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Exclusive: मुख्तार अंसारी का टिकट काटेंगी मायावती, यूपी चुनाव से पहले BSP से बाहर का रास्ता दिखाया जाना भी तय

UP Elections: मुख्तार अंसारी को मायावती की सियासी पैंतरेबाजी की भनक लग चुकी है. वैसे यह कोई पहली बार नहीं होगा, जब मुख्तार को बीएसपी से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा.

UP Assembly Election 2022: पूर्वांचल के माफिया डॉन के तौर पर बदनाम बीएसपी (BSP) के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) की मुश्किलें लगातार बढ़ती ही जा रही हैं. यूपी की योगी सरकार तमाम कानूनी पेचीदगियों को दूर कर मुख्तार को पंजाब (Punjab) से उत्तर प्रदेश की जेल ले आई है, तो वहीं मायावती की पार्टी बीएसपी ने अब मुख्तार अंसारी से तौबा करते उससे दूरी बनाने का फैसला किया है. abp चैनल के पास इस बात की पुख्ता जानकारी है कि मायावती (Mayawati) की पार्टी न सिर्फ मऊ सीट से मुख्तार अंसारी का टिकट काटने जा रही है, बल्कि यूपी विधानसभा चुनाव से पहले ही उसे तीसरी बार बीएसपी से बाहर का रास्ता भी दिखाया जा सकता है. मायावती की पार्टी ने मुख्तार को बीएसपी से आउट करने की रणनीति इसलिए बनाई है ताकि योगी सरकार द्वारा इन दिनों माफियाओं-बाहुबलियों और दूसरे अपराधियों के खिलाफ चलाए जा रहे आपरेशनों को भारतीय जनता पार्टी चुनावी मुद्दा बनाते हुए उस पर दागियों को बढ़ावा देने का सियासी हमला न बोल सके. कहा जा सकता है कि मजबूरी में ही सही, पर मायावती की पार्टी बीएसपी मूर्तियों और स्मारकों के बाद अब माफियाओं से दूरी बनाकर उनसे तौबा करने का फैसला लेते हुई अपनी चाल-चरित्र और चेहरे में बदलाव कर खुद को मजबूत विकल्प के तौर पर पेश करने की तैयारी में जुट गई है.

abp चैनल के पास यह एक्सक्लूसिव जानकारी है कि साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में मायावती की पार्टी बीएसपी मऊ सीट से माफिया डॉन के तौर पर बदनाम मुख्तार अंसारी को अपना उम्मीदवार नहीं बनाएगी. पार्टी ने मुख्तार का टिकट काटकर यहां से किसी दूसरे प्रभावशाली नेता को ही प्रत्याशी बनाए जाने का फैसला लिया है. बीएसपी मुख्तार के किसी करीबी रिश्तेदार या फिर किसी गैर मुस्लिम पर दांव लगा सकती है. यह फैसला टिकट तय करते वक़्त के सियासी हालातों और मुख्तार के खिलाफ चुनाव लड़ने की हिम्मत जुटाने वाले दावेदारों पर निर्भर करेगा. इतना ही नहीं मायावती ने मुख्तार से अब किनारा करने का भी मन बना लिया है. बहुत मुमकिन है कि विधानसभा चुनावों से पहले मुख्तार अंसारी को बीएसपी से बाहर का रास्ता भी दिखा जाए. हालांकि पूर्वांचल में मुस्लिम वोटरों के बीच कोई गलत संदेश न जाए, इसके लिए पार्टी किसी जल्दबाजी के मूड में नहीं है. बीएसपी ने मुख्तार तक अपनी रणनीति का संदेश भिजवा भी दिया है. मायावती चाहती हैं कि अपनी सियासी ज़मीन बचाने के लिए मुख्तार खुद ही कोई फैसला ले ले तो इससे उनकी पार्टी की रणनीति भी कामयाब हो जाएगी और बीएसपी को लेकर मुस्लिम वोटरों में कोई नाराज़गी भी नहीं होगी.

