एक्सप्लोरर

जवाहर लाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक, जानिए अपने सभी 15 प्रधानमंत्री को

1/15
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद  की सहानुभूति लहर ने 1984 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को 400 से ज्यादा सीटें दी. ये करिश्मा ऐसा था जो नेहरू और इंदिरा भी न कर सके. लेकिन उसी राजीव गांधी को 1989 के लोकसभा चुनाव ने 200 से भी कम सीटों में समेट दिया. राजीव गांधी की इस हार में अहम भूमिका रही उनकी सरकार में ही मंत्री रहे वी पी सिंह की. वी पी सिंह ने बोफोर्स घोटाले का मुद्दा कुछ यूं उछाला कि वो हर घर तक पहुंच गया. राजीव गांधी के कुछ औऱ करीबियों के साथ मिल वी पी सिंह बोफोर्स के सहारे सत्ता के करीब पहुंच गए और  2 दिंसबर 1989	को उन्होंने आठवें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली. हालांकि उनकी सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चली.
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद की सहानुभूति लहर ने 1984 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को 400 से ज्यादा सीटें दी. ये करिश्मा ऐसा था जो नेहरू और इंदिरा भी न कर सके. लेकिन उसी राजीव गांधी को 1989 के लोकसभा चुनाव ने 200 से भी कम सीटों में समेट दिया. राजीव गांधी की इस हार में अहम भूमिका रही उनकी सरकार में ही मंत्री रहे वी पी सिंह की. वी पी सिंह ने बोफोर्स घोटाले का मुद्दा कुछ यूं उछाला कि वो हर घर तक पहुंच गया. राजीव गांधी के कुछ औऱ करीबियों के साथ मिल वी पी सिंह बोफोर्स के सहारे सत्ता के करीब पहुंच गए और 2 दिंसबर 1989 को उन्होंने आठवें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली. हालांकि उनकी सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चली.
2/15
जवाहर लाल नेहरू के नाती और इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी की राजनीति में दिलचस्पी नहीं थी. उनकी पत्नी सोनिया गांधी भी यही चाहती थीं कि वो राजनीति से खुद को दूर रखें. इतने बड़े सियासी खानदान से होते हुए भी राजीव गांधी पायलट की नौकरी करते थे. भाई संजय गांधी की मौत के बाद हालात ऐसे बन गए कि मां की मदद के लिए उन्होंने राजनीति में कदम रखा. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस में कई दिग्गज और वरिष्ठ नेता तो थे, लेकिन राजीव गांधी को इंदिरा का उत्तराधिकारी घोषित किया गया और उन्हें उसी दिन प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई. वह भारत के सातवें प्रदानमंत्री बने.
जवाहर लाल नेहरू के नाती और इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी की राजनीति में दिलचस्पी नहीं थी. उनकी पत्नी सोनिया गांधी भी यही चाहती थीं कि वो राजनीति से खुद को दूर रखें. इतने बड़े सियासी खानदान से होते हुए भी राजीव गांधी पायलट की नौकरी करते थे. भाई संजय गांधी की मौत के बाद हालात ऐसे बन गए कि मां की मदद के लिए उन्होंने राजनीति में कदम रखा. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस में कई दिग्गज और वरिष्ठ नेता तो थे, लेकिन राजीव गांधी को इंदिरा का उत्तराधिकारी घोषित किया गया और उन्हें उसी दिन प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई. वह भारत के सातवें प्रदानमंत्री बने.
3/15
1991 में पीवी नरसिम्हा राव राजनीति से संन्यास लेने की योजना बना रहे थे लेकिन तभी ऐसी घटना हुई जिसने उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया. राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को ऐसा नेता चाहिए था जो पार्टी के साथ-साथ देश को भी संभाल सके. ऐसी स्थिति में सोनिया गांधी ने पीवी नरसिम्हा राव को चुना और 21 जून 1991 को वह भारत के 10वें प्रधानमंत्री बने.
