Garhwal Popular Pandav Dance: गढ़वाल में मशहूर है पांडव नृत्य, महाभारत और पांडवों से खास है जुड़ाव
Garhwal Famous Dance: गढ़वाल का पांडव नृत्य देश विदेश में विख्यात है. इसे देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं. यही नहीं महाभारत काल से भी इसका गहरा जुड़ाव है.
Pandav dance in Garhwal: वैसे तो गढ़वाल में लोकनृत्यों का खजाना बिखरा पड़ा है, लेकिन इनमें सबसे खास है पांडव (पंडौं) नृत्य. दरअसल, पांडवों का गढ़वाल से गहरा संबंध रहा है. टिहरी जनपद के कंडारस्यूं गांव में कैसे मनाया जाता है पांड़व नृत्य, महाभारत के युद्ध से पूर्व और युद्ध समाप्त होने के बाद भी पांडवों ने गढ़वाल में लंबा समय व्यतीत किया. यहीं लाखामंडल में दुर्योधन ने पांडवों को उनकी माता कुंती समेत जिंदा जलाने के लिए लाक्षागृह का निर्माण कराया था. महाभारत के युद्ध के बाद कुल हत्या, गोत्र हत्या व ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए कृष्ण द्वैपायन महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को शिव की शरण में केदारभूमि जाने की सलाह दी थी.
पांडवों ने केदारनाथ मंदिर का निर्माण किया
मान्यता है कि, पांडवों ने केदारनाथ में महिष रूपी भगवान शिव के पृष्ठ भाग की पूजा-अर्चना की और वहां एतिहासिक केदारनाथ मंदिर का निर्माण किया. इसी तरह उन्होंने अनेकों स्थानों पर भगवान शिव की पूजा-अर्चना कर मंदिरों का निर्माण किया. इसके बाद द्रोपदी समेत पांडव मोक्ष प्राप्ति के लिए बदरीनाथ धाम होते हुए स्वर्गारोहिणी के लिए निकल पड़े. लेकिन, युधिष्ठिर ही स्वर्ग के लिए सशरीर प्रस्थान कर पाए, जबकि अन्य पांडवों व द्रोपदी ने भीम पुल, लक्ष्मी वन, सहस्त्रधारा, चक्रतीर्थ व संतोपंथ में अपने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया था. पांडवों के बदरी-केदार भूमि के प्रति इसी अलौकिक प्रेम ने उन्हें गढ़वाल का लोक देवता बना दिया. यहां कदम-कदम पर होने वाला पांडव नृत्य पांडवों के गढ़वाल क्षेत्र के प्रति इसी विशेष प्रेम को प्रदर्शित करता है.
पांडव नृत्य कार्यक्रम में देश विदेश से आते हैं लोग
ग्रामीण अनिल चौहान का कहना है कि, कंडारस्यूं गांव में हर वर्ष होने वाला पांडव नृत्य कार्यक्रम का आयोजन बड़ी धूम धाम से होता है, यहां पर प्रवासी ग्रामीण भी इस कार्यक्रम को मनाने के लिए अधिक संख्या में देश विदेशों से अपने गांव आते हैं और इस तरह के आयोजनों में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं, ये पांडव नृत्य का आयोजन क्षेत्र के किसानों और जनता की जस कुशल के लिए पांडवों की पूजा अर्चना और नृत्य का आयोजन होता है. पांडव नृत्य समाप्त होने के तत्पश्चात क्षेत्र के ग्रामीण किसान अपने खेतों से धान की कटाई मंडाई का कार्य करते हैं.
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