Aravalli Hills Controversy: यह है अरावली पर्वतमाला की सबसे बड़ी चोटी, जानें क्यों कहते हैं इसे संतों का शिखर
Aravalli Hills Controversy: सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के मुताबिक अब सिर्फ 100 मीटर से ऊपर की पहाड़ियों को ही अरावली माना जाएगा. आइए जानते हैं कि अरावली पर्वतमाला की सबसे बड़ी चोटी कौन सी है.

Aravalli Hills Controversy: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने अरावली पहाड़ियों की इकोलॉजिकल स्थिति पर बहस को शुरू कर दिया है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों को अपने आप जंगल के रूप में क्लासिफाई नहीं किया जा सकता. अगर आसान शब्दों में कहें तो अब 100 मीटर से ज्यादा ऊंची चोटियों को ही अरावली माना जाएगा. जैसे ही अरावली पहाड़ियों की तरफ लोगों का ध्यान वापस से खिंचा एक सवाल लोगों के बीच में उठने लगा कि अरावली पर्वतमाला की सबसे बड़ी चोटी कौन सी है. आइए जानते हैं इस बारे में पूरी जानकारी.
अरावली का सबसे ऊंचा स्थान
समुद्र तल से 1722 मीटर की ऊंचाई पर बसा गुरु शिखर राजस्थान के सिरोही जिले में माउंट आबू के पास है. यह अरावली पर्वत श्रृंखला का सबसे ऊंचा स्थान है, जो दुनिया की सबसे पुरानी वलित पर्वत प्रणालियों में से एक है.
क्यों कहा जाता है इसे संतों की चोटी
यह उपाधि कर्नल जेम्स टॉड से जुड़ी हुई है. इन्होंने सबसे पहले इस शिखर को संतों की चोटी कहा था. दरअसल अपने सफर के दौरान टॉड ने देखा कि संत और तपस्वी अक्सर शिखर के आसपास के एकांत वातावरण में रहते और ध्यान करते थे. यहां की शांति, ऊंचाई और स्वच्छ हवा इसे आध्यात्मिक साधना के लिए एकदम सही जगह बनाती थी.
इसकी एक और वजह यह रही है कि यहां इस बात का विश्वास है कि गुरु दत्तात्रेय, जिन्हें गुरुओं के गुरु के रूप में भी पूजा जाता है यहां पर तपस्या करते थे. शिखर पर एक गुफा मंदिर में उनके पद चिन्ह माने जाने वाले निशान भी हैं.
आधुनिक विज्ञान में भी बड़ी भूमिका
शिखर पर गुरु दत्तात्रेय का एक प्राचीन गुफा मंदिर है. इसी के साथ पास में उनकी माता अनुसूपा का भी एक मंदिर है. लेकिन इन सबके अलावा गुरु शिखर पर फिजिकल रिसर्च लैबोरेट्री द्वारा चलाई जाने वाली माउंट आबू ऑब्जर्वेटरी में 1.2 मीटर का इंफ्रारेड टेलीस्कोप भी है. यह एक ऊंची जगह से खगोलीय रिसर्च में बड़ा योगदान देता है.
लगभग दो अरब साल पुरानी माने जाने वाली यह अरावली रेंज दिल्ली से हरियाणा और राजस्थान होते हुए गुजरात तक 670 से 800 किलोमीटर तक फैली हुई है. अपनी उम्र के अलावा यह पहाड़ियां पर्यावरण में भी एक जरूरी भूमिका निभाती है.
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Source: IOCL
