1991 में पीवी नरसिम्हा राव राजनीति से संन्यास लेने की योजना बना रहे थे लेकिन तभी ऐसी घटना हुई जिसने उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया. राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को ऐसा नेता चाहिए था जो पार्टी के साथ-साथ देश को भी संभाल सके. ऐसी स्थिति में सोनिया गांधी ने पीवी नरसिम्हा राव को चुना और 21 जून 1991 को वह भारत के 10वें प्रधानमंत्री बने.
4/15
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने साल 2014 में अपने दम पर बहुमत हासिल कर सरकार बनाई. इसके बाद एक बार फिर साल 2019 के चुनावों में पिछली बार से अधिक (303) सीटें लाकर वो देश के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने साल 2014 में अपने दम पर बहुमत हासिल कर सरकार बनाई. इसके बाद एक बार फिर साल 2019 के चुनावों में पिछली बार से अधिक (303) सीटें लाकर वो देश के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं.
5/15
भारतीय राजनीति में मोरारजी देसाई का नाम उन नेताओं में शुमार है जो जिद्दी होने के साथ-साथ हठी भी थे. वो किसी की बात सुनते नहीं थे लेकिन अपने इरादों के पक्के थे. शुरू से ही उन्हें प्रधानमंत्री बनने की चाह थी और कहीं-न-कहीं उनका अपना रवैया ही उनके आड़े आता रहा. हर बार अपनी दावेदारी उन्होंने खुद पेश की. नेहरू के निधन के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे पहले अपना नाम आगे बढ़ाया. जय प्रकाश नारायण (जेपी) को ‘भ्रमित’ और इंदिरा गांधी को ‘लिटिल गर्ल’ बताते हुए वो लाल बहादुर शास्त्री के खिलाफ खड़े हुए, लेकिन पीएम पद नहीं मिला. शास्त्री के निधन के बाद भी स्थितियां ऐसी थीं कि उनका हारना तय था, लेकिन फिर भी वो पीछे नहीं हटे. उन्हें हमेशा लगता था कि उनकी काबिलियत के बावजूद उन्हें जानबूझकर पीएम नहीं बनाया जा रहा. 1967 में भी उन्हें मनाना बहुत मुश्किल रहा. इसके बाद 1975 में उन्होंने 'जनता पार्टी' ज्वाइन की और 1977 में आखिरकार देश के चौथे प्रधानमंत्री बने.
भारतीय राजनीति में मोरारजी देसाई का नाम उन नेताओं में शुमार है जो जिद्दी होने के साथ-साथ हठी भी थे. वो किसी की बात सुनते नहीं थे लेकिन अपने इरादों के पक्के थे. शुरू से ही उन्हें प्रधानमंत्री बनने की चाह थी और कहीं-न-कहीं उनका अपना रवैया ही उनके आड़े आता रहा. हर बार अपनी दावेदारी उन्होंने खुद पेश की. नेहरू के निधन के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे पहले अपना नाम आगे बढ़ाया. जय प्रकाश नारायण (जेपी) को ‘भ्रमित’ और इंदिरा गांधी को ‘लिटिल गर्ल’ बताते हुए वो लाल बहादुर शास्त्री के खिलाफ खड़े हुए, लेकिन पीएम पद नहीं मिला. शास्त्री के निधन के बाद भी स्थितियां ऐसी थीं कि उनका हारना तय था, लेकिन फिर भी वो पीछे नहीं हटे. उन्हें हमेशा लगता था कि उनकी काबिलियत के बावजूद उन्हें जानबूझकर पीएम नहीं बनाया जा रहा. 1967 में भी उन्हें मनाना बहुत मुश्किल रहा. इसके बाद 1975 में उन्होंने 'जनता पार्टी' ज्वाइन की और 1977 में आखिरकार देश के चौथे प्रधानमंत्री बने.
6/15
2004 के लोकसभा चुनावों में किसी को ये अंदाजा नहीं था कि एनडीए को जनता बेरहमी से सत्ता से खारिज कर देगी. ना 'इंडिया शाइनिंग' का नारा लोगों को लुभा पाया और ना ही अटल बिहारी वाजपेयी की साफ सुथरी छवि. कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इस बार गठंबधन की राजनीति की ठानी. साथ ही हर तरफ सुर्खियां यही रहीं कि अगर यूपीए को जीत मिली तो सोनिया गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगी. उस समय किसी को इस बात की भनक भी नहीं थी कि मनमोहन सिंह देश की बागडोर संभालने वाले हैं. 13 मई को नतीजे आए और 20 मई को मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. इसके बाद साल 2009 में भी यूपीए की सरकार बनी और मनमोहन सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने.
