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नगालैंड, त्रिपुरा, मेघालय के चुनावी नतीजों के क्या होंगे राजनीतिक मायने

इन राज्यों के आने वाले चुनावी नतीजे न केवल राज्यों की राजनीति पर असर डालेंगे बल्कि राष्ट्रीय पार्टियों के भाग्य और राजनीतिक मजबूती पर भी असर डालेंगे.

नई दिल्लीः 3 मार्च को 3 राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के चुनावी नतीजे आएंगे. इस बार से पहले इन उत्तर पूर्वी राज्यों के चुनावी नतीजे राष्ट्रीय राजनीति में कभी भी इतने अहम नहीं रहे थे. हालांकि इस बार बीजेपी के लिए इन राज्यों में एंट्री करना या कांग्रेस के इन राज्यों से जाने का मतलब राजनीति में अलग ही मुकाम रखेगा. जानिए कैसे इस बार इन राज्यों में चुनावी गणित बीजेपी और कांग्रेस दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहने वाला है.

नगालैंड, त्रिपुरा, मेघालय शायद छोटे राज्य हैं लेकिन राजनीतिक रूप से इनका क्या महत्व है ये आप जान लीजिए. इन राज्यों के आने वाले चुनावी नतीजे न केवल राज्यों की राजनीति पर असर डालेंगे बल्कि राष्ट्रीय पार्टियों के भाग्य और राजनीतिक मजबूती पर भी असर डालेंगे. बीजेपी ने कॉन्ग्रेस से पहले ही तीन उत्तर पूर्वी राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर से सत्ता छीन ली है. आगे इन राज्यों में क्या होगा ये एनडीए और

त्रिपुरा अगर लेफ्ट पार्टी चुनाव हारती है तो इसके लिए सालों से चला आ रहा बेताज बादशाह का सिलसिला छूट जाएगा और इसके बाद सीपीएम के पास केरल को छोड़कर उत्तर भारत, दक्षिण भारत, मध्य भारत और पूर्वी भारत में कोई और राज्य नहीं रह जाएगा. इससे सीपीएम के रिकवर करने के लिए मौके बहुत कम हो जाएंगे. इससे पार्टी के खिलाफ गुस्सा जागेगा और इससे सहानुभूति रखने वालों की संख्या कम होगी.

वहीं बीजेपी के लिए इन चुनावों में जीत एक और मौका होगा जब वो अपने ऊपर से सिर्फ हिंदी राज्यों की पार्टी होने का टैग हटा सकेगी और राष्ट्रीय पार्टी होने के इसके खिताब को और मजबूत कर पाएगी. वहीं इसके कॉन्ग्रेस मुक्त भारत के नारे को पूरा करने और त्रिपुरा के मामले में सीपीएम मुक्त भारत के सपने को पूरा करने में मददगार होगी. वहीं अगर पार्टी त्रिपुरा में जीत जाती है तो यूपी के सीएम को चुनावी कैंपेंनिंग में नाथ समुदाय के वोट हासिल करने के इनके रणनीति भी सफल साबित होगी.

मेघालय मेघालय के लोगों ने अभी तक क्षेत्रीय पार्टियों के मुकाबले राष्ट्रीय पार्टियों को तरजीह दी है और इसी के चलते इतने लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी वहां के लोगों के लिए एकमात्र विकल्प थी. 1972 में हुए पहले विधानसभा चुनावों से लेकर अब तक कांग्रेस अभी तक सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरकर सामने आई है और कम से कम एक तिहाई सीटों पर कब्जा जमाने में सफल रही है. पर इस बार कांग्रेस मेघालय में सत्ता बरकरार रख पाने के लिए कड़ा संघर्ष करती दिखाई दे रही है.

जहां तक कांग्रेस का सवाल है ये पार्टी राज्य में सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है और ये आपसी झगड़ों से भी जूझ रही है. हालांकि इनके पास मुकुल संगमा के तौर पर मजबूत मुख्यमंत्री है. यहां सत्ता बरकरार रख पाना कांग्रेस के लिए संजीवनी बूटी के समान होगा. हालांकि अगर कांग्रेस इस राज्य में हार जाती है और बीजेपी इस इसाई-प्रधान राज्य में सत्ता में आती है तो कांग्रेस पूरे देश में सिर्फ 3 राज्यों में सत्ता में रह जाएगी. दिल्ली से लेकर देश के पूर्वी बॉर्डर के राज्यों में से केवल मिजोरम एक राज्य बचेगा जहां कांग्रेस सत्ता में होगी.

वहीं अगर बीजेपी यहां जीतती है तो वो दावा कर सकती है कि वो केवल हिंदुओं की पार्टी नहीं है. लेकिन अगर ये पार्टी यहां हार जाती है या इसका प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहता तो ये साफ हो जाएगा कि हिंदुत्व की लहर पर सवार होकर पार्टी पूरे देश में जीतने का दावा नहीं कर सकती है.

नगालैंड नगा पीपल्स फ्रंट की जीत इस पार्टी के लिए राज्य पर और 5 साल के कब्जे का रास्ता खोल देगी. गठबंधन में बीजेपी एक छोटी पार्टी है और एनडीडीपी गठबंधन की बड़ी पार्टी है. अगर एनडीए की सहयोगी पार्टी जीतती है तो ये साफ हो जाएगा एनपीएफ (नगा पीपल्स फ्रंट) के साथ न जाना बीजेपी का सही फैसला था.

यहां के चुनावी नतीजे दिखाएंगे कि क्या बीजेपी का देश की सत्ता के मामले में एकाधिकर बरकरार रह पाता है या इसके एकछत्र राज्य में कहीं-कहीं दरार आती दिख रही है. इन 3 राज्यों में बीजेपी की एंट्री का मतलब होगा कि बीजेपी की सत्ता वाले राज्यों की संख्या बढ़कर 22 तक पहुंच जाएगी.

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