मुख्तार को भी मायावती की सियासी पैंतरेबाजी की भनक

बहरहाल मुख्तार अंसारी को भी मायावती की इस सियासी पैंतरेबाजी की भनक लग चुकी है. सूत्रों के मुताबिक़ बाहुबली मुख्तार ने अपना सियासी कैरियर बचाने के लिए दूसरी पार्टियों में संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी हैं. मुख्तार ने रणनीति के तहत ही दो हफ्ते पहले अपने बड़े भाई सिबगतउल्ला अंसारी को अखिलेश यादव की मौजूदगी में समाजवादी पार्टी में शामिल भी करा दिया है. बड़े भाई सिबगतउल्ला सपा में रहते हुए मुख्तार की इंट्री के लिए फील्डिंग सजाएंगे. अगर मायावती की तरह अखिलेश को भी दागी मुख्तार को अपने साथ खड़ा करने में संकोच हुआ तो बाहुबली विधायक प्रयागराज के अपने पुराने साथी पूर्व सांसद अतीक अहमद की राह पर चलते हुए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का दामन थाम सकता है. ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा भी मऊ के सियासी हालात के मद्देनज़र बेहतरीन विकल्प हो सकता है.

सूत्रों के मुताबिक़ मायावती ने मुख्तार से पीछा छुड़ाने का फैसला इसी साल अप्रैल महीने के पहले हफ्ते में तब ले लिया था, जब यूपी की योगी सरकार ने तमाम कानूनी दांव पेंचों और रुकावटों को दूर करते हुए मुख्तार के हर हथकंडे को फेल करने के बाद उसे उत्तर प्रदेश की बांदा जेल शिफ्ट करने में कामयाब हो गई थी. इसके अलावा योगी सरकार आपरेशन माफिया - आपरेशन नेस्तनाबूत समेत कई अभियान चलाकर सूबे में जिस तरह संगठित संगठित अपराधों पर अंकुश लगाया और कार्रवाइयों को लेकर आम जनता से सरकार को जिस तरह की वाहवाही मिली, उसके बाद विपक्षी पार्टियों पर मुख्तार जैसे माफियाओं और बाहुबलियों से दूरी बनाने का नैतिक दबाव बढ़ने लगा था. सपा और बसपा जैसी मजबूत जनाधार वाली पार्टियां यह अच्छे से समझ चुकी हैं कि माफियाओं और बाहुबलियों से दोस्ती को बीजेपी चुनावी मुद्दा बनाकर उन पर जो हमला बोलेगी, उसकी वजह से उन्हें बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है. मायावती और उनकी पार्टी यूपी में अपने चार बार के कार्यकाल को सिर्फ क़ानून व्यवस्था बेहतर होने के आधार पर ही खुद की पीठ थपथपाती हुई नज़र आती है. ऐसे में मुख्तार से दोस्ती आने वाले चुनाव में पार्टी के लिए बड़ी मुसीबत का सबब बन सकती थी.

बीएसपी की तरफ से आधिकारिक तौर पर कोई बयान नहीं

हालांकि मुख्तार का टिकट काटे जाने और उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाए जाने को लेकर अभी तक बीएसपी की तरफ से आधिकारिक तौर पर कोई बयान नहीं दिया गया है, लेकिन इसके संकेत 28 अगस्त को तभी मिल गए थे, जब मुख्तार के बड़े भाई सिबगतउल्ला अंसारी लखनऊ में अखिलेश यादव के सामने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले रहे थे. ठीक उसी वक़्त प्रयागराज में पार्टी कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में शिरकत कर रहे बीएसपी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद डॉ अशोक सिद्धार्थ ने सिबगतउल्ला को दगा हुआ कारतूस बताकर यह बताया था कि उन्होंने बीएसपी छोड़ी नहीं है, बल्कि निष्क्रियता की वजह से उन्हें पहले ही पार्टी से निकाला जा चुका था. डॉ अशोक सिद्धार्थ ने उस वक़्त यह भी साफ़ कर दिया था कि बड़े भाई की राह पर चलते हुए अगर मुख्तार भी बीएसपी से बाहर निकलने का मन बना रहा है तो पार्टी उसे न तो रोकने और न ही मनाने की कोई कोशिश करेगी. उन्होंने यह भी कहा था कि मुख़्तार के हटने से पूर्वांचल में बीएसपी पर कोई असर भी नहीं पड़ेगा.