2004 के लोकसभा चुनावों में किसी को ये अंदाजा नहीं था कि एनडीए को जनता बेरहमी से सत्ता से खारिज कर देगी. ना 'इंडिया शाइनिंग' का नारा लोगों को लुभा पाया और ना ही अटल बिहारी वाजपेयी की साफ सुथरी छवि. कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इस बार गठंबधन की राजनीति की ठानी. साथ ही हर तरफ सुर्खियां यही रहीं कि अगर यूपीए को जीत मिली तो सोनिया गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगी. उस समय किसी को इस बात की भनक भी नहीं थी कि मनमोहन सिंह देश की बागडोर संभालने वाले हैं. 13 मई को नतीजे आए और 20 मई को मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. इसके बाद साल 2009 में भी यूपीए की सरकार बनी और मनमोहन सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने.
7/15
27 मई 1964 को पंडित जवाहरलाल नेहरू का निधन हो गया. इसके बाद सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा हुआ कि नेहरू के बाद कौन? उस वक्त के देश और दुनिया के सभी बड़े अखबरों की सुर्खियां थीं- Who after Nehru? अगले प्रधानमंत्री की खोज और ये जिम्मा उस वक्त कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के. कामराज को दिया गया. नेहरू के निधन के बाद प्रधानमंत्री पद की दौड़ में लाल बहादुर शास्त्री और मोरारजी देसाई का नाम सबसे आगे था. शास्त्री पर नेहरू खुलकर भरोसा करते थे. अपने आखिरी दिनों में नेहरू बहुत हद तक लाल बहादुर शास्त्री पर निर्भर रहने लगे थे. वहीं, मोरारजी देसाई का नेतृत्व भी दमदार था और प्रधानमंत्री पद की दौड़ में वो खुले तौर पर शामिल थे. लेकिन जब के. कामराज ने मोरारजी देसाई को लेकर पार्टी नेताओं से बात की तो ज्यादातर नेता इससे सहमत नहीं दिखे और लाल बहादुर शास्त्री ने 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने.
27 मई 1964 को पंडित जवाहरलाल नेहरू का निधन हो गया. इसके बाद सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा हुआ कि नेहरू के बाद कौन? उस वक्त के देश और दुनिया के सभी बड़े अखबरों की सुर्खियां थीं- Who after Nehru? अगले प्रधानमंत्री की खोज और ये जिम्मा उस वक्त कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के. कामराज को दिया गया. नेहरू के निधन के बाद प्रधानमंत्री पद की दौड़ में लाल बहादुर शास्त्री और मोरारजी देसाई का नाम सबसे आगे था. शास्त्री पर नेहरू खुलकर भरोसा करते थे. अपने आखिरी दिनों में नेहरू बहुत हद तक लाल बहादुर शास्त्री पर निर्भर रहने लगे थे. वहीं, मोरारजी देसाई का नेतृत्व भी दमदार था और प्रधानमंत्री पद की दौड़ में वो खुले तौर पर शामिल थे. लेकिन जब के. कामराज ने मोरारजी देसाई को लेकर पार्टी नेताओं से बात की तो ज्यादातर नेता इससे सहमत नहीं दिखे और लाल बहादुर शास्त्री ने 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने.
