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अंतिम क्रिया के लिए मानव शरीर का दाह संस्कार ज्यादा बेहतर है या दफनाना, समझें क्या कहती है रिपोर्ट?

दुनिया में ये सवाल है कि अंत्येष्टि की कौन सी प्रकिया ज्यादा सही है. किसी शव को जलाना सही है या उसे दफना सही है. यूके में कास्ट ऑफ़ डाइंग नाम की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है. इस पर रिपोर्ट में आंकड़े साझा किए हैं. आइए जानते हैं.

इंसान को जन्म लेने के बाद पृथ्वी छोड़कर जाना होता है. जब इंसान इस पृथ्वी से जाता है तो उसका शरीर यहीं रह जाता है. भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के सभी देशों में अलग-अलग धर्म के हिसाब से मृत शरीर को नष्ट किया जाता है. आसान शब्दों में कहें तो हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार किया जाता है तो मुस्लिम और ईसाई धर्म में दफनाया जाता है. वहीं, यहूदी धर्म में एक अलग ही प्रक्रिया के तहत यह कार्य किया जाता है. सभी धर्मों में उनकी मान्यताओं के हिसाब से अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की जाती है. अब सवाल यह है कि अंतिम संस्कार की कौन सी प्रकिया ज्यादा सही है? किसी शव को जलाना सही है या उसे दफनाना? यूके में कास्ट ऑफ़ डाइंग नाम की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है. इस पर रिपोर्ट में आंकड़े साझा किए गए हैं. आइए जानते हैं.

तीन पैमानों पर हुई रिसर्च 

यूके में कॉस्ट आफ डाइंग रिपोर्ट तीन पहलुओं पर रिसर्च करके प्रकाशित की गई. यूके में अंतिम क्रिया के 57 फीसदी मामलों में रीति-रिवाज के साथ दाह संस्कार किया गया. 25 फीसदी मामलों में दफनाकर अंत्येष्टि की गई, जबकि 18 फीसदी डायरेक्ट क्रिमिनेशन किया गया. डायरेक्ट क्रिमिनेशन में किसी भी तरह के रीति-रिवाज का पालन या सेरेमनी का आयोजन नहीं किया जाता है. इनमें पर्यावरण, परिवार और पैसे आदि के पैमाने पर स्टडी की गई. 

ऐसे होता है दाह संस्कार

अगर पारंपरिक दाह संस्कार की प्रक्रिया की बात की जाए तो उसमें किसी की मृत्यु के बाद सामान्य तौर पर काफी लोग मिलकर शव यात्रा के साथ जाते हैं. भारत में शव को अंतिम संस्कार स्थल यानी श्मशान घाट लेकर जाते हैं और इसके बाद अंतिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू होती है. यहां परिवार के बेटे या भाई या किसी करीबी शख्स द्वारा देह को मुखाग्नि दी जाती है. जब देह जल जाती है तो उसके बाद अस्थियों और राख को कलश में एकत्रित कर अपनी मनपसंद जगह पर जाकर प्रवाहित कर सकते हैं या उसे कहीं रख सकते हैं. इसके अलावा समाधि भी बना सकते हैं. इस प्रक्रिया में पर्यावरण भी दूषित नहीं होता. आंकड़े बताते हैं कि दाह संस्कार की प्रक्रिया बेहद कम खर्चीली होती है.

दफनाने के लिए होती है यह प्रक्रिया 

दफनाने की प्रक्रिया की बात की जाए तो इसमें भी शव यात्रा को कब्रिस्तान तक ले जाया जाता है. इसमें परिवार के लोग दोस्त आदि लोग शामिल होते हैं. कब्रिस्तान में शव पहुंच जाता है तो संबंधित धर्म के क्रिया कर्म कराने वाले व्यक्ति अंत्येष्टि की प्रक्रिया पूरी कराते हैं. इसके बाद शव को दफनाया जाता है. यह प्रक्रिया दुनिया में काफी प्रचलित है. शव दफनाने के बाद वहां कब्र बनाई जाती है, जिससे उनके प्रियजन उस स्थान पर कभी भी आ-जा सकते हैं. यह प्रक्रिया दाह संस्कार के मुकाबले महंगी होती है.

