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Ig Nobel 2025: जब बदबूदार जूतों से भारत को मिला था नोबेल प्राइज, पढ़ें मजेदार किस्सा

Ig Nobel 2025: क्या आप यकीन करेंगे कि जूतों की बदबू से भी कोई नोबेल जीत सकता है? ये मजाक नहीं, बल्कि सच है. भारत के दो शोधकर्ताओं ने ऐसी खोज की, जिसने दुनिया को हंसाया भी और सोचने पर मजबूर भी किया.

Ig Nobel 2025: सोचिए, आपने नए जूते खरीदे, लेकिन दो हफ्ते बाद ही उनका स्वागत किसी महक से नहीं बल्कि ऐसी बदबू से होता है कि खुद जूते भी शर्मिंदा हो जाएं! अब अगर हम कहें कि इसी बदबू ने भारत को एक अंतरराष्ट्रीय सम्मान दिलाया, तो यकीनन आप मुस्कुराए बिना नहीं रहेंगे. लेकिन यह कोई मजाक नहीं है, बल्कि ये भारत के दो रिसर्चर्स की सच्ची कहानी है, जिन्होंने बदबूदार जूतों पर ऐसा प्रयोग किया कि उन्हें Ig Nobel Prize से नवाजा गया है.

यह कोई साधारण पुरस्कार नहीं, बल्कि विज्ञान की दुनिया का सबसे अनोखा और मजेदार सम्मान है, जो उन शोधों को दिया जाता है जिन पर पहले हंसी आती है, लेकिन बाद में दिमाग चल पड़ता है.

कहां से आया यह आइडिया?

कहानी शुरू होती है दिल्ली के पास स्थित शिव नादर यूनिवर्सिटी से, जहां डिजाइन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर विकास कुमार और उनके पूर्व छात्र सार्थक मित्तल साथ में एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे. सार्थक ने अपने हॉस्टल का किस्सा सुनाया कि कॉरिडोर में लाइन से रखे जूतों की बदबू से कमरे में सांस लेना मुश्किल था. यहीं से एक अजीब मगर दिलचस्प सवाल उठा कि क्या जूतों की दुर्गंध को वैज्ञानिक तरीके से खत्म किया जा सकता है?

रिसर्च हॉस्टल से लैब तक

दोनों ने विश्वविद्यालय के 149 छात्रों पर एक सर्वे किया तो नतीजे चौंकाने वाले थे. करीब 80% छात्रों ने कहा कि उन्हें जूतों की बदबू की वजह से शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है. लगभग सभी के घरों में शू-रैक था, मगर किसी ने नहीं सोचा था कि उसे टेक्नोलॉजी के जरिए बदला जा सकता है. ज्यादातर छात्र जूतों से बदबू आने पर घरेलू नुस्खे आजमाते थे, जैसे चाय की पत्तियां डालना, बेकिंग सोडा छिड़कना, या डियोडरेंट स्प्रे करना, लेकिन असर नाममात्र का ही होता था.

असली विलेन कौन?

रिसर्च में पता चला कि जूतों की बदबू का असली कारण है Kytococcus sedentarius नामक बैक्टीरिया. यह वही जीवाणु है जो पसीने और नमी वाले जूतों में तेजी से बढ़ता है और बदबू छोड़ता है. इसका हल खोजने के लिए दोनों वैज्ञानिकों ने एक ऐसा शू-रैक बनाया, जो न सिर्फ जूतों को व्यवस्थित रखे बल्कि UVC Light Technology से उन्हें सेनेटाइज भी करे. यानी जूतों से बदबू ही नहीं, बैक्टीरिया भी गायब करे.

बदबू ने दिलाया नोबेल 

यह रिसर्च 2022 में पूरी हुई, लेकिन 2025 में दुनिया ने इसे नोटिस किया जब Ig Nobel Prize Committee ने विकास और सार्थक को विजेता घोषित किया. दोनों को यह सम्मान Smelly Shoe Study के लिए मिला. 

क्या है Ig Nobel Prize?

Ig Nobel Prize को funny but useful science कहा जाता है. इसका नारा है, ‘पहले हंसाइए, फिर सोचने पर मजबूर कीजिए.’ यह हर साल Harvard University (USA) में दिया जाता है और इसका मकसद है उन वैज्ञानिक प्रयोगों को सम्मानित करना जो देखने में हास्यास्पद लगें, लेकिन असल में बेहद उपयोगी हों.

यह भी पढ़ें: क्या मानसिक बीमारी के नाम पर बच सकता है बच्चों को बंधक बनाने वाला अपराधी, जानें क्या कहता है कानून?

About the author निधि पाल

निधि पाल को पत्रकारिता में छह साल का तजुर्बा है. लखनऊ से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत भी नवाबों के शहर से की थी. लखनऊ में करीब एक साल तक लिखने की कला सीखने के बाद ये हैदराबाद के ईटीवी भारत संस्थान में पहुंचीं, जहां पर दो साल से ज्यादा वक्त तक काम करने के बाद नोएडा के अमर उजाला संस्थान में आ गईं. यहां पर मनोरंजन बीट पर खबरों की खिलाड़ी बनीं. खुद भी फिल्मों की शौकीन होने की वजह से ये अपने पाठकों को नई कहानियों से रूबरू कराती थीं.

अमर उजाला के साथ जुड़े होने के दौरान इनको एक्सचेंज फॉर मीडिया द्वारा 40 अंडर 40 अवॉर्ड भी मिल चुका है. अमर उजाला के बाद इन्होंने ज्वाइन किया न्यूज 24. न्यूज 24 में अपना दमखम दिखाने के बाद अब ये एबीपी न्यूज से जुड़ी हुई हैं. यहां पर वे जीके के सेक्शन में नित नई और हैरान करने वाली जानकारी देते हुए खबरें लिखती हैं. इनको न्यूज, मनोरंजन और जीके की खबरें लिखने का अनुभव है. न्यूज में डेली अपडेट रहने की वजह से ये जीके के लिए अगल एंगल्स की खोज करती हैं और अपने पाठकों को उससे रूबरू कराती हैं.

खबरों में रंग भरने के साथ-साथ निधि को किताबें पढ़ना, घूमना, पेंटिंग और अलग-अलग तरह का खाना बनाना बहुत पसंद है. जब ये कीबोर्ड पर उंगलियां नहीं चला रही होती हैं, तब ज्यादातर समय अपने शौक पूरे करने में ही बिताती हैं. निधि सोशल मीडिया पर भी अपडेट रहती हैं और हर दिन कुछ नया सीखने, जानने की कोशिश में लगी रहती हैं.

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