8/15
आजादी के बाद से अब तक भारत में 15 प्रधानमंत्री चुने जा चुके हैं. जवाहर लाल नेहरू से शुरू हुई ये गिनती अब नरेंद्र मोदी तक पहुंच चुकी है. इस बीच गुलजारीलाल नंदा, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, एच डी देवगौड़ा, इंद्रकुमार गुज़राल, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री रहे. आइए जानते हैं देश में अब तक बने प्रधानमंत्रियों के बारे में...  भारत 1857 से ही अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था. 90 साल की लंबी जद्दोजहद और कुर्बानी के बाद इसके हिस्से में खुशियां आईं. 1946 आते-आते देश की स्थिति बिल्कुल बदल चुकी थी. हर हिंदुस्तानी आजादी के एक नए जोश-व-जज्बे से सराबोर था. उधर ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सत्ता में आने के बाद उम्मीदों के नए चराग़ रौशन हो गए. इसी बीच ब्रिटेन ने भारत को आजाद करने का फैसला किया. 2 अप्रैल, 1946 को कैबिनेट मिशन दिल्ली पहुंचा. इसके साथ ही देश की आजादी और बंटवारे का झगड़ा अपने चरम पर पहुंच गया. इसी दौरान ये बहस भी तेज़ हो गई कि आखिर आजाद भारत का पहला प्रधानमंत्री कौन होगा? स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में सरदार वल्लभ भाई पटेल भी आगे-आगे थे लेकिन महात्मा गांधी की बदौलत ये पद जवाहरलाल नेहरू को मिला. वह 15 अगस्त 1947 में आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने.
आजादी के बाद से अब तक भारत में 15 प्रधानमंत्री चुने जा चुके हैं. जवाहर लाल नेहरू से शुरू हुई ये गिनती अब नरेंद्र मोदी तक पहुंच चुकी है. इस बीच गुलजारीलाल नंदा, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, एच डी देवगौड़ा, इंद्रकुमार गुज़राल, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री रहे. आइए जानते हैं देश में अब तक बने प्रधानमंत्रियों के बारे में... भारत 1857 से ही अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था. 90 साल की लंबी जद्दोजहद और कुर्बानी के बाद इसके हिस्से में खुशियां आईं. 1946 आते-आते देश की स्थिति बिल्कुल बदल चुकी थी. हर हिंदुस्तानी आजादी के एक नए जोश-व-जज्बे से सराबोर था. उधर ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सत्ता में आने के बाद उम्मीदों के नए चराग़ रौशन हो गए. इसी बीच ब्रिटेन ने भारत को आजाद करने का फैसला किया. 2 अप्रैल, 1946 को कैबिनेट मिशन दिल्ली पहुंचा. इसके साथ ही देश की आजादी और बंटवारे का झगड़ा अपने चरम पर पहुंच गया. इसी दौरान ये बहस भी तेज़ हो गई कि आखिर आजाद भारत का पहला प्रधानमंत्री कौन होगा? स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में सरदार वल्लभ भाई पटेल भी आगे-आगे थे लेकिन महात्मा गांधी की बदौलत ये पद जवाहरलाल नेहरू को मिला. वह 15 अगस्त 1947 में आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने.
9/15
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की इकलौती संतान इंदिरा गांधी के लिए पीएम बनने की राह ज्यादा मुश्किल नहीं रही. 11 जनवरी 1966 की रात ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया. इसके बाद यही सवाल उठा कि अब देश का अगला प्रधानमंत्री कौन? गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिया गया. और एक बार फिर प्रधानमंत्री बनाने की जिम्मेदारी कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज के कंधों पर आ गई. उस वक्त कांग्रेस को ऐसे प्रधानमंत्री की जरूरत थी जो पार्टी की बात सुने. एकबार फिर मोरारजी देसाई पीएम का रेस में थे लेकिन मोरारजी देसाई के पक्ष में गुजरात और यूपी के मुख्यमंत्रियों को छोड़कर कोई भी नहीं था. सबने सर्वसम्मति से इंदिरा गांधी को देश का तीसरा प्रधानमंत्री चुना. इंदिरा गांधी ने 24 जनवरी 1966 
को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. इसके बाद  1967 और 1971 का चुनाव जीत कर वह फिर प्रधानमंत्री बनीं. 1980 के लोकसभा चुनाव में भी इंदिरा गांधी ने जीत दर्ज की थी और देश की  छठी प्रधानमंत्री बनी थीं. 14 जनवरी 1980 को उन्होंने पीएम पद की शपथ ली.
