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ओम प्रकाश राजभर और दारा चौहान रिटर्न..., जातीय गोलबंदी से सपा को कितना नुकसान?

चौहान की बीजेपी में वापसी पार्टी के लिए शुभ संकेत मानी जा रही है. वह नोनिया-चौहान समुदाय से हैं. ये समुदाय पूर्वी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और वाराणसी जिलों का अन्य पिछड़ा वर्ग समूह है.

समाजवादी पार्टी (सपा) छोड़कर बीजेपी में लौटने के एक महीने बाद दारा सिंह चौहान के घोसी से उपचुनाव लड़ने की घोषणा हो चुकी है. हालांकि चौहान को पहले से काफी हद तक टिकट मिलने की उम्मीद थी. साथ ही 2024 के चुनावों में उन्हें लोकसभा सीट मिलने की भी चर्चाएं थी. चौहान पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी छोड़ सपा में शामिल हुए थे. उस समय अपने इस्तीफे में चौहान ने कहा था कि वह योगी आदित्यनाथ सरकार की दलितों  (पिछड़े समुदायों ) के बारे में "अज्ञानता" से परेशान थे.

अब चौहान की बीजेपी में वापसी पार्टी के लिए शुभ संकेत मानी जा रही है. वह नोनिया-चौहान समुदाय से हैं. ये समुदाय पूर्वी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और वाराणसी जिलों का  अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समूह है.  पार्टी  चौहान की मदद से गैर-यादव ओबीसी वोटों को एकजुट करने की उम्मीद कर रही है.

मेघालय के वर्तमान राज्यपाल फागू चौहान यूपी में बीजेपी के लिए एक और प्रमुख ओबीसी चेहरा थे. उन्होंने जुलाई 2019 में बिहार के राज्यपाल के रूप में कार्यभार संभाला, और पार्टी के पास कोई मशहूर ओबीसी चेहरा नहीं था. बीजेपी ने हाल ही में ओबीसी नेता ओम प्रकाश राजभर (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के साथ गठबंधन किया है.

जानकारों का कहना है कि यह बहुत पहले से अंदाजा था कि चौहान सपा से असहज थे और पाला बदलने जा रहे थे. अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली पार्टी के सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि चौहान "पिछले कई महीनों से पार्टी में निष्क्रिय" थे. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य जैसे कई बीजेपी नेताओं ने फरवरी में चौहान के एक समारोह में भाग लिया था, जिससे सत्तारूढ़ पार्टी में उनकी वापसी की अटकलें तेज हो गई थीं.

चौहान ने बसपा-सपा-बीजेपी का बारी-बारी दामन थामा 

चौहान ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से की और 1996 में राज्यसभा सांसद बने. वह 2000 में सपा में शामिल हुए और उसी वर्ष पार्टी ने उन्हें दूसरे कार्यकाल के लिए उच्च सदन के लिए नामित किया.

उन्होंने 2017 में विधानसभा चुनाव मऊ जिले के मधुबन से चुनाव लड़ा और जीते. चौहान को तब योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में वन, पर्यावरण और पशुपालन के लिए कैबिनेट मंत्री नियुक्त किया गया था. 

2022 के विधानसभा चुनाव से पहले दारा  सिंह चौहान ने योगी कैबिनेट और पार्टी से इस्तीफा देकर समाजवादी पार्टी ज्वाइन किया था और घोसी सीट से चुनाव लड़ा था. चुनाव जीतने के ठीक एक साल बाद दारा सिंह चौहान ने पिछले दिनों अपने पद से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए थे.

वैसे उन्हें टिकट मिलना पहले से ही तय माना जा रहा था, और सोमवार को उनके नाम का ऐलान कर दिया गया. अब इस सीट पर सीधी टक्कर बीजेपी के दारा सिंह चौहान और सपा के सुधाकर सिंह में होगी,अगर चौहान घोसी उपचुनाव जीतते हैं तो उन्हें फिर से मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की संभावना है.

बीजेपी का गैर यादव वोट कितना मजबूत होगा

राजनीतिक जानकार ये मानते हैं कि चौहान पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश) के प्रभावशाली ओबीसी नेता हैं और उनके बीजेपी में शामिल होने से भगवा पार्टी का गैर-यादव ओबीसी वोट मजबूत होगा. दारा सिंह चौहान का संबंध नोनिया जाति से है, जो एक निचली ओबीसी समुदाय है. इस समूह की राज्य की आबादी में 2 से 3 प्रतिशत हिस्सेदारी है. चौहान को सात लोकसभा सीटों पर समर्थन हासिल है, चौहान मऊ जिले से विधायक हैं. 

वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला ने एबीपी को बताया कि घोषी सीट बीजेपी के लिए चुनौती भी है. यहां पर पिछड़ी जाति से लेकर स्वर्ण जाति भी है.  सुधाकर सिंह यहां से कई बार चुनाव लड़ चुके हैं, पिछली बार भी सिंह ने इसी सीट से टिकट मांगा था, लेकिन सिंह की जगह चौहान को टिकट मिला था. सुधाकर सिंह नाराज हुए थे लेकिन वो लगातार पार्टी के साथ लगे रहे. घोषी सीट पर मुस्लिमों की संख्या भी है, ये वोटर सुधाकर सिंह के साथ जा सकता है. 

