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Nobel Prize 2022: नोबेल शांति पुरस्कारों को लेकर क्यों होता है अक्सर विवाद?

Nobel Peace Prize: नोबेल शांति पुरस्कार का दुनिया को बेसब्री से इंतजार रहता है, लेकिन शांति के लिए दिए जाने वाले इस पुरस्कार का रिश्ता अंशाति से भरे विवादों को खड़ा करने के लिए भी जाना जाता है.

Nobel Peace Prize 2022: नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) अक्टूबर की शुरुआत में दुनिया के सबसे खास मानवाधिकार नेताओं, अर्थशास्त्रियों, वैज्ञानिकों और लेखकों को हर साल दिए जाने वाले 6 पुरस्कारों में से एक है. चिकित्सा, भौतिकी और रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कारों के विजेताओं एलान हो चुका है. शुक्रवार 7 अक्टूबर को नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) का एलान भी कर दिया गया. इस बार नॉर्वेजियन नोबेल समिति ने बेलारूस के मानवाधिकार कार्यकर्ता एलेस बियालियात्स्की (Ales Bialiatski), रूसी मानवाधिकार संगठन मेमोरियल (Memorial) और यूक्रेन के मानवाधिकार संगठन सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज (Center for Civil Liberties) नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा है.नोबेल पुरस्कारों में शांति के नोबेल को लेकर खासी बेकरारी और इंतजार रहता है, लेकिन अक्सर यह विवादों में पड़ जाता है. यहां हम जानने की कोशिश करेंगे कि शांति के लिए दिया जाना वाला ये पुरस्कार अक्सर विवादों की चपेट में क्यों आता रहा है.

क्यों होता है विवाद

नोबेल शांति पुरस्कार पहली बार 1901 में दिया गया था. इसे आज सबसे प्रतिष्ठित - और कभी-कभी विवादास्पद ​​पुरस्कारों में से एक माना जाता है. इस पुरस्कार की चयन प्रक्रिया में कई बार लिंगवाद, नस्लवाद और पुरस्कार समिति के यूरोसेंट्रिक (Eurocentric) यानी यूरोप पर फोकस होने के आरोपों ने असर डाला है.इस पुरस्कार की अपरिपक्व और गलत तरीके से शांति की समझ को लेकर खासी आलोचना की गई इस पर  राजनीति से प्रेरित होने के लिए भी आलोचना की गई है. अभी तक 109 लोगों ने शांति का नोबेल पुरस्कार जीता है. इसमें 18 महिलाएं हैं. साल 1979 में ये मदर टेरेसा को तो साल 1991 में म्यांमार की नेता आंग सान सूची को दिया गया था.

इस साल, नोबेल शांति पुरस्कार के लिए 343 उम्मीदवार मैदान में थे. इसके लिए 251 लोगों ने निजी तौर पर और  92 संगठनों ने दावेदारी पेश की थी. नोबेल पुरस्कारों में शांति के नोबेल को लेकर खासी बेकरारी और इंतजार रहता है, लेकिन अक्सर यह विवादों में पड़ जाता है. इस पुरस्कार को देने वाली समिति पर राजनीति से प्रेरित, व्यक्तिपरक यानी निजी पंसद को ध्यान में रखकर विजेताओं का चुनाव करने के आरोप लगते रहे हैं. इतना ही ये भी माना जाता है कि कभी-कभी ये समिति कामयाबियों को दरकिनार कर अपनी तमन्नाओं या चाह को आधार बना विजेता का चुनाव करती है. 

कैसे चुने जाते हैं शांति पुरस्कार विजेता?

नॉर्वेजियन नोबेल समिति (Norwegian Nobel Committee ) नॉर्वेजियन संसद के नियुक्त किए गए 6 सदस्यों से बनी  है. ये समिति ही नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के चयन के लिए जिम्मेदार है. इस पुरस्कार के लिए पात्र होने के लिए एक शख्स को योग्य व्यक्तियों के जरिए नामांकित होना जरूरी होता है. ये सदस्य राष्ट्रीय सरकारों के सदस्य या वर्तमान राज्यों के प्रमुख, नोबेल शांति पुरस्कारों (Nobel Peace Prize) के पूर्व विजेता, विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और कई सम्मानित शख्सियतें होती हैं. पुरस्कार के लिए खुद से नामांकन कराने वाले शख्स के नाम पर विचार नहीं किया जाता है. 