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की इकलौती संतान इंदिरा गांधी के लिए पीएम बनने की राह ज्यादा मुश्किल नहीं रही. 11 जनवरी 1966 की रात ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया. इसके बाद यही सवाल उठा कि अब देश का अगला प्रधानमंत्री कौन? गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिया गया. और एक बार फिर प्रधानमंत्री बनाने की जिम्मेदारी कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज के कंधों पर आ गई. उस वक्त कांग्रेस को ऐसे प्रधानमंत्री की जरूरत थी जो पार्टी की बात सुने. एकबार फिर मोरारजी देसाई पीएम का रेस में थे लेकिन मोरारजी देसाई के पक्ष में गुजरात और यूपी के मुख्यमंत्रियों को छोड़कर कोई भी नहीं था. सबने सर्वसम्मति से इंदिरा गांधी को देश का तीसरा प्रधानमंत्री चुना. इंदिरा गांधी ने 24 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. इसके बाद 1967 और 1971 का चुनाव जीत कर वह फिर प्रधानमंत्री बनीं. 1980 के लोकसभा चुनाव में भी इंदिरा गांधी ने जीत दर्ज की थी और देश की छठी प्रधानमंत्री बनी थीं. 14 जनवरी 1980 को उन्होंने पीएम पद की शपथ ली.
10/15
1996 में राजनीतिक अस्थिरता का आलम ये था कि दो साल के भीतर ही तीन प्रधानमंत्री बने लेकिन फिर भी लोकसभा का कार्यकाल पूरा नहीं हो पाया. बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी और यूनाइटेड फ्रंट के एचडी देवगौड़ा के बाद तीसरे प्रधानमंत्री बने थे इंद्र कुमार गुजराल. उस समय प्रधानमंत्री पद की रेस में कई दिग्गज नेता थे लेकिन गठबंधन के ये बड़े नेता अपने ही लोगों की साजिश के शिकार थे. ऐसे में पाकिस्तान में पैदा हुए इंद्र कुमार गुजराल को प्रधानमंत्री पद की कुर्सी तोहफे में दी गई. दिलचस्प ये है कि जब प्रधानमंत्री पद के लिए उनके नाम का निर्णय हुआ तो उस वक्त वो सो रहे थे. उन्होंने 21 अप्रैल 1997 को पद की शपथ ली और 19 मार्च 1998 में सरकार गिर गई.
1996 में राजनीतिक अस्थिरता का आलम ये था कि दो साल के भीतर ही तीन प्रधानमंत्री बने लेकिन फिर भी लोकसभा का कार्यकाल पूरा नहीं हो पाया. बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी और यूनाइटेड फ्रंट के एचडी देवगौड़ा के बाद तीसरे प्रधानमंत्री बने थे इंद्र कुमार गुजराल. उस समय प्रधानमंत्री पद की रेस में कई दिग्गज नेता थे लेकिन गठबंधन के ये बड़े नेता अपने ही लोगों की साजिश के शिकार थे. ऐसे में पाकिस्तान में पैदा हुए इंद्र कुमार गुजराल को प्रधानमंत्री पद की कुर्सी तोहफे में दी गई. दिलचस्प ये है कि जब प्रधानमंत्री पद के लिए उनके नाम का निर्णय हुआ तो उस वक्त वो सो रहे थे. उन्होंने 21 अप्रैल 1997 को पद की शपथ ली और 19 मार्च 1998 में सरकार गिर गई.
11/15
भारतीय राजनीति के इतिहास में 1996 में ऐसा पहली बार हुआ जब दो साल में ही देश को तीन प्रधानमंत्री मिले. सबसे पहले बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बने. जब वो लोकसभा में बहुमत सिद्ध नहीं कर पाए तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन सरकार बनाने का दावा नहीं किया और इसके बाद यूनाइटेड फ्रंट ने जब सरकार बनाने की सोची तो फिर पीएम पद के लिए एचडी देवगौड़ा का नाम आया. उस समय कर्नाटक की राजनीति में देवगौड़ा का नाम काफी बड़ा था और उनकी छवि साफ-सुथरी थी. प्रधानमंत्री पद के दावेदार तो कई थे लेकिन देवगौड़ा के नाम पर सहमति बनई. ये भी काफी दिलचस्प है कि 1996 के चुनाव में सिर्फ 46 सीटें लाने वाली पार्टी जनता दल के नेता देवगौड़ा को पीएम पद मिला. उन्होंने 1 जून 1996 को पद की शपथ ली और 21 अप्रैल 1997 को सरकार गिर गई.
