होसबोले के बयान पर सियासत गरमाई, RJD बोली- 'देश संविधान से चलेगा, RSS के ज्ञान से नहीं'
Bihar Politics: RSS नेता होसबोले के 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्दों पर बयान से बिहार की राजनीति गर्म है. RJD ने चुनाव से जोड़ा मुद्दा, कहा- देश संविधान से चलेगा, संघ के एजेंडे से नहीं.

Bihar Politics: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले के बयान पर बिहार में सियासी बवाल मच गया है. होसबोले ने संविधान की प्रस्तावना में शामिल शब्द ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ को लेकर बहस की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि ये शब्द इमरजेंसी के दौरान जोड़े गए थे और अब वक्त आ गया है कि इस पर चर्चा होनी चाहिए. इस पर विपक्ष खासकर राष्ट्रीय जनता दल ने तीखी प्रतिक्रिया दी है.
राजद ने इस बयान को आगामी विधानसभा चुनाव से जोड़ते हुए आरएसएस और भाजपा पर हमला बोला है. पार्टी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, 'ये देश संविधान, कानून और लोकतांत्रिक व्यवस्था से चलेगा, न कि संघ के ज्ञान से. RSS को अब संविधान की समीक्षा की बात करने का कोई हक नहीं है, जिसने कई वर्षों तक तिरंगे को ही नहीं स्वीकारा था.'
राजद ने किया पलटवार, चुनावी मुद्दा बताया
राजद ने साफ कहा कि बिहार का विधानसभा चुनाव अब संविधान और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई बन चुका है. मृत्युंजय तिवारी ने कहा, 'लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. जनता अब तय करेगी कि संविधान मानने वाले सत्ता में आएंगे या उसे चुनौती देने वाले.'
इंडिया गठबंधन ने दिया समर्थन
राजद प्रवक्ता ने इंडिया गठबंधन की ओर से भी मोर्चा संभालते हुए कहा कि यह लड़ाई सिर्फ बिहार की नहीं, पूरे देश की है. उन्होंने कहा कि RSS का एजेंडा संविधान की आत्मा को बदलने का है, लेकिन यह देश किसी संगठन के एजेंडे से नहीं, संविधान से चलता है. उन्होंने जनता से अपील की कि सच्चाई को पहचानिए और संविधान की रक्षा के लिए खड़े होइए.
होसबोले ने अपने बयान में सीधे तौर पर कांग्रेस का नाम नहीं लिया, लेकिन इशारों में कहा कि जो लोग कभी आपातकाल थोपने वाले थे, वे आज संविधान की प्रतियां लेकर घूम रहे हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि संविधान की मूल प्रस्तावना में जो शब्द नहीं थे, क्या उन्हें बाद में जोड़े जाना सही था?
बिहार में राजनीतिक दलों ने इस बयान को तुरंत चुनावी रंग दे दिया है. राजद ने जहां इसे लोकतंत्र बनाम तानाशाही की लड़ाई बताया है, वहीं बीजेपी और संघ की ओर से फिलहाल कोई जवाब नहीं आया है. लेकिन इतना तय है कि चुनाव से पहले संविधान की प्रस्तावना का मुद्दा सियासी बहस का बड़ा केंद्र बनता जा रहा है.
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