ से सब कुछ तबाह हो गया है जिसमें कई लोगों की जान गई है. बता दें भूवैज्ञानिकों ने 2021 में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने पर जोर दिया था.

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में धराली गांव में बादल फटने से अचानक बाढ़ आ गई जिसमें कई लोगों को जान माल समेत घरों का भी नुकसान हुआ है. इसी बीच अब 2021 की आपदा के बाद वैज्ञानिकों की तरफ से अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने पर जोर दिया गया था जो अब फिर चर्चा में है.
2021 में ग्लेशियर फटने से कृषि गंगा में बाढ़ आ गई थी कृषि गंगा ऊर्जा परियोजना में काम करने वाले 200 से अधिक मजदूर व अन्य लोग लापता हो गए थे घटना के समय वरिष्ठ भू वैज्ञानिक व गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभाग अध्यक्ष सहित अन्य भूवैज्ञानिकों ने नदी घाटी परियोजना के ऊपरी जल ग्रहण क्षेत्र में श्रंखलाबद्ध तरीके से अर्ली वार्निंग सिस्टम यानी ( एवीएस) लगाए जाने की बात पर जोर दिया था.
भू वैज्ञानिक लंबे समय से आगाह कर रहे हैं
भू वैज्ञानिक लंबे समय से राज्य में नदी परियोजनाओं के क्षेत्र में ऊपरी जल ग्रहण क्षेत्र में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगाने के लिए आगाह कर रहे हैं 2021 में कृषि गंगा आपदा के बाद भू वैज्ञानिकों ने इसका पुरजोर समर्थन किया था लेकिन शासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया राज्य में अर्ली वार्निंग सिस्टम की सुविधा होती तो शायद धराली आपदा में जनहानि का, 7 फरवरी 2021 को ग्लेशियर फटने से कृषि गंगा में बाढ़ आ गई थी.
इस बाढ़ में कृषि गंगा और तपोवन हाइड्रो प्रोजेक्ट पूरी तरह से ध्वस्त हो गए थे कृषि गंगा ऊर्जा परियोजना में काम करने वाले 200 से अधिक मजदूर वह अन्य लापता हो गए थे घटना के बाद प्रदेश के वरिष्ठ भू वैज्ञानिक गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूगर्भ विभाग के प्रोफेसर एमटी एस बिष्ट सहित अन्य भूगर्भ वैज्ञानिकों ने नदी घाटी परियोजना के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगाने पर जोर दिया था लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.
कंपनियों को अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाना चाहिए
प्रोफेसर विष्णु ने कहा कि प्रदेश भर में ऐसे स्थानों को चिन्हित कर परियोजना कंपनियों को अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगाना चाहिए जिससे समय रहते आपदा की सूचना मिल सके और जनहानि को कम से बहुत काम किया जा सके प्रोफेसर बिष्ट ने बताया कि बीती 29 मई को यूरोप के अल्पस पर्वत में भी धराली जैसी आपदा आई थी आल्प्स पर्वत का एक विशाल ग्लेशियर का हिस्सा टूटकर हजारी टन बर्फ कीचड़ ओर चट्टाने लेकर सैलाब की शक्ल में गांव की ओर आने लगा लेकिन अर्ली वार्निंग सिस्टम की वजह से आपदा से पहले ही पूरा गांव खाली करा दिया गया था.
पूरा गांव उस वक्त जल मग्न हो गया था लेकिन वहां के ग्रामीण बच गए, वही प्रोफेसर बिष्ट का कहना है कि धारली आपदा के बाद प्रशासन को अब अर्ली वॉर्निंग सिस्टम के लिए गंभीर बनना पड़ेगा और इस प्रकार की घटनाएं दोबारा ना हो इसलिए हमें अर्ली वॉर्निंग सिस्टम का प्रयोग करना होगा.
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