भारतीय राजनीति के इतिहास में 1996 में ऐसा पहली बार हुआ जब दो साल में ही देश को तीन प्रधानमंत्री मिले. सबसे पहले बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बने. जब वो लोकसभा में बहुमत सिद्ध नहीं कर पाए तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन सरकार बनाने का दावा नहीं किया और इसके बाद यूनाइटेड फ्रंट ने जब सरकार बनाने की सोची तो फिर पीएम पद के लिए एचडी देवगौड़ा का नाम आया. उस समय कर्नाटक की राजनीति में देवगौड़ा का नाम काफी बड़ा था और उनकी छवि साफ-सुथरी थी. प्रधानमंत्री पद के दावेदार तो कई थे लेकिन देवगौड़ा के नाम पर सहमति बनई. ये भी काफी दिलचस्प है कि 1996 के चुनाव में सिर्फ 46 सीटें लाने वाली पार्टी जनता दल के नेता देवगौड़ा को पीएम पद मिला. उन्होंने 1 जून 1996 को पद की शपथ ली और 21 अप्रैल 1997 को सरकार गिर गई.
12/15
गुलजारीलाल नन्दा (4 जुलाई, 1898 - 15 जनवरी, 1998) भारतीय राजनीतिज्ञ थे. उनका जन्म सियालकोट, पंजाब, पाकिस्तान में हुआ था. वे 1 9 64 में  जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद भारत के प्रधानमंत्री बने. उन्हें कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया. दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद 1966 में यह कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने. इनका कार्यकाल दोनों बार उसी समय तक सीमित रहा जब तक की कांग्रेस पार्टी ने अपने नए नेता का चयन नहीं कर लिया.
गुलजारीलाल नन्दा (4 जुलाई, 1898 - 15 जनवरी, 1998) भारतीय राजनीतिज्ञ थे. उनका जन्म सियालकोट, पंजाब, पाकिस्तान में हुआ था. वे 1 9 64 में जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद भारत के प्रधानमंत्री बने. उन्हें कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया. दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद 1966 में यह कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने. इनका कार्यकाल दोनों बार उसी समय तक सीमित रहा जब तक की कांग्रेस पार्टी ने अपने नए नेता का चयन नहीं कर लिया.
13/15
भारत के प्रधानमंत्री के कार्याकल की सूची में चौधरी चरण सिंह का नाम बहुत ही कम समय के लिए दर्ज है, लेकिन राजनीति और देश सेवा में उनका योगदान सुनहरे अक्षरों में अपनी जगह रखता है. वो भारत के इकलौते ऐसे नेता रहे हैं जिन्हें किसान अपना सबसे बड़ा नेता मानते हैं. इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में जनता गठबंधन की तरफ से चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे. दलित नेता जगजीवन राम की पीएम बनने की बढ़ती संभावना देखते हुए उन्होंने अपनी दावेदारी वापस ली और इस तरह मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बन गए. लेकिन इन तीनों दिग्गज नेताओं में मतभेद के चलते मोरारजी की सरकार जल्द ही गिर गई और फिर चरण सिंह कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने. इसके लिए उनकी जमकर किरकिरी भी हुई. एक महीने में ही उन्हें इस्तीफा भी देना पड़ा. भारतीय राजनीति में चौधरी चरण सिंह के नाम ऐसे प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड बना, जिन्हें पद पर रहते कभी संसद का सामना नहीं करना पड़ा.
भारत के प्रधानमंत्री के कार्याकल की सूची में चौधरी चरण सिंह का नाम बहुत ही कम समय के लिए दर्ज है, लेकिन राजनीति और देश सेवा में उनका योगदान सुनहरे अक्षरों में अपनी जगह रखता है. वो भारत के इकलौते ऐसे नेता रहे हैं जिन्हें किसान अपना सबसे बड़ा नेता मानते हैं. इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में जनता गठबंधन की तरफ से चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे. दलित नेता जगजीवन राम की पीएम बनने की बढ़ती संभावना देखते हुए उन्होंने अपनी दावेदारी वापस ली और इस तरह मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बन गए. लेकिन इन तीनों दिग्गज नेताओं में मतभेद के चलते मोरारजी की सरकार जल्द ही गिर गई और फिर चरण सिंह कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने. इसके लिए उनकी जमकर किरकिरी भी हुई. एक महीने में ही उन्हें इस्तीफा भी देना पड़ा. भारतीय राजनीति में चौधरी चरण सिंह के नाम ऐसे प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड बना, जिन्हें पद पर रहते कभी संसद का सामना नहीं करना पड़ा.
