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SC on Gyanvapi | Supreme Court का फैसला: मस्जिद में नमाज़ होगी, वुज़ू के लिए किया जाये इंतेज़ाम, बाक़ी ज़रूरी बातें | FYI | Ep. 244
Supreme Court, Supreme Court verdict & Gyanvapi mosque

SC on Gyanvapi | Supreme Court का फैसला: मस्जिद में नमाज़ होगी, वुज़ू के लिए किया जाये इंतेज़ाम, बाक़ी ज़रूरी बातें | FYI | Ep. 244

Episode Description

Introduction:

Time: 0.10 - 1.09

तो Gyanvapi मस्जिद पर Varanasi Court का फैसला कल ही आ जाता मगर जैसा कि मैंने आपको कल के FYI में बताया - Varanasi Court से भी ऊपर जो कोर्ट है यानी कि Supreme Court, वो पहले से ही मस्जिद समिति की एक याचिका सुन रही है जिसमें उन्होंने मस्जिद के अंदर survey और video-photo लेने की खिलाफत की है। तो Supreme Court ने कहा था कि अभी Varanasi Court फैसला न दे क्योंकि वो खुद मस्जिद समिति का केस सुन रहे हैं। अब आज Supreme Court का फैसला आ चुका है। जी हाँ। इस एपिसोड में हम आपको बताएँगे कि क्या कहाँ Supreme Court ने ज्ञानवापी मस्जिद पर और बात करेंगे अपने एक्सपर्ट से

Body:

Time: 1.10 - 5.30

नमस्कार आदाब सत्श्रीअकाल,

मैं हूँ Sahiba Khan और आप सुन रहे हैं ABP Live Podcasts की पेशकश FYI जहाँ बात होती है ज्ञान की मगर वो ज्ञान जो समझ आ जाये आसानी से।मेरा ऐसा मानना है कि अगर आप अपनी बात किसी 10 साल के बच्चे को नहीं समझा सकते हैं, तो मान लीजिये कि आपको भी वो बात सही से समझ नहीं आई। इसलिए आज मैं आपके सामने हूँ Gyanvapi Masjid के Supreme Court verdict के साथ और आपको सभी ज़रूरी pointers दूंगी इस पर। लेकिन थोड़ा सा आपको brush-up कर दूँ कि मामला क्या था। 

मामला ये था कि कुछ हिन्दू महिलाओं ने याचिका दायर की कि काशी विश्वनाथ हिन्दू मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद में उन्हें पूजा अर्चना करने की अनुमति दी जाए क्योंकि उन्हें लगता है कि किसी समय में वो एक मंदिर हुआ करता था और उसके नीचे हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां या फर शास्त्र दबे हो सकते हैं। ये मामला Varanasi Court में गया।  वहां उन्होंने मस्जिद में urvey कराने को मंज़ूरी देदी कि भाई ठीक है देख लो अगर कुछ मिल जाये। survey होता रहा और इसी दौरान मुस्लिम पक्ष - Masjid Intezamiya Committee - यानी कि मस्जिद की management committee भी क़ानूनी जंग में उतर आए। उनका कहना है कि ये केस तो सुना ही नहीं जाना चाहिए क्योंकि ये तो Places of Worship Act 1991 का उल्लंघन है। अब Places of Worship Act 1991 क्या है आप पूछेंगे 

Places of Worship Act 1991 कहता है कि 15 अगस्त 1947 के बाद से जो पूजा घर जैसा है उसका character, nature वही रहेगा। अब चाहे वो मंदिर हो, मस्जिद हो, गिरजाघर हो इत्यादि। तो जब एक कानून पहले से ही पारित किया जा चुका है 1991 में तो उस हिसाब से तो ये केस ही नहीं बनता। आपको बताती चलूँ कि Ayodhya Verdict में इस कानून को दरकिनार कर फैसला सुनाया गया था मगर अदालत ने माना था कि ये तो exception हैं। आज जब मुस्लिम पक्ष ने ये दलील दी तो Justice Chandrachud ने कहा कि अगर कहीं शिवलिंग मिल रहा है या हिन्दू देवी देवताओं की मुर्तिया मिल रही हैं तो सिर्फ सच का पता लगाना इस कानून के दायरे में नहीं आता। यानी कि survey ने किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया। अब यही शिवलिंग की बात तो मस्जिद कमिटी का कहना है कि वो वुज़ू बनाने वाला हौज़ है, कोई शिवलिंग नहीं। शिवलिंग में बिच में छेड़ कैसे हो जायेगा।