मुख्तार का टिकट काटने और उससे दूरी बनाए जाने के बीएसपी सुप्रीमों मायावती के फैसले के पीछे उसका लम्बा-चौड़ा क्रिमिनल रिकॉर्ड और 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले उसके जेल से बाहर आने के सभी रास्ते बंद होना तो है ही, साथ ही पार्टी को यह भी लगता है कि पिछले तकरीबन सोलह सालों से लगातार जेल में रहने की वजह से मऊ सीट पर मुख्तार का दबदबा अब पहले जैसा रहा भी नहीं. मुख्तार अंसारी पिछ्ला तीन चुनाव सिर्फ आठ हज़ार या इससे भी कम वोटों से ही जीतने में कामयाब रहा है.

मुख्तार ने अपने सियासी करियर की शुरुआत बीएसपी से की थी

वैसे यह कोई पहली बार नहीं होगा, जब मुख्तार अंसारी को बीएसपी से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा. मुख्तार ने अपने सियासी करियर की शुरुआत बीएसपी से ही की थी. 1996 में वह हाथी की सवारी कर वह पहली बार विधानसभा पहुंचा था. हालांकि कुछ दिनों बाद ही मायावती ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया था. 2002 और 2007 का चुनाव वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीता. 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले उसने दोबारा हाथी की सवारी की. उस चुनाव में बीएसपी ने उसने वाराणसी सीट से बीजेपी नेता डॉ मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ उम्मीदवार बनाया था. लोकसभा के इस चुनाव में मुख्तार को हार का सामना करना पड़ा और थोड़े दिन बाद ही उसे फिर से बाहर कर दिया गया. साल 2012 में अंसारी ब्रदर्स ने अपनी अलग पार्टी कौमी एकता दल बनाई. मुख्तार 2012 में अपनी घर की पार्टी से चुनाव लड़कर लगातार चौथी बार विधायक बना. साल 2017 में मुख्तार ने अपनी पार्टी का बीएसपी में विलय कर दिया और पांचवीं बार विधायक का चुनाव लड़ा. हाथी का साथ मिलने से वह लगातार पांचवीं बार और जेल में रहते हुए तीसरा चुनाव जीतने में कामयाब रहा.

वैसे अगर बीएसपी मुख्तार अंसारी का टिकट काटती और उसे बाहर का रास्ता भी दिखाती है तो भी बीजेपी उसका क्रेडिट लेने में कतई पीछे नहीं रहेगी. बीजेपी नेता और दर्जा प्राप्त मंत्री के तौर पर यूपी गौ सेवा आयोग के सदस्य का काम देख रहे भोले सिंह के मुताबिक़ बीजेपी और योगी सरकार ने माफियाओं-बाहुबलियों और दूसरे अपराधियों के खिलाफ जिस तरह का अभियान चलाया है और इन ऑपरेशनों के चलते सूबे में संगठित अपराधों पर जैसा अंकुश लगा है, उसी के नतीजे के तौर पर ही मायावती अब मुख्तार से तौबा करने की तैयारी में हैं. उनके मुताबिक़ योगी सरकार ने साफ़ कर दिया है कि सत्ता अब गुंडे-माफियाओं के सहारे नहीं बल्कि जनता की सेवा कर और उसकी उम्मीदों की कसौटी पर खरा उतरकर ही पाई जा सकती है. प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार अनुपम मिश्र का कहना है कि योगी सरकार और बीजेपी ने अपराध और अपराधियों को लेकर जो लकीर खींची है, उसके बाद विपक्षी पार्टियों पर नैतिक दबाव काफी बढ़ गया है. इसके साथ ही पिछले एक दशक में जनता का मूड भी बदला है. कभी खलनायकों को अपने वोट के सहारे नायक बनाने वाले वोटर अब इनसे ऊबने लगे हैं और साफ़-सुथरी छवि वाले उम्मीदवारों और विकास की बात करने वाली पार्टी को ही पसंद कर रहे हैं.

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