14/15
1989 में जब जनता दल की गठबंधन सरकार बनी तो उस समय प्रधानमंत्री पद की रेस में चंद्रशेखर भी शामिल थे. लेकिन वीपी सिंह का पलड़ा भारी पड़ा. वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अरुण नेहरू और देवीलाल जैसे दिग्गज नेताओं ने बकायदा साजिश रची जिसकी भनक तक चंद्रशेखर को न लगी. लेकिन वीपी सिंह की पारी बहुत लंबी नहीं चली और 11 महीने के बाद ही उनकी सरकार गिर गई और फिर चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने. दिलचस्प बात ये है कि भारतीय राजनीति के युवा तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर कभी मंत्री भी नहीं रहे और सीधे प्रधानमंत्री बने. उन्होंने 10 नवंबर 1990 को भारत के नौवें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लिया. हालांकि उनकी भी सरकार 21 जून 1991 में गिर गई.
1989 में जब जनता दल की गठबंधन सरकार बनी तो उस समय प्रधानमंत्री पद की रेस में चंद्रशेखर भी शामिल थे. लेकिन वीपी सिंह का पलड़ा भारी पड़ा. वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अरुण नेहरू और देवीलाल जैसे दिग्गज नेताओं ने बकायदा साजिश रची जिसकी भनक तक चंद्रशेखर को न लगी. लेकिन वीपी सिंह की पारी बहुत लंबी नहीं चली और 11 महीने के बाद ही उनकी सरकार गिर गई और फिर चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने. दिलचस्प बात ये है कि भारतीय राजनीति के युवा तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर कभी मंत्री भी नहीं रहे और सीधे प्रधानमंत्री बने. उन्होंने 10 नवंबर 1990 को भारत के नौवें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लिया. हालांकि उनकी भी सरकार 21 जून 1991 में गिर गई.
15/15
''जो कल थे वो आज नहीं हैं जो आज हैं वो कल नहीं होंगे. होने न होने का क्रम इसी तरह चलता रहेगा. हम हैं हम रहेंगे, ये भ्रम भी सदा पलता रहेगा.'' ये लाइन अटल बिहारी वाजपेयी की हैं जो पहली बार 13 दिनों के लिए प्रधानमंत्री रहे लेकिन लोगों के दिलों पर अपनी गहरी छाप छोड़ गए. 1996 में भारत की राजनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब कोई सरकार 13 दिनों में गिर गई. दूसरी बार वाजपेयी की सरकार 13 महीनों तक चली. 1998 में उनकी साफ-सुथरी छवि ने उन्हें फिर प्रधानमंत्री बनाया. इस बार उन्होंने अपने पूरे पांच साल पूरे किए. वाजपेयी पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी नेता थे जिन्होंने पूरे पांच साल प्रधानमंत्री पद संभाला.
''जो कल थे वो आज नहीं हैं जो आज हैं वो कल नहीं होंगे. होने न होने का क्रम इसी तरह चलता रहेगा. हम हैं हम रहेंगे, ये भ्रम भी सदा पलता रहेगा.'' ये लाइन अटल बिहारी वाजपेयी की हैं जो पहली बार 13 दिनों के लिए प्रधानमंत्री रहे लेकिन लोगों के दिलों पर अपनी गहरी छाप छोड़ गए. 1996 में भारत की राजनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब कोई सरकार 13 दिनों में गिर गई. दूसरी बार वाजपेयी की सरकार 13 महीनों तक चली. 1998 में उनकी साफ-सुथरी छवि ने उन्हें फिर प्रधानमंत्री बनाया. इस बार उन्होंने अपने पूरे पांच साल पूरे किए. वाजपेयी पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी नेता थे जिन्होंने पूरे पांच साल प्रधानमंत्री पद संभाला.