डायरेक्ट क्रिमिनेशन का चलन भी बढ़ा

तीसरी प्रक्रिया डायरेक्ट क्रिमिनेशन की होती है. दुनिया के कई देशों में यह प्रक्रिया अब अपनाई जा रही है. इसमें जरूरी नहीं होता कि शव के साथ परिजन जाएं या परिवार का कोई सदस्य अंतिम क्रिया तक साथ रहे. कोई भी व्यक्ति जाकर इस प्रक्रिया को पूरी करवा सकता है. इसमें मशीनों द्वारा देह को जलाया जाता है. इसके बाद राख सौंप दी जाती है. यह अंतिम संस्कार के लिए सबसे किफायती विकल्प होता है.

धार्मिक मान्यताएं-नियम और पर्यावरण 

भारत या विदेश में किसी की भी अंत्येष्टि करनी हो तो सभी अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से यह कार्य करते हैं. बहुत कम देखने को मिलता है कि इस तरह के मामलों में लोग पर्यावरण या पैसों का ख्याल करते हैं. अगर कोई हिंदू धर्म से ताल्लुक रखता है तो वह अंतिम संस्कार की प्रक्रिया का पालन करता है. अगर कोई ईसाई या मुस्लिम धर्म से है तो वह दफनाने की प्रक्रिया को तवज्जो देते हैं. रिपोर्ट भले ही कुछ भी कहती हो, लेकिन कुछ कार्य ऐसे होते हैं, जहां तथ्य नहीं काम आते. सदियों से चली आ रहीं परंपराएं यूं ही कोई नहीं छोड़ देता. रिपोर्ट के माध्यम से सिर्फ यह बताया गया है कि दुनिया में अंत्येष्टि किन-किन तरीकों से की जा रही हैं. इससे इंसानी भावनाएं कितनी जुड़ी हुई होती हैं और उन पर कितना असर होता है.

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About the author नीलेश ओझा

नीलेश ओझा पिछले पांच साल से डिजिटल पत्रकारिता में सक्रिय हैं. उनकी लेखन शैली में तथ्यों की सटीकता और इंसानी नजरिए की गहराई दोनों साथ-साथ चलती हैं.पत्रकारिता उनके लिए महज़ खबरें इकट्ठा करने या तेजी से लिखने का काम नहीं है. वह मानते हैं कि हर स्टोरी के पीछे एक सोच होनी चाहिए.  

कुछ ऐसा जो पाठक को सिर्फ जानकारी न दे बल्कि सोचने के लिए भी मजबूर करे. यही वजह है कि उनकी स्टोरीज़ में भाषा साफ़ होती है.लिखने-पढ़ने का शौक बचपन से रहा है. स्कूल की नोटबुक से शुरू हुआ यह सफर धीरे-धीरे पेशेवर लेखन और पत्रकारिता तक पहुंचा. आज भी उनके लिए लेखन सिर्फ पेशा नहीं है यह खुद को समझने और दुनिया से संवाद करने का ज़रिया है.

पत्रकारिता के अलावा वह साहित्य और समकालीन शायरी से भी गहराई से जुड़े हुए हैं. कभी भीड़ में तो कभी अकेले में ख्यालों को शायरी की शक्ल देते रहते हैं. उनका मानना है कि पत्रकारिता का काम सिर्फ घटनाएं गिनाना नहीं है. बल्कि पाठक को उस तस्वीर के उन हिस्सों तक ले जाना है. जो अक्सर नजरों से छूट जाते हैं.

उन्होंने स्पोर्ट्सविकी, क्रिकेट एडिक्टर, इनशॉर्ट्स और जी हिंदुस्तान जैसे प्रमुख प्लेटफॉर्म्स के साथ काम किया है.

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