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मातोश्री तक सिमटकर रह जाएगी उद्धव की पॉलिटिक्स? शिवसेना पर चुनाव आयोग के फैसले का राजनीतिक मायने समझिए

एकनाथ शिंदे को शिवसेना की कमान मिलने के बाद उद्धव ठाकरे गुट पर आर्थिक और राजनीतिक असर होने की संभावनाएं सबसे अधिक है. पार्टी के पास कई इलाकों में अब मजबूत नेताओं की कमी हो गई है.

शिवसेना विवाद के 8 महीने बाद उद्धव ठाकरे को बड़ा झटका लगा है. चुनाव आयोग के फैसले के मुताबिक अब उद्धव ठाकरे शिवसेना प्रमुख नहीं रहेंगे. आयोग ने शिवसेना का सिंबल और पार्टी की चाभी एकनाथ शिंदे को सौंप दी है. आयोग के आदेश के तुरंत बाद एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के चुनाव चिह्न धनुष-बाण को अपने ट्विटर प्रोफाइल पर लगाया. 

चुनाव आयोग के आदेश के बाद उद्धव ठाकरे ने शनिवार को मातोश्री में विधायकों, सांसदों और पार्टी पदाधिकारियों के साथ मीटिंग की. बैठक समाप्त होने के बाद उद्धव ने समर्थकों से भावुक अपील करते हुए कहा कि महाशिवरात्रि से पहले मेरा धनुष-बाण चोरी हो गया है. आप सभी जनता के बीच जाएं और उन्हें यह बात बतलाएं.

उद्धव ठाकरे ने चुनाव आयोग के आदेश को लोकतंत्र की हत्या करार दिया है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री लालकिला से ऐलान कर दें कि लोकतंत्र का अंत हो गया है. ठाकरे ने समर्थकों से कहा है कि भगवा ध्वज को फिर से लहराने के लिए गली-गली जाइए. उद्धव ठाकरे ने संकेत दिया कि वे अब मशाल को ही आगे पार्टी का सिंबल बनाएंगे. 

शिवसेना विवाद में 3 बड़ा बयान...
1. उद्धव ठाकरे, पूर्व सीएम- चुनाव आयुक्त इस तरह का फैसला देकर राज्यपाल बनना चाहते हैं. बीजेपी ने संवैधानिक संस्था को गुलाम बना कर रखी है. कोई गुलाम यह तय नहीं कर सकता है कि शिवसेना किसकी है?

2. शरद पवार, एनसीपी चीफ- इंदिरा गांधी के साथ भी ऐसा ही हुआ था, लेकिन इंदिरा ने फैसले को स्वीकार किया. जब कोई फैसला आ जाता है, तो चर्चा नहीं करनी चाहिए. इसे स्वीकार करें, नया चिह्न लें. पुराना चिह्न खोने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

3. संजय राउत, सांसद शिवसेना- हम एक नया चिह्न लेकर जनता के दरबार में जाएंगे और एक नई शिवसेना खड़ी करके दिखाएंगे. चुनाव आयोग से जाकर पूछिए कि राजनीतिक दल की परिभाषा क्या है? यह शिवसेना को खत्म करने की साजिश है.

चुनाव आयोग के आदेश में क्या है?
चुनाव आयोग के 3 सदस्यों की कमेटी ने 77 पन्नों के आदेश में कहा है शिवसेना का संविधान अलोकतांत्रिक है. आयोग ने कहा कि 2018 में शिवसेना ने संशोधित संविधान की प्रति चुनाव आयोग को नहीं सौंपी थी. इसकी वजह दस्तावेज को और अधिक अलोकतांत्रिक बनाना था. 

आयोग ने कहा कि शिवसेना को निजी जागीर बनाने के लिए यह संशोधन किया गया था और उद्धव ने बिना चुनाव कराए अपनी मंडली के लोगों को पदाधिकारी बना दिए. आयोग ने कहा कि 1999 में ही इन तरीकों को नामंजूर किया जा चुका है. 

उद्धव ठाकरे गुट की दलील थी कि उसके पास पदाधिकारियों की संख्या अधिक हैं, इसलिए शिवसेना पर उनका हक है. आयोग ने इसे खारिज कर दिया और विधायकों-सांसदों के बहुमत के आधार पर एकनाथ शिंदे को शिवसेना की कमान सौंप दी.

