अब टीबी की दवा रोजाना लेना होगा जरूरी, नया नियम हुआ लागू
देश में संशोधित नेशनल ट्यूबरकुलोसिस कंट्रोल प्रोग्राम (आरएनटीसीपी) के तहत ट्यूबरकुलोसिस के उपचार के लिए रोजाना दवा वाली व्यवस्था आज से सभी राज्यों में लागू हो गयी.
नयी दिल्लीः देश में संशोधित नेशनल ट्यूबरकुलोसिस कंट्रोल प्रोग्राम (आरएनटीसीपी) के तहत ट्यूबरकुलोसिस के उपचार के लिए रोजाना दवा वाली व्यवस्था आज से सभी राज्यों में लागू हो गयी.
कल बैठक के बाद लिया गया निर्णय- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने नयी उपचार नीति को लागू करने की तैयारियों को जानने के लिए कल सभी प्रदेशों के स्वास्थ्य सचिवों और मिशन निदेशकों के साथ बैठक की.
क्या कहना है स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों का- स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राज्यों ने दवा खरीद से संबंधित सभी साजो-सामान और प्रशिक्षणों को पूरा कर लिया है. उन्होंने कहा कि कुछ राज्य पहले ही इसे लागू कर चुके हैं. मंत्रालय के अधिकारियों ने नयी उपचार नीति पर हाल ही में प्रधानमंत्री को भी विस्तार से जानकारी दी थी.
सप्ताह में तीन बार नहीं बल्कि रोजाना लेनी होगी दवा- दैनिक दवा नियमों के क्रियान्वयन के साथ ट्यूबरकुलोसिस के उपचार में बड़ा बदलाव आएगा. अधिकारी ने बताया कि रोगी को सप्ताह में तीन बार के बजाय रोजाना आधार पर एक ही गोली में तीन या चार दवाएं दी जाएंगी.
अब बच्चों की दवा नहीं होगी कड़वी- टीबी से पीड़ित बच्चों को भी अब और कड़वी गोली नहीं लेनी होगी और इनकी जगह वे आसानी से घुलने वाली और फ्लेवर वाली दवा ले सकते हैं. आरएनटीसीपी के तहत 1997 से रोगियों को सप्ताह में तीन बार दवा देने की व्यवस्था चल रही थी.
रोजाना दवा लेने से होंगे ये फायदे- रोजाना दवा लेने की व्यवस्था अधिक प्रभावशाली हो सकती है जहां रोग की पुनरावृत्ति की आशंका कम से कम हो जाती है.
2010 में हुआ था दिशानिर्देशों में बदलाव- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2010 में अपने टीबी प्रबंधन दिशानिर्देशों में बदलाव किया था और आरएनटीसीपी के तहत दैनिक दवा लेने की व्यवस्था लागू करने की सिफारिश की थी.
क्या कहती है WHO की रिपोर्ट- विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कल जारी एक नयी वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल दुनियाभर में टीबी के आये 1.04 करोड़ नये मामलों में से 64 प्रतिशत मामलों वाले सात देशों में भारत का नाम सबसे ऊपर रहा. इसी तरह 2016 में दर्ज मल्टीड्रग-रजिस्टेंट टीबी (एमडीआर-टीबी) के 4,90,000 मामलों में से करीब आधे केवल भारत, चीन और रूस में दर्ज किये गये. रिपोर्ट में कहा गया कि टीबी के मामलों का सामने नहीं आना और उनकी पहचान नहीं होना चुनौती बना हुआ है.
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