नोबेल फाउंडेशन जीतने के बाद अगले 50 साल के लिए नामांकन और इस पर हुए विचार-विमर्श की प्रक्रिया के बारे में जानकारी का खुलासा करने पर रोक लगाता है. अभी तक नोबेल पीस प्राइज के विजेताओं में बराक ओबामा, मिखाइल गोर्बाचोफ, मलाला यूसुफजई और नेल्सन मंडेला शामिल हैं. साल 2021 का नोबेल शांति पुरस्कार फिलीपींस की पत्रकार  मारिया रसा (Maria Ressa) और रूस के दिमित्री मुरातोव (Dmitry Muratov) को संयुक्त तौर पर दिया गया हर विजेता को लगभग  900000 डॉलर मिलते हैं.  विजेता को 10 दिसंबर को एक डिप्लोमा और एक स्वर्ण पदक साथ सौपें जाते हैं. अल्फ्रेड नोबेल के मौत के दिन 10 दिसंबर 1896 पर इसे दिए जाने की परंपरा है.

कुछ पुरस्कार विजेता रहे थे विवादास्पद? 

नोबेल शांति पुरस्कारों पाने वाले विवादित चुनावों में  इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद (Ethiopia’s Prime Minister Abiy Ahmed) जैसे लोग शामिल हैं. पीएम अहमद ने शांति समझौते के जरिए इरिट्रिया (Eritrea) और इथियोपिया के बीच 20 साल के संघर्ष को खत्म करने के लिए 2019 में ये पुरस्कार जीता था. इसके एक साल बाद ही  2020 में उत्तरी इथियोपिया में एक संघर्ष शुरू हुआ. इस दौरान टिग्रे (Tigray) क्षेत्र में पीएम अहमद की सेना की मानवाधिकारों के उल्लंघन और युद्ध अपराधों के लिए आलोचना की गई. साल 1991 में नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाली आंग सान सू ची से 20 साल बाद इस पुरस्कार को वापस लेने की मांग उठी थी. उन पर रोहिंग्या मुसलमानों के कत्ल के साथ ही उनके मानवाधिकारों के हनन के आरोप लगे थे. संयुक्त राष्ट्र ने इसे 'नरसंहार' करार दिया था. 

बराक ओबामा पर भी हुआ बवाल

इसी तरह बराक ओबामा (Barack Obama) को 2009 में शांति का नोबेल पुरस्कार पाने पर आलोचना का सामना करना पड़ा. उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर रहने के पहले साल में ही ये पुरस्कार मिल गया था. कई लोग को मानना था कि उन्हें ये पुरस्कार बेहद जल्दी दे दिया गया है. इसके साथ ही उन्हें इस पुरस्कार के लिए चुने  जाने को लेकर इसलिए भी सवाल किए गए कि उनके पद पर रहते हुए लीबिया (Libya), अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक और यमन में युद्धों में ओबामा शासन की भागीदारी रही थी. 

किसिंजर- यासिर अराफात पर सवाल

इनके अलावा शांति के नोबेल पुरस्कार के अन्य विवादास्पद विजेताओं में 1994 में फ़िलिस्तीनी नेता यासिर अराफ़ात भी रहे थे. उन्हें इजराइल के तत्कालीन प्रधानमंत्री येत्‌ज़ाक रॉबिन और विदेश मंत्री शिमोन पेरेस के साथ ओस्लो शांति समझौते (Oslo Peace Accords) के लिए ये दिया गया था. तब उनके खुद के देश सहित दूसरे देशों में अराफ़ात को ये पुरस्करा देने पर कड़ी आलोचना की गई, क्योंकि पूर्व में वो अर्धसैनिक गतिविधियों में शामिल रहे थे.

70 के दशक में अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर और उत्तरी वियतनामी नेता ली डक थो के नामों का एलान शांति के नोबेल के लिए  हुआ. लेकिन नेता ली डक थो ने इस पुरस्कार को लेने से इंकार कर दिया था. पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर (Henry Kissinger) को वियतनाम युद्ध को खत्म करने की बातचीत के लिए 1973 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला था. लेकिन इन्हीं किसिंजर पर शीत युद्ध के दौरान कई युद्ध अपराधों का भी आरोप लगाया गया था. इनमें 1969 और 1970 में कंबोडिया (Cambodia) में किए गए बम विस्फोट भी शामिल थे. 

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