तो Supreme Court के 3 जज ये मामला सुने और अपना फैसला सुनाया। फैसला कुछ ऐसा था:

  • केस को वाराणसी सिविल जज के को सौंप दिया गया है और अब वही फैसला करेंगे कि इसकी अगली सुनवाई कब होगी
  • Supreme Court ने पहले ये फैसला दिया था - कि मस्जिद में नमाज़ होती रहेगी मगर जिस जगह शिवलिंग होने की पुश्टी हुई है सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, उस जगह को protect करें, आप उसे सील न करें। तो अब यही फैसला अगले 8 हफ़्तों तक बना रहेगा और तब तक दोनों, हिन्दू और मुस्लिम पक्ष सिविल जज को अपनी अपनी दलीलें पेश करें और वो दोनों को सुन कर फैसला सुनाएं। यानी कि 2 महीने का समय मिला है 
  • DM इस फैसले का संज्ञान लें और मुसलमानों को वुज़ू बनाने की जगह मुहैय्या कराएं।
  • मुस्लिम पक्ष, जिसका मानना है कि Places of Worship Act 1991 के तहत केस ही नहीं बनता, वही SC ने पूछा है कि अगर किसी धार्मिक स्थान पर किसी और धर्म के अवशेष या proof मिलते हैं तो उस पर जांच करना गलत है ये कहाँ लिखा है कानून में। इस पर मुस्लिम पक्ष ने कहा कि अगर ऐसा होता है तो धार्मिक स्थान का nature बदलना तो तय है। उसी के लिए तो सर्वे कराया जा रहा है। 
  • Supreme Court ने कहा है कि वो इस केस को निपटा नहीं रहे हैं बल्कि एक ज़्यादा अनुभवी बेंच को ये केस सौंपना चाहते हैं। अगर कोई भी पक्ष सिविल जज के फैसले से संतुष्ट नहीं तो वो हाई कोर्ट जाए और फिर हमारे पास आए, हम ये केस दोबारा सुनेंगे।

हमने बात की Areebuddin से जो इस केस को लम्बे समय से फॉलो कर रहे हैं और कई बार अलग अलग जगहों पर इनके articles भी इस मुद्दे पर पब्लिश हुए हैं। तो सुनिए Areebuddin का क्या कहना है इस पूरे विवाद पर।

<Interview> 5.31 - 14.35

Conclusion:

Time:  14.35 - 15.40

तो ये थे advocate Areebuddin जिन्होंने बहुत ही साधारण और आसान भाषा में हमें इतने पेचीदा मुद्दे के बारे में बताया। उम्मीद है आपको क़ानून की भाषा समझ आयी होगी। ऐसे बड़े और पेचीदा cases हमारे लिए जानने ज़रूरी होते हैं ताकि हम एक जागरूक और ज़िम्मेदार नागरिक रहें और क्या सही है क्या गलत, इसका फैसला खुद कर सकें न कि किसी Whatsapp University से पढ़ कर। 

तो आज के हिसाब से ये FYI हो गया है काफी भरी इसलिए अब अब जाएं अपना weekend मनाएं। मैं भी चलती हूँ, मिलूंगी अगले FYI में। तब तक अपना ध्यान रकहिं और सुनते रहे ABP Live Podcasts FYI के बाक़ी एपिसोड्स। मैं हूँ Sahiba Khan, podcast की sound designing की है ललित ने

नमस्कार 

Host and Producer: @jhansiserani

Sound designer: @lalit1121992

Guest advocate: @Areebuddin14

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