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Bachchhan Paandey Review: अक्षय का भौकाल यहां है टाइट, मसाला एंटरटेनर में रंग जमाते हैं पंकज त्रिपाठी भी

अक्षय कुमार यहां एक बार फिर बॉक्स ऑफिस की कसौटी पर खरे उतरते नजर आते हैं। यह अलग बात है कि पंकज त्रिपाठी जब सामने आते हैं, तो उनका जादू कुछ फीका पड़ जाता है।

कीचड़ में कमल खिलता है. कोयले में हीरा मिलता है. बुरे आदमी में भला महापुरुष छुपा होता है. खलनायकों की किंवदंतियों में महानायकों की जीवनियों से ज्यादा रोमांच होता है. और साउथ की हिट फिल्म में हिंदी रीमेक की संभावनाएं छिपी होती हैं. ऐसे में अगर निर्देशक फरहाद सामजी की फिल्म क्रूर-कातिल बच्चन पांडे के अंदर छुपे भले-खिलंदड़ भोला पांडे को सामने लेकर आती है, तो इसमें आश्चर्य की बात क्या है. सामजी ने इस फिल्म का आइडिया 2014 में आई तमिल फिल्म जिगरथंडा से लिया है. उनकी तारीफ करनी होगी कि उन्होंने साउथ की फिल्म को बिल्कुल अपने अंदाज में बॉलीवुड के दर्शकों के लिए बनाया है.

बच्चन पांडे किसी कामयाब मसाला एंटरटेनर की तरह मनोरंजन करती है. यूपी के बागवा में बच्चन पांडे (अक्षय कुमार) किलर मशीन है. हंसिया, हथौड़ा, चाकू, पिस्तौल सब उसके खिलौने हैं. उसकी एक आंख पत्थर की है तो दिल भी ग्रेनाइट की चट्टान से कम कठोर नहीं है. वह चाहता है कि लोग उसे गुंडा नहीं, गॉडफादर समझें. उधर, मुंबई में मायरा (कृति सैनन) है. बॉलीवुड में सहायक निर्देशक. शॉर्ट फिल्में बनाने के बाद वह फीचर फिल्म बनाना चाहती है. मगर प्रोड्यूसर उसकी गरीबों के लिए लड़ने वाली सोशल वर्कर पर फिल्म बनाने को तैयार नहीं, वह कहता है कि किसी क्रिमिनल की रीयल स्टोरी लाओ. उस पर पैसा लगाऊंगा. किसी कातिल-अपराधी की कहानी की तलाश ही मायरा को बच्चन पांडे तक पहुंचाती है. मगर क्रूर-हत्यारे बच्चन पांडे से आमना-सामना करना आसान नहीं क्योंकि वह बात-बात में कत्ल कर देता है. ऐसे में मायरा और उसका साथी विशू (अरशद वारसी) चोरी छुपे बच्चन पांडे की जिंदगी के वर्तमान और अतीत में ताक-झांक करते हैं. परंतु पकड़े जाते हैं. अब बच्चन पांडे उनका क्या करेगा. क्या अपनी फिल्म बनवाने को राजी होगा. क्या सब कुछ वैसा होगा जैसा मायरा ने सोचा. फिल्म इसी रास्ते पर आगे बढ़ती है.
Bachchhan Paandey Review: अक्षय का भौकाल यहां है टाइट, मसाला एंटरटेनर में रंग जमाते हैं पंकज त्रिपाठी भी

बच्चन पांडे में दो मूल तत्व हैं. एक्शन और कॉमेडी. रोमांस जरा साइड में है और उसका यहां कोई खास मतलब भी नहीं है. फिल्म में अक्षय कुमार का गेट-अप जबर्दस्त है और दर्शकों को बांधे रखने का आधा काम तो वही कर देता है. फिल्म तेज रफ्तार से भागती है और ऐक्शन के दृश्य बार-बार बच्चन पांडे का भौकाल टाइट करने की कोशिश करते रहते हैं. बच्चन पांडे के भौकाल को सामजी रिपीट करते रहते हैं, जिससे किसी भी पल दर्शक उनके दायरे से बाहर नहीं जा पाए. इसका फायदा अक्षय को तो मिलता है लेकिन कृति सैनन और अरशद वारसी भी इस भौकाल के साये में छुप जाते हैं. हालांकि उन्हें पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता. अक्षय अगर यहां असर छोड़ते हैं तो इसका श्रेय उनकी टीम के कांडी (सहर्ष कुमार शुक्ला), पेंडुलम (अभिमन्यु सिंह) और बफरिंग चाचा (संजय मिश्रा) को भी जाता है. फिल्म में प्रतीक बब्बर और जैकलीन फर्नांडिस भी अपनी-अपनी भूमिकाओं को सही ढंग से निभा गए हैं.
Bachchhan Paandey Review: अक्षय का भौकाल यहां है टाइट, मसाला एंटरटेनर में रंग जमाते हैं पंकज त्रिपाठी भीवैसे इन सबके बीच एक ऐसा ऐक्टर आता है, जिसे पर्दे पर और दस मिनट मिलते तो वह अक्षय को पूरा ही खा सकता था. वह हैं, पंकज त्रिपाठी. वह थोड़ी देर के लिए कहानी में आते हैं और फिल्म को नई ऊर्जा से भर देते हैं. अचानक दर्शक गुदगुदाने लगते हैं और अक्षय कुमार हाशिये पर चले जाते हैं. जितनी देर पंकज स्क्रीन पर तक रहते हैं, अक्षय उनकी छाया में नजर आते हैं. पर्दे के स्टार के सामने एक शानदार एक्टर का भौकाल क्या होता है, वह फिल्म के इस हिस्से में आप देख सकते हैं. ऐसे में फिल्म में कृति सैनन का वह डायलॉग यहीं एकदम सच साबित हो जाता है, ‘ये सेकेंड हीरो ही होते हैं, जो मेन हीरो को खा जाते हैं.’
Bachchhan Paandey Review: अक्षय का भौकाल यहां है टाइट, मसाला एंटरटेनर में रंग जमाते हैं पंकज त्रिपाठी भी

फरहाद सामजी ने जिगरथंडा को अच्छे ढंग से बॉलीवुड के मिजाज में उतारा है. फिल्म में थोड़ी-सी कसावट और होती, तो इसकी लंबाई घट जाती, जिससे पैनापन बढ़ जाता. खास बात यह कि भले ही बच्चन पांडे अक्षय कुमार की फिल्म लगती है, लेकिन सभी कलाकारों ने इसे मिलकर आगे बढ़ाया है. यह अच्छी बात है. सामजी ने बाकी इक्का-दुक्का किरदारों को बैक स्टोरी देकर फिल्म में संतुलन बनाया है. कुछ संवाद भी यहां रोचक हैं. लोकेशन, कैमरा वर्क और ऐक्शन बढ़िया हैं. साजिद नाडियाडवाला ने बहुत पैसा खर्च करके यह फिल्म बनाई है और धन की भव्यता यहां नजर आती है. यहां अगर किसी बात की कमी खटकती है, तो वह है अच्छा गीत-संगीत. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक कहीं-कहीं ज्यादा शोर करता है. बच्चन पांडे थियेटर की फिल्म है. यह अक्षय कुमार के फैन्स के लिए है और जो दर्शक पारंपरिक मसाला सिनेमा पसंद करते हैं, उन्हें इसमें मजा आएगा.
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