बंगाल: SIR की सुनवाई कुछ समय के लिए रुकी, टीएमसी विधायक ने बीएलए को बाहर रखने का विरोध किया
टीएमसी विधायक असित मजूमदार ने पत्रकारों से कहा, 'जब तक बीएलए को अनुमति नहीं दी जाती या अधिकारी लिखित में यह नहीं बताते कि उन्हें अनुमति नहीं दी जाएगी, तब तक हम सुनवाई की अनुमति नहीं देंगे.'

पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के चिनसुराह-मोगरा ब्लॉक कार्यालय में सोमवार (29 दिसंबर, 2025) को मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) मामले की सुनवाई उस समय कुछ देर के लिए रोक दी गई, जब तृणमूल कांग्रेस (TMC) के विधायक असित मजूमदार ने बूथ-स्तरीय एजेंटों (BLA) को सुनवाई से बाहर रखे जाने पर आपत्ति जताई.
तीन विधानसभा क्षेत्रों के लिए ब्लॉक कार्यालय में जारी यह सुनवाई मजूमदार के इस आग्रह के बाद रोक दी गई कि बीएलए को सुनवाई के दौरान उपस्थित रहने की अनुमति दी जाए. उन्होंने अधिकारी या तो बीएलए को सुनवाई में शामिल होने की अनुमति देने या फिर अनुमति नहीं देने की बात लिखित में देने की मांग की.
मजूमदार ने पत्रकारों से कहा, 'जब तक बीएलए को अनुमति नहीं दी जाती या अधिकारी लिखित में यह नहीं बताते कि उन्हें अनुमति नहीं दी जाएगी, तब तक हम सुनवाई की अनुमति नहीं देंगे.' इस विवाद के बाद ब्लॉक कार्यालय के प्रवेश और निकास द्वार बंद कर दिए गए. निर्वाचन आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार, बीएलए को ऐसी सुनवाई के दौरान उपस्थित रहने की अनुमति नहीं है.
मजूमदार ने बाद में अपना रुख नरम किया और मानवीय आधारों का हवाला देते हुए सुनवाई फिर से शुरू करने की अनुमति दी क्योंकि कई लोग इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिए लंबी दूरी तय करके आए थे. उन्होंने हालांकि यह स्पष्ट नहीं किया कि भविष्य में होने वाली सुनवाई बीएलए की उपस्थिति के बिना आगे बढ़ने की अनुमति दी जाएगी या नहीं.
भाजपा ने आरोप लगाया कि विधायक ने यह हरकत तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी के निर्देशों पर की थीं. पार्टी ने दावा किया कि बनर्जी ने रविवार को एक डिजिटल बैठक के दौरान सुनवाई के दौरान बीएलए को अनुमति देने का सुझाव दिया था. राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने मजूमदार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने और इस तरह की बाधा उत्पन्न होने की सूचना मिलने पर केंद्रीय बलों को तैनात करने की मांग की.
तृणमूल कांग्रेस ने हालांकि मजूमदार का बचाव किया. पार्टी के प्रवक्ता और आईटी सेल के प्रदेशाध्यक्ष देबांशु भट्टाचार्य ने कहा कि बीएलए की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि बहुत से लोग यह समझने में सक्षम नहीं हैं कि उचित स्पष्टीकरण के बिना मतदाता सूची से उनके नाम क्यों हटाए जा सकते हैं.
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