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FCA फॉर्मूला, मोदी VS मनमोहन के कामों की तुलना..., बीजेपी ने संसद में बिछा दी 2024 की चुनावी बिसात?

नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भाषण के बाद सियासी गलियारों में यह सवाल बना हुआ है कि जिन बातों का बीजेपी के बड़े नेताओं ने जिक्र किया. क्या वह 2024 चुनाव का ट्रेलर है?

अविश्वास प्रस्ताव पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भाषण ने 2024 का चुनावी एजेंडा लगभग सेट कर दिया है. जानकारों का कहना है कि दोनों नेताओं के स्पीच में ही बीजेपी की रणनीति छुपी हुई है. आगामी दिनों में इन्हीं रणनीतियों के सहारे बीजेपी लोकसभा चुनाव के वैतरणी में उतरेगी. 

खुद प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में दावा किया कि 2024 के चुनाव में बीजेपी की जीत सारे रिकॉर्ड को तोड़ देगी. बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में दावा करते हुए कहा कि पार्टी 400 सीटें आगामी चुनाव में जीतेगी. इंडिया गठबंधन बनने के बाद बीजेपी के दावों ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है. 

राजनीतिक गलियारों में यह सवाल बना हुआ है कि क्या बीजेपी ने भाषण के जरिए ही 2024 की चुनावी बिसात बिछा दी है? क्या बीजेपी ने अपनी रणनीति का सिर्फ ट्रेलर दिखाया है?

आइए इसे विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं...

बात पहले FCA फॉर्मूला की...
9 अगस्त को भारत छोड़ो की बरसी पर प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी नेताओं से एक नारे लगवाए. यही स्लोगन संसद में अमित शाह ने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सांसदों से लगवाए. स्लोगन में परिवारवाद, भ्रष्टाचार और तुष्टीकरण की राजनीति को भारत छोड़ने की बात कही गई है. 

इंडिया गठबंधन को प्रधानमंत्री ने परिवारवाद की उपज बताया था. माना जा रहा है कि बीजेपी 2024 में परिवारवाद (Familism), भ्रष्टाचार (Corruption) और तुष्टीकरण (Appeasement) को बड़ा मुद्दा बना सकती है. जानकार इसे बीजेपी का FCA फॉर्मूला कह रहे हैं.

बीजेपी इस मुद्दे को उठाकर एक साथ इंडिया गठबंधन के कांग्रेस, आरजेडी, डीएमके, टीएमसी, एनसीपी और आप को घेरना चाहती है. बीजेपी परिवारवाद को जाति कनेक्शन से भी जोड़ने की तैयारी में है. पार्टी की उन नेताओं पर सीधा अटैक कर सकती है, जो जाति की राजनीति कर अपने परिवार को बढ़ाने में लगे हैं.

इसका संकेत अमित शाह के भाषण में भी मिला. शाह ने कहा कि परिवारवाद आधारित राजनीति करने वाली पार्टियां अभी भी जाति का सहारा ले रही है. जानकारों का मानना है कि बीजेपी का पूरा प्रचार तंत्र इसी फॉर्मूले के इर्द-गिर्द रहने वाला है.  

स्पीच से निकले 3 संदेश, क्या बीजेपी की यह रणनीति भी है?

1. मनमोहन वर्सेज मोदी सरकार के कामों की तुलना
बीजेपी के दोनों बड़े नेताओं ने अपने भाषण में यूपीए के 10 साल बनाम एनडीए के 10 साल पर खास फोकस किया. मोदी और शाह ने UPA Vs NDA शासन की तुलना के दौरान कई तथ्य और उद्धरण दिए. वित्त मंत्री सीतारमण ने तो यहां तक कह दिया कि पहले 'होगा' कहा जाता था, अब 'हो रहा है' कहा जाता है. 

शाह ने अपने भाषण में किसानों पर मुख्य रूप से फोकस किया और किसान कर्जमाफी योजना पर तंज कसा. शाह ने कहा कि 2004 से 2014 तक यूपीए ने 70 हजार करोड़ रुपये का किसानों का कर्ज माफ किया. हमारी सरकार में कर्ज लेने की नौबत नहीं आई. हमने किसानों के अकाउंट में पैसा भेजा.

