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एक ऐसी तवायफ जो बन गई थी मुगलों की तबाही का कारण

मुगल बादशाह की तबाही का कारण एक तवायफ बनी थी, जिसे नूर बाई के नाम से जाना जाता था.

भारत के इतिहास में मुगलों की कई कहानियां देखने को मिलती हैं. इन्हीं कहानी में एक किस्सा एक ऐसी तवायफ का भी मिलता है जिसे नूर बाई के नाम से जाना जाता है. नूर बाई जैसा नाम था वैसी ही सुंदरता भी. नूर बाई की अदाएं ऐसी थीं कि उनपर अमीर और ताकतवर लोग फिदा थे. मुगल बादशाह भी. शायद यही कारण मुगलों के अंत का भी कारण बन गया.

नूर बाई का दीवाना था ये बादशाह

नूर बाई दिल्ली की हवेली में रहती थी. जिसकी खूबसूरती के लोग कायल थे, उसकी चर्चाएं जब शुरू होती थीं तो थमने का नाम नहीं लेती थीं. यही चर्चाएं एक रोज मुगल बादशाह नसीरुद्दीन मुहम्मद शाह तक पहुंच गए. नसीरुद्दीन शराब और शबाब का खासा शौकीन था. साथ ही ये वही वक्त था जब मुगलों की ताकत, रुतबा और खजाना तेजी से घट रहा था. नादिर शाह बस एक मौके की तलाश में था, जिससे वो इसका पूरा फायदा उठा सके.

बादशाह की गुप्त कमरों तक थी नूर बाई की पहुंच?

नसीरुद्दीन मुहम्मद शाह उर्फ रंगीला और नूर बाई के बीच के रिश्ते दिन व दिन मजबूत होते जा रहे थे, आलम ये हो चला था कि बादशाह के अपने निजी कमरों तक भी नूरबाई की पहुंच थी. इसी बीच नूरबाई को एक दिन पता चला की बादशाह अपनी पगड़ी में हीरा रखते हैं, ये कोई आम हीरा नहीं था बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना जाने वाला कोहिनूर था. यही वो समय था जब नूर बाई की नीयत बदल गई.

नादिर शाह ने किया दिल्ली पर आक्रमण

नूर बाई ने ये बात दिल्ली पर आक्रमण करने की इच्छा रखने वाले ईरानी शासक नादिर शाह को बता दी. फिर नादिर शाह ने साल 1939 में दिल्ली पर आक्रमण कररंगीलासे सल्तनत छीन ली. इस दौरान उसने बादशाह से खजाना लूट लिया और इसके 56 दिन बाद वापस ईरान जाने का फैसला किया. हालांकि अब भी उसकी एक साजिश बाकी थी. दरअसल नादिर शाह ने फिर से दिल्ली की सल्तनत बादशाह को सौंपने का फैसला सुनाया.

ये बात सुनते ही सभी को खासा आश्चर्य हुआ, फिर नादिर शाह ने कहा कि उनके यहां पगड़ी बदलने की एक रस्म होती है. बादशाह के पास नादिर शाह के सामने न कहने का ऑप्शन ही नहीं था. कहा जाता है ये पूरी पटकथा नूर बाई के द्वारा लिखी गई थी. वो बादशाह को पंसद नहीं करती थी. इस तरह ये बेशकीमती हीरा नादिर शाह भारत से ईरान ले गया.

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