Buddha Amritwani: बुद्ध ने बताया बिना हल और बैल के 'अमृत खेती' का रहस्य, जानिए ये प्रेरक कहानी
Buddha Amritwani: खेती करने के लिए हल, बैल, बीज आदि कई चीजों की जरूरत होती है. लेकिन बुद्ध की इस प्रेरक कहानी में जानिए अमृत खेती के बारे में, जिसमें ना ही बीज की जरूरत पड़ती है, ना बैल और न ही हल की.

Gautam Buddha Amritwani in Hindi: बौद्ध धर्म के संस्थापन महात्मा बुद्ध की अमृतवाणी में जीवन से सारे कष्टों के निवारण का सूत्र छिपा है. उनके ज्ञान, उपदेश, सीख और विचारों से जीवन सुखी बनता है. बुद्ध ने बोधी वृक्ष के नीचे बैठकर सालों तपस्या की और इसके बाद उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई. इस तरह वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए.
गौतम बुद्ध के जीवन से कई प्रचलित कहानियां जुड़ी हैं. लेकिन इस कहानी में जानिए 'अमृत खेती' के बारे में. जी हां, ऐसी खेती जिसमें ना ही हल की जरूरत होती है, न बैल की और ना ही किसी बीज की. इस कहानी में गौतम बुद्ध ने अमृत खेती के रहस्य के बारे में बताया है.
अमृत की खेती की प्रेरणादायक कहानी
भगवान बुद्ध एक बार भिक्षाटन करते हुए एक किसान के द्वार पहुंचे. भिक्षुक को अपने द्वार पर आया देख किसान ने उपेक्षापूर्वक कहा, ‘श्रमण, मैं तो स्वयं हल जोतता हूं और इसके बाद अपना पेट भरता हूं. आपको भी हल जोतना चाहिए और बीज बोना चाहिए. इसके बाद मेहनत कर खाना खाना चाहिए.’
किसान की बात सुनकर बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा, हे अन्नदाता, मैं भी खेती ही करता हूं. बुद्ध की बात पर किसान को जिज्ञासा हुई और उसने कहा, तुम्हारे पास न ही मैं हल देख रहा हूं, ना ही बैल और ना ही खेती के लिए जमीन. तो तुम कैसे कह रहे हो कि तुम भी खेती करके ही खाना खाते हो. तुम अपनी खेती के संबंध में मुझे जरा समझाओ.
बुद्ध ने किसान से कहा, मेरे पास श्रद्धा भक्ति, आस्था, आदर, सम्मान और स्नेह भाव का बीज है. चित्त की शुद्धि, धर्म लाभ के लिए किया जाने वाला व्रत और नियम, इंद्रिय निग्रह तप, योगसाधना, समाधि, ब्रह्मचर्य, तपस्या रूपी वर्षा और जीव-मात्र रूपी जोत और हल है. मेरे पास पापभीरूता का दंड है. मेरे पास काले लोहे से सोना बनाने वाले सद्विचारों का पारस रूपी रस्सा है, स्मृति और जागरूकता रूपी हल की फाल और पेनी है.
बुद्ध बोले, मैं वचन और कर्म में संयत रहता हूं. अपनी इस खेती को अनावश्यक के नकारात्मक विचारों की घास से मुक्त रखता हूं और आनंद की फसल काट लेने तक पूरी तरह से प्रयत्नशील रहने रहता हूं. प्रमाद के ही कारण आसुरी वृत्ति वाले मनुष्य मृत्यु से पराजित होते हैं और अप्रमाद यानी संत प्रवृत्ति वाले ब्रह्मास्वरूप अमर हो जाते हैं. यही अप्रमाद तो मेरा बैल है, जो बाधाएं देखकर भी कभी पीछे मुंह नहीं मोड़ता. वही मुझे सीधा शांति-धाम तक ले जाता है. इस तरह से मैं भी तुम्हारी ही तरह किसान हूं और अमृत की खेती करता हूं.
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