Sawan Somwar 2025 Puja LIVE: सावन का पहला सोमवार रुद्राभिषेक से कटेंगे जीवन के संकट, बरसेगी भोलेनाथ की कृपा
Sawan 2025 Somvaar Puja Muhurat Live: 14 जुलाई 2025 को सावन का पहला सोमवार है. इस मौके पर श्रावण सोमवार व्रत से जुड़े नियम, पूजा विधि, महत्व, मंत्र और भोग के बारे में जानिए.

Background
Sawan 2025 Somvaar Live: 14 जुलाई को सावन का पहला सोमवार है. इस मौके पर भगवान शिव की पूजा आराधना करना शुभ होता है. सावन महीने में कुल 4 सोमवार है, ऐसे में सावन मास के प्रत्येक सोमवार को 'श्रावण सोमवार व्रत' के रूप में मनाया जाता है.
इस दिन श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा करने के साथ व्रत, उपवास, रुद्राभिषेक, जलाभिषेक और विशेष पूजन करते हैं.
श्रावण मास का महीना भगवान शिव को समर्पित
हिंदू पंचांग के मुताबिक श्रावण मास का महीना भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है. मान्यताओं के मुताबिक सावन महीने के प्रत्येक सोमवार को शिवजी की आराधना करने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती है.
इसके साथ ही जिन लोगों की शादी में देरी या संतान प्राप्ति की इच्छा होती है, इस दिन व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है.
सोमवार को शिवलिंग पर करें ये चीजें अर्पित
14 जुलाई को श्रावण मास का पहला सोमवार है. ऐसे में इस दिन शिव भक्तों को मंदिर जाकर शिवलिंग पर बेलपत्र, भांग, धतूरा, दूध, दही, शहद, गंगाजल और भस्म से अभिषेक करना चाहिए. इसके साथ ही ऊँ नम शिवाय मंत्र का उच्चारण करना भी शुभ माना जाता है.
सावन के प्रत्येक सोमवार को इन उपायों को करने से जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है. शिवपुराण के अनुसार सोमवार के दिन रुद्राभिषेक करने से शिव जी की कृपा सदैव बनी रहती है.
व्रत में रखें इन बातों का खास ध्यान
सावन मास में सोमवार का व्रत करने वालों को अनाज की जगह फलाहार करना चाहिए. शाम को भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के बाद व्रत का समापन करें. इस बार सावन का महीना शुभ संयोग के साथ आया है. क्योंकि इसमें 4 सोमवार पड़ रहे हैं, जो शिव जी को प्रसन्न करने के लिए काफी महत्वपूर्ण है.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
शिव चालीसा।। Shiv Chalisa
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान ॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥
अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥
मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥
मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥
धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥
नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही,
पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,
पूर्ण कीन कल्याण ॥
कब-कब है मंगला गौरी व्रत 2025 (Mangla Gauri Vrat 2025 Dates)
15 जुलाई- सावन का पहला मंगला गौरी व्रत
22 जुलाई- सावन का दूसरा मंगला गौरी व्रत
29 जुलाई – सावन का तीसरा मंगला गौरी व्रत
05 अगस्त -सावन का तीसरा मंगला गौरी व्रत
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