Delhi Politics: मनीष सिसोदिया जेल में हैं, आपको कैसा लग रहा है? जवाब में जानें क्या बोल गए कुमार विश्वास
Delhi Politics: मनीष सिसोदिया आपके बचपन के दोस्त रहे हैं. वो इन दिनों तिहाड़ जेल में हैं. क्या आप उनके परिवार के संपर्क में हैं.

Delhi News: देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन यानी अन्ना आंदोलन के बाद लोगों के जेहन में कई क्रांतिकारी चेहरे उभरकर सामने आए थे. उनमें से प्रमुख चेहरों में सीएम अरविंद केजरीवाल, दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और युवा कवि और पूर्व आप नेता कुमार विश्वास का नाम भी शामिल है. इनमें दो अभी भी राजनीति में हैं. लेकिन एक नाम, कुमार विश्वास का राजनीति से मोहभंग हुआ तो वो फिर अपने पुराने पेशे यानी अध्ययन-अध्यापन और साहित्य रचना के क्षेत्र में लौट आए.
इस बीच आम आदमी पार्टी की राजनीतिक सोच, समझ और शैली में बहुत बदलाव आ गए. आप की राजनीतिक शुचिता में बहुत बदलाव आ गया है. संभवतः कुमार विश्वास उसी से परेशान हुए और उन्होंने आप से नाता तोड़ लिया, लेकिन वो समय समय पर अपने मित्रों यानी अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया पर निशाना साधते रहते हैं. इसी क्रम में जब नई अबाकारी नीति को लेकर सीबीआई ने मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी हुई तो भी उन्होंने आप की राजनीति और उसके अगुवा नेताओं को निशाने पर लिया था.
कुछ दिन पहले ही द लल्लनटॉप के एक इंटरव्यू यह पूछे जाने पर कि जब भी अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया का जिक्र होता है तो आपके मन में तीख्ता आती है. इन दोनों के आप आत्ममुग्ध बौना शब्द का इस्तेमाल करते हैं. मनीष सिसोदिया आपके बचपन के दोस्त रहे हैं. वो इन दिनों तिहाड़ जेल में हैं. क्या आप उनके परिवार के संपर्क में हैं. उनकी पत्नी सीमा सिसोदिया आपकी बहन की तरह हैं.
'मैं दिन वाय इश्क को जानता हूं'
इसके जवाब में कुमार विश्वास कहते हैं, ये बात सही है, लेकिन मैं उनके संपर्क में नहीं हूं. उन्होंने कहा कि मैं -दिन इश्क वाय- को जानता हूं. जब इंसान को किसी का पहला और सच्चा इश्क फेल होता है, तो वो आदमी बहुत दिन तक रोता है. बहुत दिन तक उसे उसकी बातें याद आती हैं वो खरोंच उसके चेहरे से कभी नहीं मिटती. इसी को लेकर मैं एक मुक्तक पहले भी हमेशा सुनाई है. आपको भी सुना रहा हूं. आप इसी से इस मसले पर मेरे विचारों का अंदाजा लगा लीजिए. इसके बाद कुमार कहते हैंः
पराए आसुओं से आंख को नम कर रहा हूं मैं
भरोसा आजकल खुद पर कुछ कम रहा हूं मैं
बड़ी मुश्किल से जागी थी जमाने की निगाहों में
उसी उम्मीद के मरने का मातम कर रहा हूं मैं.
'मुझे बहुत दुख है कि...'
उन्होंने कहा कि जब मनीष की गिरफ्तारी हुई तो, पूरी दुनिया बैठी रहीं और कोई बाहर नहीं निकला. जनता चुप रही. ऐसा क्यों हुआ, क्योंकि आपने चेतना की हत्या कर दी. भ्रष्टाचार के खिलाफ इतना बड़ा विक्षोभ और मंथन का अवसर पैदा हुआ. आपने उसकी हत्या कर दी. इसलिए मुझे दुख सिसोदिया के जेल जाने का बहुत दुख है.
'सर को इतना भी मत झुकाओ कि दस्तार गिरे'
इससे आगे उन्होंने कहा कि मुझसे किसी ने पत्रकार ने पूछा कि मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी हुई है, आपको कैसा लग रहा है भाई? मैंने कहा मुझे दुख है. एक ठीकठाक जीवन नौकरी करने वाला, सही आदमी धीमे-धीमे षडयंत्रों के प्रति सहमति जताया, सही विरोधभासों व भावनाओं को दबाया, ये सोचता रहा बेहतरी के लिए ये भी सह लो और वो करता है. इन सब बातों को लेकर मुझे एक एक दोस्त शकीम का शायर याद आता हैः -सर को इतना भी मत झुकाओ कि दस्तार गिरे- यानी इतना भी मत गिराओ कि टोपी किसी के पांव तक गिर जाए.
'सर थोड़ा टचअप करा देते हैं'
इन सबके बावजूद मुझे दुख है, झोभ है, गुस्सा है, अंदर से पीड़ा होती है, आज भी मुझे वो मिलते हैं जिनके चेहरे पर उम्मीदें थीं. इसी क्रम में उन्होंने कहा कि आंदोलन समाप्त होने के दूसरी दिन मैं नोएडा के एक टीवी चैनल में बहस में शामिल होने के लिए उनके आफिस पहुंचा था. बहस में शामिल होने के लिए जो लड़की मुझे लेने आई थी, वो धूप और गर्मी से मेरे काले चेहरे को देखकर बोली, सर थोड़ा टचअप करा देते हैं. मैंने जवाब में कहा- ठीक है.
'AAP कहां आकर लैंड कर गए'
मेकअप आर्टिस्ट आई और उसने कहा- ओ माय गॉड, सर मैं आपको छूं लूं क्या? वह रोने लगी, मैंने उसे गले लगाया. मेकअप आर्टिस्ट ने कहा सर, सुखदेव और राजगुरु को मैंने नहीं देखा, आज आपको देख लिया. आप यहां से चले थे बॉस, और आप कहां लैंड किए हैं. आगे कुमार विश्वास कहते हैं- पृथ्वी पर सैटेलाइट का छोड़ना महत्वपूर्ण नहीं, महत्वपूर्ण यह है कि सैटेलाइट लैंड कहा करता है. इसी क्रम में वह स्वाति नक्षत्र के एक पक्षी और गिद्ध की तुलना करते हुए कहते हैं कि स्वाति नक्षत्र का पक्षी बहुत छोटा होता है जबकि गिद्ध बहुत बड़ा. स्वाति नक्षत्र का पक्षी मुंह खोलकर अमृत की तलाश में होता है और गिद्ध पेड़ के उपर बैठकर लाश ढूंढ रहा होता है.
'गिद्धों की तरह लाश ढूंढ रहे हैं सब'
उन्होंने कहा कि आप ने आपने उंचाई तो पाई पर, गिद्धों वाली. जहां आप गिद्धों की तरह लाश ढूंढ रहा होते है.ं मरे हुए मुद्दे ढूंढते हैं. बदबूदार संवदना ढूंढते हैं. मुझे तो यह भी पता नहीं कि जो संवेदना पैदा की गई सच्ची है या झूठी. खैर, ईश्वर करे कि वो झूठी हो. ऐसे में आप सोचिए न, मुझे दुख क्यों न हो? कहना आसान है, आप कैसे सोच सकते हैं कि मैं इस पर टिप्पणी न करूं.
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