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कोरोना के इलाज में फैली अव्यवस्था पर SC ने जताई चिंता, शवों के गरिमापूर्ण रखरखाव पर भी मांगा जवाब

कोर्ट ने मामले पर खुद संज्ञान लेते हुए पांच राज्यों दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और गुजरात के हालात को सबसे खराब बताया. केंद्र और पांचों राज्यों को नोटिस जारी किया है.

नई दिल्ली:  कोरोना के इलाज को लेकर देश में फैली अव्यवस्था पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है. इस बीमारी से मरने वाले लोगों के शव को गरिमापूर्ण तरीके से न रखे जाने को भी कोर्ट ने निराशाजनक बताया है. मसले पर खुद संज्ञान लेकर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 5 राज्यों दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और गुजरात के हालात को सबसे खराब बताया. इन पांच राज्यों के साथ-साथ कोर्ट ने केंद्र को भी नोटिस जारी किया है. दिल्ली के एलएनजेपी हॉस्पिटल में कोरोना के मरीजों की दुर्दशा से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने इस हॉस्पिटल को अलग से नोटिस जारी किया है. मामले पर 17 जून को आगे की सुनवाई होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने कल ही इस मसले पर संज्ञान लेते हुए सुनवाई की सूचना जारी की थी. मामला जस्टिस अशोक भूषण, संजय किशन कौल और एमआर शाह की बेंच में लगा. केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जजों को बताया कि 15 मार्च को कोरोना के मरीजों के शव के रखरखाव को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए गए थे.

इस पर बेंच ने कहा, "हम शवों से ज्यादा जिंदा लोगों के इलाज को लेकर चिंतित हैं. मीडिया रिपोर्ट से यह जानकारी निकल कर आ रही है कि सरकारी अस्पतालों में बेड खाली पड़े हैं, लेकिन लोग अपने बीमार रिश्तेदारों को लेकर यहां-वहां भाग रहे हैं. मरीजों को ऑक्सीजन जैसी बुनियादी सुविधा भी नहीं मिल पा रही है. इससे भी ज्यादा दुखद यह है कि उन्हें शव के साथ रहना पड़ रहा है."

कोरोना के इलाज को लेकर दिल्ली में फैली बदइंतजामी पर कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की. बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस अशोक भूषण ने कहा, "दिल्ली में रोजाना होने वाले कोरोना टेस्ट को लगातार कम किया जा रहा है. मुंबई में 16 17 हजार लोगों की जांच की जा रही है. दिल्ली में यह संख्या 5 हजार के आसपास आ पहुंची है. टेस्ट की संख्या घटा देना समस्या का हल नहीं है. तरह तरह की तकनीकी अड़चनें पैदा करके लोगों को कोविड-19 टेस्ट से रोका जा रहा है. जबकि होना यह चाहिए कि जिसे भी थोड़ी सी आशंका हो, उसकी तत्काल जांच हो जाए."

कोर्ट ने दिल्ली के एलएनजेपी हॉस्पिटल में मरीजों की बदहाली पर विशेष चिंता जताई. कोर्ट ने कहा, "मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हॉस्पिटल में यहां-वहां शव रखे हैं. मरीजों को शव के साथ रहना पड़ रहा है. ऑक्सीजन, स्लाइन जैसी बुनियादी सुविधाएं भी मरीजों को नहीं मिल पा रही हैं." कोर्ट ने आगे कहा, "दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में बेड खाली पड़े हैं और लोग मरीज को लेकर यहां वहां परेशान फिर रहे हैं. 5814 बेड में से सिर्फ 2620 पर मरीज हैं। फिर भी नए मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है. यह सरकार की जिम्मेदारी है कि सभी अस्पतालों में स्टाफ उपलब्ध कराए, ताकि लोगों को समस्या न हो."

सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट की चिंता से सहमति जताते हुए कहा, "केंद्र के स्पष्ट दिशानिर्देश के के बावजूद शवों को सही तरीके से हैंडल नहीं किया जा रहा है. मैंने एक वीडियो देखा जहां कोरोना मरीज के शव को रस्सी से बांधकर घसीटा जा रहा है." इस पर बेंच के सदस्य जस्टिस एम आर शाह ने कहा, "कई जगह है कूड़ेदान में शव देखे गए. यह किस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है? मृत्यु के बाद भी सम्मान जीवन के मौलिक अधिकार का एक अहम हिस्सा है."

जस्टिस भूषण ने कहा, "तमाम उदाहरण है जहां लोग अस्पताल की लापरवाही के चलते अपने करीबी के अंतिम संस्कार में भी हिस्सा नहीं ले सके. हम पूरे मामले पर केंद्र और 4 राज्यों को नोटिस जारी कर रहे हैं. दिल्ली के एलएनजेपी हॉस्पिटल को भी नोटिस जारी किया जा रहा है. हम पूरे मामले पर केंद्र और 5 राज्यों को नोटिस जारी कर रहे हैं."

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करीब 2 दशक से सुप्रीम कोर्ट के गलियारों का एक जाना-पहचाना चेहरा. पत्रकारिता में बिताया समय उससे भी अधिक. कानूनी ख़बरों की जटिलता को सरलता में बदलने का कौशल. खाली समय में सिनेमा, संगीत और इतिहास में रुचि.
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