2024 के लिए बीजेपी की योजनाओं के केंद्र में यूपी

शुक्ला ने बताया कि बीजेपी 2024 का चुनाव जीत कर हैट्रिक बनाना चाहती है. इसके लिए यूपी महत्वपूर्ण है. पार्टी ने महाराष्ट्र और बिहार में सहयोगियों का पलायन देखा है. बिहार और महाराष्ट्र में सीटों के नुकसान का अनुमान लगाने वाले सर्वेक्षणों के साथ, बीजेपी के लिए फिर से यूपी में जीत हासिल करना बहुत महत्वपूर्ण है.

बृजेश शुक्ला ने कहा कि में बीजेपी की सीटों की संख्या 2014 में 71 से घटकर 2019 में 62 हो गई. और इनमें से दो-तिहाई नुकसान (छह) पूर्वी यूपी से थे. पार्टी ने 2019 में पूर्वांचल में 50,000 से कम मतों के अंतर से सात सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि 2014 में उसे सिर्फ तीन सीटों पर जीत मिली थी. उदाहरण के लिए बीजेपी ने मछलीशहर सीट सिर्फ 181 वोटों से जीती, जबकि बलिया सिर्फ 15,519 वोटों से जीता. जहां एसबीएसपी 35,900 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही. अब इन सीटों पर चौहान बीजेपी अतिरिक्त फायदा जरूर पहुंचाएंगे. 

2022 के राज्य चुनावों में सपा गठबंधन ने पूर्वी यूपी (38 सीटें) में बीजेपी/एनडीए के मुकाबले बड़ी बढ़त हासिल की, एनडीए ने 24 सीटें खो दीं और बसपा/अन्य ने 14 सीटें खो दीं. राजभर की सुभासपा ने यहां अपनी छह सीटों पर जीत दर्ज की थी. जो अब बीजेपी में हैं. राजभर ने 2017 में बीजेपी के साथ गठबंधन करके इस क्षेत्र से चार सीटें जीती थीं. सपा गठबंधन ने आजमगढ़ मंडल की 21 में से 17 सीटें और वाराणसी मंडल की 28 में से 13 सीटें जीतीं. 

सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को कुल सीटों का एक तिहाई हिस्सा पूर्वांचल से मिला, जिसका श्रेय आंशिक रूप से राजभर और चौहान को जाता है. एसबीएसपी ने सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन में सबसे अच्छा स्ट्राइक रेट भी दर्ज किया. इसने सपा के 32 प्रतिशत और आरएलडी के 24 प्रतिशत के मुकाबले अपनी 35 प्रतिशत सीटों पर जीत हासिल की. गठबंधन को 12 प्रतिशत वोट शेयर मिला, जिसमें से 1.4 प्रतिशत का योगदान एसबीएसपी का था.

'सपा के लिए शुभ नहीं ' का संकेत

वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क ने एबीपी न्यूज को बताया कि चुनावी मौसम में नेताओं का दल बदलना कोई नई बात नहीं होती. दारा सिंह चौहान के पाला बदल की बात तो कत्तई नहीं चौकाती. इसलिए कि वे पहले भी बीजेपी में थे. वाराणसी में शालिनी यादव ने भी सपा का साथ छोड़ा.  शालिनी वाराणसी से 2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के खिलाफ सपा की उम्मीदवार रहीं हैं.

सपा के सहयोगी आर एल डी नेता जयंत चौधरी के भी सपा का छोड़ने की तैयारी है. बीजेपी यूपी में अपनी फतह के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है. जयंत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पकड़ रखते हैं. शालिनी पूर्वांचल में सपा का खेल बिगाड़ें या न बिगाड़ पाए, पर सपा की जातीय गोलबंदी यानी यादवों की एकमात्र पार्टी होने का दंभ तो उन्होंने तोड़ ही दिया है.

दारा सिंह की पूर्वांचल में तकरीबन डेढ़ दर्जन सीटों पर पकड़ है. बीजेपी सरकार में वे मंत्री भी थे. चुनाव पूर्व सपा नेताओं या उसके सहयोगियों का अखिलेश यादव से अलग होना निश्चित ही नुकसान का दायरा बढ़ाएगा. पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी यूपी तक पाला बदलने वाले नेता बीजेपी की ताकत में यकीनन इजाफा करेंगे. यह सपा के लिए शुभ नहीं.

जातीय ध्रुवीकरण तोड़ने की यह बीजेपी की कोशिश है. मायावती और अखिलेश की ताकत जातीय गोलबंदी ही मानी जाती रही है. लेकिन अब एक के बाद एक कई नेता जिस तरह से सपा से अलग हो रहे हैं, इसका प्रमुख कारण ये हो सकता है कि उन्हें लगता है कि सपा गठबंधन में कोई 'उचित स्थान' नहीं है.

दारा सिंह चौहान ने एक इंटरव्यू में खुद कहा , 'सपा छोड़ने के कई कारण हैं. ओबीसी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व पर भरोसा है. मोदी-शाह ओबीसी को सम्मान दे रहे हैं. 

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