कांग्रेस नेता शाहनवाज आलम की बड़ी मांग- दलित एक्ट जैसी सुरक्षा अब अल्पसंख्यकों को भी मिले
Lucknow News:शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सत्ता में अल्पसंख्यकों की घटती हिस्सेदारी के कारण ही मुसलमानों के खिलाफ़ हिंसा संस्थागत रूप लेती गयी है. इस हिंसा की जड़ मनुवादी व्यवस्था में निहित है.

देश में दलितो की तरह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए एक एक्ट की मांग कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज आलम की तरफ से की गई है. रविवार को अपने स्पीक अप कार्यक्रम के तहत उन्होंने बोलते हुए कहा मुसलमानों के खिलाफ़ साम्प्रदायिक हिंसा अब संस्थागत रूप ले चुकी है, इसकी जड़ मनुवादी विचारधारा में है. संस्थागत हिंसा को सिर्फ़ क़ानून बनाकर ही नियंत्रित किया जा सकता है.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने 24 मार्च 1947 को संविधान सभा की एक कमेटी को बताया था कि भारत में ऐसा सोच बना लिया गया है, जिसमें बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों पर शासन करने का अधिकार मान लिया गया है. उन्होंने कहा कि जब अल्पसंख्यक लोग अपने हक या सत्ता में हिस्सेदारी की बात करते हैं, तो उसे सांप्रदायिक बता दिया जाता है, लेकिन बहुसंख्यकों के एकाधिकार को राष्ट्रवाद कहा जाता है.
अल्पसंख्यकों के लिए मजबूत कानून की जरूरत
उन्होंने कहा डॉ. अंबेडकर ने ऐसी सोच को गलत बताया और कहा कि इसी कारण उन्होंने संविधान में अनुसूचित जातियों के लिए विशेष अधिकार और प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की. शाहनवाज़ आलम ने कहा कि अब समय आ गया है कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए भी दलित एक्ट जैसा मजबूत कानून बनाया जाए.
मुस्लिमों के प्रति बढ़ रहीं संस्थागत हिंसा
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सत्ता में अल्पसंख्यकों की घटती हिस्सेदारी के कारण ही मुसलमानों के खिलाफ़ हिंसा संस्थागत रूप लेती गयी है. इस हिंसा की जड़ मनुवादी व्यवस्था में निहित है. जिसे सिर्फ़ संवैधानिक व्यवस्था से ही रोका जा सकता है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार ने जिस तरह अनुसूचित वर्गो के खिलाफ़ मनुवादी हिंसा को रोकने के लिए दलित उत्पीड़न निवारण कानून बनाकर दलित विरोधी हिंसा को रोकने की व्यवस्था की थी वैसी ही संवैधानिक व्यवस्था अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी के लिए होना समय की मांग है. इससे हम हिंसा विहीन लोकतंत्र की तरफ बढ़ सकेंगे.
यूपीए सरकार सांप्रदायिक हिंसा विरोधी बिल आया था
उन्होंने कहा कि पहले की यूपीए सरकार ने साम्प्रदायिक हिंसा विरोधी बिल ला कर इस दिशा में कोशिश की थी लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पायी थी. कांग्रेस नेता ने कहा कि यह तर्क कि ऐसा क़ानून राज्य और केंद्र के संघीय ढांचे के विरुद्ध होगा क्योंकि क़ानून व्यवस्था राज्य का विषय है, अप्रासंगिक है. क्योंकि सुरक्षित जीवन जीने के अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकार को सिर्फ़ तकनीकी समस्या में उलझाकर नहीं छीना जा सकता. उन्होंने कहा कि दलित विरोधी हिंसा निवारण कानून से जब राज्य और केंद्र के संघीय संबंधों में कोई दिक्कत नहीं उत्पन्न हुई तो अल्पसंख्यकों के लिए ऐसे ही क़ानून से भी कोई दिक्कत उत्पन्न नहीं हो सकती.
टॉप हेडलाइंस
Source: IOCL






















