सारे जहां से अच्छा: इतिहास के पन्नों में दर्ज चौरी चौरा कांड की कहानी
गोरखपुर के चौरी चौरा में इस आंदोलन की याद में संगमरमर से बना स्मारक बना हुआ है. लेकिन ठीक रखरखाव ना होने से इतिहास की ये अहम घटना लोगों के ज़ेहन से उतरती जा रही है.

नई दिल्ली: आज़ादी की लड़ाई में कई ऐसे दरकिनार किए गए पन्ने हैं, जिनके बारे में बहुत कम चर्चा होती है. ऐसा ही एक पन्ना है चौरी चौरा कांड, जिसने आज़ादी के आंदोलन का रुख बदल कर रख दिया.
साल 1920 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन ने देशभर के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट कर दिया. इसके तहत अंग्रेजी सामानों, अदालतों और पुलिस का बहिष्कार होने लगा. असहयोग आंदोलन शुरू हुआ तो इसका ज़बरदस्त प्रभाव अंग्रेजी हुकूमत पर दिखने लगा, देश के कोने कोने में लोग प्रदर्शऩ करने लगे.
ऐसा ही प्रदर्शन गोरखपुर के पास चौरी चौरा में भी हो रहा था. अंग्रेजों ने इसे कुचलना चाहा और प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला दीं. इस घटना से क्षुब्ध होकर प्रदर्शऩकारियों की एक टोली ने चौरी चौरा पुलिस चौकी में आग लगा दी. जिसमें 23 अंग्रेज पुलिसकर्मियों की मौत हो गई. इसके फौरन बाद महात्मा गांधी ने देशभर में असहयोग आंदोलन को रोक दिया. गांधी जी का असहयोग आंदोलन पूरी तरह अहिंसक था. चौरी चौरा में हुई इस हिंसा ने गांधी जी को झकझोर कर रख दिया. असहयोग आंदोलन का एकदम से रुक जाना अंग्रेजों के लिए अपने खिलाफ उठ रही आवाज़ को दबाने के मौके में बदल गया और अंग्रेजों ने इसका फायदा उठाया. असहयोग आंदोलन वापस लेने पर फिर अंग्रेजों ने गांधी जी को गिरफ्तार किया और उनपर मुकदमा चलाया. गांधी जी के गिरफ्तार होने के बाद देश में अंग्रेजों के खिलाफ जो माहौल बन रहा था वो कमजोर हो गया.
आज इतिहासकारों में इस बात को लेकर बहस जारी है कि अगर गांधी जी ने आंदोलन एकदम से बंद नहीं किया होता तो आजादी 1947 से पहले ही मिल गई होती. असहयोग आंदोलन के अचानक रुकने से आंदोलनकारी बंट गए. एक ने गांधी की राह चुनी और दूसरे ने ठीक उससे उल्टा रास्ता चुना. आजादी का आंदोलन दो अलग-अलग धड़ों में बंट गया जो 'नरम दल' और 'गरम दल' के नाम से जाना गया. नरम दल वाले महात्मा गांधी का समर्थक थे और गरम दल के समर्थक हिंसक तरीके से आजादी पाना चाहते थे. गरम दल ने गांधी जी का हर जगह विरोध करना शुरू कर दिया, इसमें क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल भी शामलि थे.
अंग्रेजों ने चौरी चौरा कांड के जिम्मेदार लोगों को गिरफ्तार किया और मुकदमा शुरू हुआ. अभियुक्तों का मुक़दमा पंडित मदन मोहन मालवीय ने लड़ा और आखिर में उन्हें बचा लिया. उस वक्त ये बड़ी जीत थी.
गोरखपुर के चौरी चौरा में इस आंदोलन की याद में संगमरमर से बना स्मारक बना हुआ है. लेकिन ठीक रखरखाव ना होने से इतिहास की ये अहम घटना लोगों के ज़ेहन से उतरती जा रही है.
Source: IOCL