उद्धव गुट ने आयोग के दावों को गलत बताया
77 पन्नों का आदेश आने के बाद शिवसेना का उद्धव गुट चुनाव आयोग पर ही हमलावर है. रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी नेता अरविंद सावंत ने एक वीडियो जारी किया है, जो 2018 में बनाया गया था. वीडियो में उद्धव ठाकरे के अध्यक्ष निर्वाचन को दिखाया गया है और यह वीडियो मातोश्री की है.

वीडियो में एकनाथ शिंदे, मनोहर जोशी, रामदास कदम, आदित्य ठाकरे, रश्मि ठाकरे समेत पार्टी के कई दिग्गज नेता नजर आ रहे हैं. वीडियो में सभी नेता सर्वसम्मति से उद्धव ठाकरे को अध्यक्ष चुन रहे हैं. इसके बाद नेता और उपनेता का चुनाव हो रहा है. सावंत ने कहा कि इसका दस्तावेज हमने आयोग को दिया था. 

आयोग के फैसले से क्या असर होगा?
दिव्य मराठी ने एडीआर की रिपोर्ट के हवाले से बताया कि 2019-20 में शिवसेना के पास 48.46 करोड़ की एफडी और 186 करोड़ की अचल संपत्ति है. अब एकनाथ शिंदे जिसे कोषाध्यक्ष बनाएंगे, उसके हस्ताक्षर से इन पैसों का संचालन होगा. यानी शिवसेना के हाथ से जाने के बाद सबसे बड़ा नुकसान उद्धव को पैसों का होगा.

पूरे महाराष्ट्र में 82 जगहों पर शिवसेना के बड़े दफ्तर और मुंबई में 280 छोटे-छोटे दफ्तर हैं, जिसके कब्जे को लेकर आगामी दिनों में विवाद हो सकता है. विधानसभा में शिवसेना के लिए अलॉट दफ्तर पर अब एकनाथ शिंदे का कब्जा रहेगा. हालांकि दादर स्थित शिवसेना का दफ्तर, पार्टी का मुखपत्र सामना का स्वामित्व ठाकरे परिवार के पास ही रहेगा. सामना और दादर वाले दफ्तर का संचालन ट्रस्ट के जरिए किया जाता है. 

शिंदे को शिवसेना मिलने के बाद उद्धव गुट पर आर्थिक असर तो होगा ही, लेकिन चुनाव आयोग के फैसले का राजनीतिक असर भी देखने को मिल सकता है, आइए इस स्टोरी में विस्तार से जानते हैं...

1. बीएमसी चुनाव में नुकसान संभव- पिछले 27 सालों से बृहनमुंबई नगर निगम (बीएमसी) पर शिवसेना उद्धव ठाकरे का कब्जा है. सूत्रों के मुताबिक नगर निगम चुनाव की घोषणा आगामी कुछ दिनों में हो सकती है. अगर मार्च तक चुनाव की घोषणा होती है, तो उद्धव ठाकरे को चुनाव में नुकसान संभव है.

वर्तमान में उद्धव ठाकरे को मशाल चुनाव चिह्न आवंटित है, लेकिन आयोग ने उसे भी लेने का संकेत दिया है. इस स्थिति में उद्धव ठाकरे को नए सिरे से पार्टी के लिए आवेदन करना होगा. नई पार्टी बनाने और फिर सिंबल लेने में वक्त लग सकता है. ऐसे में नगरपालिका चुनाव में उद्धव की गाड़ी फंस सकती है. बीएमसी में अगर उद्धव को नुकसान होता है तो उनके जानाधार पर बड़ा असर पड़ेगा. 

2. समर्थक विधायकों को रोकना आसान नहीं- पार्टी छीनने और सिंबल जाने के बाद समर्थक विधायकों और नेताओं को रोकना आसान नहीं है. शिंदे के पास अब करीब 13 विधायक ही बचे हैं. सिंबल जाने के बाद इन विधायकों की सदस्यता पर खतरा मंडराएगा. 

