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क्या कहती है राहुल गांधी और संजय राउत के बीच बढ़ रही करीबी?

Rahul Gandhi and Sanjay Raut: उद्धव सरकार पर बीजेपी अक्सर तीन पहिए वाली सरकार कहकर तंज कसती है, जिसका संतुलन बनाए रखना चुनौती है. वहीं महाराष्ट्र में कांग्रेस-शिवसेना के बीच की तनातनी भी छिपी नहीं है.

Closeness Between Rahul Gandhi and Sanjay Raut: कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में विपक्षी दल के नेताओं को नाश्ते पर बुलाया. इस नाश्ता पार्टी में शिवसेना नेता संजय राउत भी शामिल हुए. मेल-मुलाकात के इस दौर से दो ऐसी तस्वीरें निकली, जो दिल्ली से महाराष्ट्र तक की सियासत में चर्चा की वजह बनीं. पहली तस्वीर में राउत और राहुल नाश्ते की टेबल पर अगल-बगल बैठे हैं और दूसरी तस्वीर में राहुल गांधी संजय राउत के कंधे पर हाथ रखकर बात करते नजर आ रहे हैं. तस्वीरें वायरल होने के बाद चर्चा चली कि ये तस्वीरें राहुल गांधी और संजय राउत की बढ़ती करीबी बयां करती हैं लेकिन आखिर इस बढ़ती करीबी की वजह क्या है? आइए समझने की कोशिश करते हैं.

राहुल-राउत की दोस्ती

महाराष्ट्र की उद्धव सरकार पर बीजेपी अक्सर 'तीन पहिए वाली सरकार' कहकर तंज कसती है, जिसका संतुलन बनाए रखना चुनौती है. उधर, महाराष्ट्र में कांग्रेस और शिवसेना के बीच की तनातनी भी किसी से छिपी नहीं है. सरकार में शिवसेना की सहयोगी कांग्रेस के साथ अनबन की खबरें अखबारों की हेडलाइन बनती हैं. शिवसेना इसी 'सिरदर्दी' का इलाज खोज रही है और इस बार भी 'इलाज' का जिम्मा सौंपा गया है संजय राउत को. कहते हैं अगर दरोगा पीछे पड़ा हो तो कोतवाल से दोस्ती कर लो. महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की अगुवा शिवसेना भी इसी फॉर्मूले पर आगे बढ़ चली है. शिवसेना महाराष्ट्र कांग्रेस से आए दिन उठने वाली अदावत की आवाजों को दबाने के लिए सीधे केंद्रीय नेतृत्व के साथ संबंधों को मजबूत करने में जुटी है. राहुल के साथ राउत की मुलाकातों को इसी कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.

सियासत में 'सेंटिंग' के उस्ताद हैं संजय!

2019 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद सियासत के पंडित भी इस बात का अनुमान नहीं लगा सकते थे कि शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी मिलकर महाराष्ट्र में नई सियासत का अध्याय लिखेगी लेकिन इस असंभव गठबंधन के पीछे जितना क्रेडिट शरद पवार को जाता है उतना ही सियासत में सेटिंग के उस्ताद कहे जाने वाले शिवसेना के मुखपत्र सामना के कार्यकारी संपादक और शिवसेना नेता संजय राउत को जाता है.

दरअसल, जानकार बताते हैं कि वह संजय राउत ही थे जिन्होंने शरद पवार के मन को आखरी समय पर बीजेपी के साथ हाथ मिलाने को लेकर बदला. दरअसल, पवार भी इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं थे कि कांग्रेस शिवसेना के साथ सरकार बनाने को लेकर हामी भरेगी लेकिन बीजेपी के साथ न जाने और कांग्रेस को साथ लेने पर सहमत कर महाविकास अघाडी सरकार का गठन किया. संजय राउत एक अच्छे वक्ता के साथ तेज तर्रार लिखने के लिए भी जाने जाते हैं. प्रधानमंत्री मोदी से लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी या नीतीश कुमार हो या ममता बनर्जी सभी को अपने लेख के जरिए उन्होंने समय-समय पर निशाने पर लिया है.

पवार पर 'प्रेशर पॉलिटिक्स'

एनसीपी प्रमुख शरद पवार पिछले 15 दिनों में बीजेपी के दो बड़े नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं. जिसमें प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह शामिल है. दरअसल जुलाई महीने के आखिरी सप्ताह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एनसीपी प्रमुख शरद पवार मुलाकात कर चुके हैं. पवार की इन मुलाकातों के बाद सियासी गलियारों में एनसीपी बीजेपी के साथ आने को लेकर चर्चाएं भी जमकर हो रही है.

दरअसल, कयास इस बात को लेकर लग रहे हैं पवार पाला बदल सकते हैं और यही वजह है कि शिवसेना और कांग्रेस एक दूसरे के करीब आकर पवार पर प्रेशर पॉलिटिक्स खेल भी खेलती दिख रही है. मोदी सरकार ने संसद सत्र के दौरान कोरोना काल में सरकार के उठाए कदम का प्रेजेंटेशन ऑल पार्टी नेताओं के लिए रखा था. जिसका कांग्रेस ने जमकर विरोध किया लेकिन शरद पवार इस प्रेजेंटेशन में पहुंचे थे और बीच में ही पवार नितिन गडकरी से भी मुलाकात कर चुके थे, जिसकी वजह से राजनीतिक हलकों में पवार की भूमिका को लेकर अटकलें तेज है.

दोस्ती का फायदा 50-50

ऐसा नहीं है कि राहुल के साथ राउत की दोस्ती का फायदा सिर्फ शिवसेना को ही होगा. इस दोस्ती को दोनों के लिए ही 50-50 फायदे के तौर पर देखा जा रहा है. दरअसल, बीते दिनों में राहुल के सियासी कदमों से ये साफ संकेत मिलता है कि वे अब यूपीए के बाहर दलों के साथ भी करीबी बढ़ाने की कोशिशें कर रहे हैं. राहुल गांधी की कांग्रेस और उसके सहयोगी दल जैसे डीएमके, आरजेडी और जेएमएम के बीच स्वीकार्यता है. लेकिन अब वे अन्य विपक्षी दलों के बीच पैठ बनाने के प्रयास कर रहे हैं. हाल की नाश्ता पार्टी इसी दिशा में बढ़ाया गया एक कदम है. राहुल गांधी की बुलाई बैठकों में टीएमसी, समाजवादी पार्टी और शिवसेना के प्रतिनिधियों की मौजूदगी भी इस बात का साफ संकेत हैं.

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