प्रधानमंत्री ने भी एनडीए के सरकार के कामकाज का जिक्र किया. मोदी ने कहा- भारत में पिछले पांच सालों में 13.5 करोड़ लोगों ने गरीबी पर काबू पाया है. उन्होंने कहा- पूरी दुनिया में भारत का रसूख बना हुआ है. कुछ लोग इसे खत्म करने पर अमादा हैं. 

प्रधानमंत्री ने यूपीए के खत्म होने पर भी तंज कसा. उन्होंने कहा कि विपक्षी लोग खंडहर पर नया प्लास्टर लगा रहा है. अविश्वास प्रस्ताव के बाद यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या बीजेपी मोदी वर्सेज मनमोहन के कामों का तुलना करने की रणनीति अपना रही है? 

2012 के गुजरात चुनाव में बीजेपी की यह रणनीति सफल रही थी. उस वक्त नरेंद्र मोदी का एक स्पीच खूब वायरल हुआ था. उसमें हिसाब मांग रहे नेताओं से मोदी ने कहा था कि 15 साल अभी हमने सिर्फ कांग्रेस के खोदे हुए गड्ढे भरे हैं. अब आगे का विकास किया जाएगा.

जानकारों का कहना है कि बीजेपी 2024 में भी मोदी वर्सेज मनमोहन के कार्यकाल में किए गए कामों को मु्द्दा बना सकती है. बीजेपी वेलफेयर स्कीम्स और भ्रष्टाचार पर किए गए कार्रवाई को आगे कर चुनाव लड़ने की रणनीति अपना सकती है. 

अमित शाह ने अपने भाषण में वेलफेयर स्कीम्स पर खास फोकस किया. साथ ही यह भी कहा कि मोदी सरकार के 10 साल में युगांतकारी फैसले लिए गए हैं.

2. जातीय जनगणना के विरोध में तुष्टीकरण का दांव
अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान सत्ता पक्ष ने तुष्टीकरण के मुद्दे पर कांग्रेस समेत सेक्युलर दलों को जमकर घेरा. खुद प्रधानमंत्री ने कश्मीर से पूर्वोत्तर तक अपनाई गई कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति पर निशाना साधा. शांत पड़े तुष्टीकरण के मुद्दे को अचानक लाइमलाइट में आने से राजनीतिक जानकार चौंक गए हैं.

कहा जा रहा है कि बीजेपी तुष्टीकरण के दांव से जातीय जनगणना के मुद्दे को कुंद करने की रणनीति अपना सकती है. 90 के दशक में जब मंडल-कमंडल सियासी घमासान छिड़ा था, तो उस वक्त लाल कृष्ण आडवाणी तुष्टीकरण के मुद्दे को जोरशोर से उठाते थे. 

हाल ही में पटना हाईकोर्ट ने जातीय जनगणना को हरी झंडी दे दी है. इसके बाद कई राज्यों में इसे कराने की सुगबुगाहट तेज हो गई है. मोदी सरकार को डर है कि कहीं यह मुद्दा चुनाव के सेंटर में न आ जाए. माना जा रहा है कि जातीय जनगणना को कुंद करने के लिए तुष्टीकरण की बहस को हवा दी गई है. 

3. महंगाई-बेरोजगारी के जवाब में तीसरी बड़ी इकॉनोमी का दावा
महंगाई और बेरोजगारी के गुगली को बीजेपी तीसरी बड़ी इकॉनोमी से डिफेंड कर सकती है. संसद में इस पर प्रधानमंत्री ने विस्तार से बात भी किया. प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी सरकार के अगले टर्म में यानी तीसरे टर्म में भारत दुनिया की तीसरी टॉप अर्थव्यवस्था होगा. 

प्रधानमंत्री पहले भी सरकार आने पर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की बात कह चुके हैं. मोदी इसे खुद की गारंटी भी बता चुके हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि मोदी की गारंटी नाम से बीजेपी इसे भुना सकती है.

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