सरकार पर प्रतिकूल टिप्पणी करने में 'संयम' बरते की बात से भड़का SC, लगाई लताड़
अदालत ने कहा कि हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि हमने सभी चीजों के लिए सरकार की आलोचना नहीं की और न ही करते हैं. उन्होंने कहा कि हम भी इस देश के नागरिक हैं.

नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को सरकार को लताड़ा. सरकार चाहती थी कि शीर्ष अदालत जनहित याचिका पर सुनवाई करने के दौरान सरकार पर प्रतिकूल टिप्पणी करने में 'संयम' बरते. इसी पर सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की. शीर्ष अदालत ने साफ किया कि उसका उद्देश्य समस्याओं को सुलझाना है ना कि सरकार की आलोचना करना.
केंद्र सरकार की ओर से पेश एटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि अदालत निजी जनहित याचिकाओं की सुनवाई में वित्तीय प्रभावों के बारे में समझे बिना आदेश जारी कर देती है. वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत के ऐसे निर्णयों की जानकारी देने वाली समाचार पत्रों की सुर्खियों का हवाला दिया.
वेणुगोपाल ने उदाहरण देते हुए कहा कि 2 - जी लाइसेंसों को अदालत द्वारा रद्द करने से भारी विदेशी निवेश देश से बाहर चला गया. इसी तरह राजमार्गो पर से शराब की दुकानों को हटाने के एक और आदेश से वित्तीय घाटा हुआ और लोगों को अपनी रोजी - रोटी खोनी पड़ी. वेणुगोपाल ने कहा कि यहां बजटीय आवंटन का सवाल है. सरकार के 80 - 90 कल्याण कार्यक्रम एक साथ चल रहे हैं. अदालत एक मुद्दे पर सुनवाई कर आदेश दे देती है लेकिन उसके लिए फंड कहां से आएगा.
एटार्नी जनरल ने कहा कि न्यायाधीश जब सरकार के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियां करते हैं तो शायद उन्हें हर समस्या के सभी पहुलओं के बारे में नहीं पता होता. न्यायमूर्ति लोकुर ने उन्हें जवाब देते हुए कहा कि यह अदालत का आदेश ही है जिसके कारण सरकार को गैरकानूनी खनन के लिए पर्यावरण निधि के रूप में 1,50,000 करोड़ रुपये मिले हैं. अदालत ने यह जानना चाहा कि यह राशि अभी तक खर्च क्यों नहीं की गई.
पीठ में न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता भी शामिल हैं. अदालत ने कहा कि हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि हमने सभी चीजों के लिए सरकार की आलोचना नहीं की और न ही करते हैं. उन्होंने कहा कि हम भी इस देश के नागरिक हैं. ऐसी धारणा मत दीजिए कि हम सरकार की आलोचना कर रहे हैं और उसे काम करने से रोक रहे हैं. हम केवल जनता के अधिकारों को लागू कर रहे हैं. हम अनुच्छेद 21 की अवहेलना नहीं कर सकते.
पीठ ने कहा कि अदालत के आदेश के कारण ही कई विकास कार्य हुए हैं. पीठ ने कहा कि आपको केवल अपने अधिकारियों से संसद के बनाए कानूनों का पालन करने के बारे में कहना चाहिए. अदालत देश की 1382 जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों के कारण उत्पन्न अमानवीय स्थितियों पर एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रही है.
शीर्ष अदालत का सुझाव सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में कारागार सुधार पर एक सदस्यीय समिति के गठन का है जिसे दो - तीन सरकारी अधिकारी मदद दें. अदालत ने केंद्र से इस प्रस्तावित समिति के बारे में विवरण देने को कहा और मामले की सुनवाई के लिए 17 अगस्त की तारीख दी.
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