और देखें
Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

To 10 Best Cities: 2050 में कौन सा शहर होगा दुनिया में सबसे अच्‍छा, यहां हर भारतीय जाने को रहता है बेताब
2050 में कौन सा शहर होगा दुनिया में सबसे अच्‍छा, यहां हर भारतीय जाने को रहता है बेताब
Pok Protest :पाकिस्तान के हाथ से निकल जाएगा पीओके? डरे पीएम शहबाज ने जो बयान दिया आप भी पढ़िए
पाकिस्तान के हाथ से निकल जाएगा पीओके? डरे पीएम शहबाज ने जो बयान दिया आप भी पढ़िए
Tata Power: टाटा पावर को इस सरकारी स्कीम में दिख रहा 10000 करोड़ रुपये का बिजनेस  
टाटा पावर को इस सरकारी स्कीम में दिख रहा 10000 करोड़ रुपये का बिजनेस  
Monsoon Update: भारत में इस बार होगी ज्यादा बारिश और ठंड, जून से शुरू हो जाएगा ला लीना का असर
भारत में इस बार होगी ज्यादा बारिश और ठंड, जून से शुरू हो जाएगा ला लीना का असर
Advertisement
for smartphones
and tablets

वीडियोज

जानिए क्या थी द्रौपदी को दाव पर लगाने के असली वजह Dharma LiveSandeep Chaudhary: पूरा चुनाव मोदी पर ही फोकस है- प्रभु चावला  | BJP | Loksabha Election 2024...जब बागेश्वर बाबा बने 'लव गुरु'!Sandeep Chaudhary: पटना में पीएम मोदी का रोड बढ़ाया गया | PM Modi Roadshow in Patna | Breaking

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
To 10 Best Cities: 2050 में कौन सा शहर होगा दुनिया में सबसे अच्‍छा, यहां हर भारतीय जाने को रहता है बेताब
2050 में कौन सा शहर होगा दुनिया में सबसे अच्‍छा, यहां हर भारतीय जाने को रहता है बेताब
Pok Protest :पाकिस्तान के हाथ से निकल जाएगा पीओके? डरे पीएम शहबाज ने जो बयान दिया आप भी पढ़िए
पाकिस्तान के हाथ से निकल जाएगा पीओके? डरे पीएम शहबाज ने जो बयान दिया आप भी पढ़िए
Tata Power: टाटा पावर को इस सरकारी स्कीम में दिख रहा 10000 करोड़ रुपये का बिजनेस  
टाटा पावर को इस सरकारी स्कीम में दिख रहा 10000 करोड़ रुपये का बिजनेस  
Monsoon Update: भारत में इस बार होगी ज्यादा बारिश और ठंड, जून से शुरू हो जाएगा ला लीना का असर
भारत में इस बार होगी ज्यादा बारिश और ठंड, जून से शुरू हो जाएगा ला लीना का असर
1 सेकंड में 5 HD मूवी डाउनलोड! जापान ने पेश किया दुनिया का पहला 6G डिवाइस
1 सेकंड में 5 HD मूवी डाउनलोड! जापान ने पेश किया दुनिया का पहला 6G डिवाइस
Skoda Discount Offers: इस महीने स्कोडा की कारों पर मिल रही है भारी छूट, करें 2.5 लाख रुपये तक की बचत
स्कोडा की कारों पर मिल रही है भारी छूट, करें 2.5 लाख रुपये तक की बचत
Sunny Leone Birthday: कैसे हुई थी सनी लियोनी और डेनियल वेबर की पहली मुलाकात? जानें उनकी लव स्टोरी
कैसे हुई थी सनी लियोनी और डेनियल वेबर की पहली मुलाकात? जानें- लव स्टोरी
Lok Sabha Elections 2024: बंगाल में फिर हिंसा, वोटिंग से पहले TMC कार्यकर्ता पर बम से हमला, CPM पर लगा हत्या का आरोप
बंगाल में फिर हिंसा, वोटिंग से पहले TMC कार्यकर्ता पर बम से हमला, CPM पर लगा हत्या का आरोप
Embed widget