ऐसे में अधिकांश विधायक सदस्यता बचाने के डर से शिंदे खेमा में जा सकते हैं. वहीं सांसदों को भी रोकना मुश्किल है. चुनाव आयोग के फैसले से उद्धव के लिए अपने पास बचे विधायकों और सांसदों को भी रोकना मुश्किल हो सकता है.

इसी बीच सांसद कृपाल तुमाने ने दावा किया है कि उद्धव गुट के 10 विधायक अभी हमारे साथ आने को तैयार हैं और कभी भी आ सकते हैं. 

3. सुप्रीम कोर्ट में भी शिंदे को राहत मिल सकती है- शिवसेना का विवाद अभी सुप्रीम कोर्ट में है और 37 विधायकों पर दल-बदल का खतरा मंडरा रहा है. चुनाव आयोग के फैसले से शिंदे गुट को सुप्रीम कोर्ट में भी राहत मिल सकती है.

शिंदे गुट अब सीधे तौर पर कह सकेगा कि उसका दल ही मुख्य है ना कि विधायकों ने दल बदल किया. हालांकि, चुनाव आयोग के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट की भी मुश्किलें बढ़ा दी है. कोर्ट अब नए सिरे से दलीलें सुननी पड़ सकती है.

उद्धव ठाकरे ने कहा है कि शिवसेना की लड़ाई को भी सुप्रीम कोर्ट ले जाया जाएगा. यानी विवाद अभी और लंबा खिंच सकता है.

4. जहां मजबूत पकड़, वहां नेता नहीं- बाला साहेब ठाकरे के वक्त महाराष्ट्र के मुंबई, ठाणे, पालघर और कोंकण में शिवसेना की मजबूत पकड़ थी. 2019 के चुनाव में भी शिवेसना इन इलाकों में सबसे ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की. इन इलाकों में विधानसभा की करीब 100 सीटें हैं.

शिवसेना में अब टूट के बाद पालघर, कोंकण और ठाणे में पार्टी के पास नेताओं का आकाल पड़ गया है. जनाधार वाले सभी नेता शिंदे गुट में चले गए हैं. पार्टी में उद्धव और आदित्य के अलावा जनाधार वाला कोई भी नेता नहीं बचा है. 

ऐसे में उद्धव के सामने इन इलाकों में मजबूत पकड़ बनाना फिर से आसान नहीं होगा. वहीं इन इलाकों में पार्टी दफ्तर की कमी रहेगी, क्योंकि अधिकांश नेता अपने संपत्ति पर शिवसेना कार्यालय का संचालन कर रहे थे. 

5. बाला साहेब की तस्वीर यूज कर सकते हैं शिंदे- शिवसेना में टूट के बाद सबसे बड़ी बहस बाला साहेब ठाकरे के तस्वीर उपयोग को लेकर छिड़ी थी. उद्धव ठाकरे ने यहां तक कह दिया था कि शिंदे को अपनी बाप की तस्वीर का उपयोग करें ना कि दूसरे बाप की. हालांकि, शिंदे बाला साहेब की तस्वीर यूज करते रहे.

चुनाव आयोग के फैसले के बाद एकनाथ शिंदे बाला साहेब की तस्वीर का उपयोग आसानी से कर सकते हैं. क्योंकि बाला साहेब शिवसेना के संस्थापक रहे हैं और एकनाथ शिंदे अब अध्यक्ष होंगे. दशहरा रैली के लिए भी शिंदे को ही मुंबई का शिवाजी पार्क मिलेगा. यहां से भी उद्धव जो संदेश देते थे, वो अब नहीं देंगे. 

कस्बा और पिंपरी-चिंचवड़ में अग्निपरीक्षा
26 फरवरी को पुणे के कस्बा और पिंपरी-चिंचवड़ सीट पर उपचुनाव होना है. चिंचवड़ में बीजेपी और शिवसेना उद्धव गुट के बीच मुकाबला है. वहीं कस्बा में कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने है.

चिंचवड़ में एनसीपी ने भी प्रत्याशी उतार दिया है. उद्धव अगर चिंचवड़ सीट जीतने में सफल रहते हैं तो पार्टी समर्थकों का मनोबल काफी ज्यादा बढ़ जाएगा. वहीं हार होने पर कई तरह की अटकलें लग सकती है. पार्टी नेता आदित्य ठाकरे ने प्रचार की कमान संभाल ली है.

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