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Aashram 2 Review: आपको मिलेंगे पिछले सीजन के सवालों के जवाब, लेकिन...

Aashram 2 Review: वेब सीरीज आश्रम के दूसरे सीजन में निर्देशक ने तीसरे का भी दरवाजा खोल दिया है. इससे सब कुछ जानने को बेसब्र दर्शकों को थोड़ी निराशा होगी. पिछली बार बाबा निराला की कामवासना केंद्र में थी, इस बार वह राजनीति का चतुर खिलाड़ी बना है.

Aashram 2 Review: निर्देशक प्रकाश झा की वेब सीरीज आश्रम 2 का मूल स्वर हैः बाबा लाएंगे क्रांति. गरीबों के मसीहा एक रूप-महास्वरूप बाबा निराला सिंह (बॉबी देओल) इस बार काली-कारगुजारियों में पहले सीजन से आगे है. उसके आगे बड़े-बड़े राजनेता पानी भरते हैं. उसके साम्राज्य में भक्तों पर अत्याचार खूब हैं. भक्तों की कोई सुनवाई नहीं है क्योंकि पुलिस या तो बाबा की शरण में पड़ी सत्ता के कब्जे में है या अपने स्वार्थ के आगे घुटने टेके हुए है.

आश्रम की कहानी उसी अंधेरी दुनिया से शुरू होती है, जहां पिछले सीजन में खत्म हुई थी. अपनी वासना के तीर से साध्वियों का शिकार करने और ड्रग्स वाले लड्डुओं से युवाओं को बीमार भक्त बनाने में बाबा रहम नहीं करता. हालांकि इस बार कथा-केंद्र में वे राजनेता हैं, जो उसके फंदे में फंस कर छटपटाते हैं.

प्रकाश झा बताते हैं कि राजनीति के कर्णधार और धर्म के ठेकेदार कैसे एक-दूसरे पर निर्भर हैं. राजनीति धर्म से अपने उद्धार की उम्मीद करती है और इसके ठेकेदार बाबा की फाइलें भी तैयार करती है. दोनों एक-दूसरे को दांव देने में लगे रहते हैं. मगर अपने पत्ते अंतिम क्षणों तक नहीं खोलते. प्रकाश झा ने आश्रम 2 की कहानी में राजनीतिक पक्ष को उभारते हुए यह भी साफ कर दिया है कि बाबा की बात अभी खत्म नहीं हुई. सीजन तीन का इंतजार कीजिए क्योंकि अभी यह पता नहीं कि बाबा निराला सिंह का छोटे-मोटे अपराधी मोंटी के रूप में क्या अतीत है. उसका आश्रम किसी ईश्वरनाथ की जमीन पर बना है, जिसे पुलिस अधिकारी उजागर सिंह (दर्शन सिंह) ने ढूंढ निकाला है.

भू-माफिया से मुख्यमंत्री सुंदरलाल की साठ-गांठ और कई हत्याओं के राज अभी अनसुलझे हैं. उधर पम्मी पहलवान (अदिति पोहनकर) को बाबा के राज पता चल गए हैं और वह बदला लेना चाहती है. पम्मी की भाभी बबीता (त्रिधा चौधरी) के किरदार में उतार-चढ़ाव की गुंजायश बाकी है. इन सब बातों को तभी जाना जा सकेगा जब सीजन थ्री आएगा.

आश्रम 2 की कहानी का मुख्य स्वर यही है कि राज्य की सत्ता की चाबी बाबा निराला के पास है. वह चाहे तो सुंदर लाल को फिर मुख्यमंत्री बनवा सकता है या उसके युवा प्रतिद्वंद्वी हुकुमचंद को.बाबा की शातिर सोच के नागपाश में बंधे ये दोनों बार-बार उसके पास माथा टेकने जाते हैं. बाबा निराला के भक्तों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.

पॉप सिंगर टीका सिंह के कंसर्ट में युवाओं की भीड़ बढ़ रही है और उन्हें मिल रहे सत्संग के नशीले लड्डू वोट में बदले जा सकते हैं. इस सीजन में बबीता का रोल बढ़ा है मगर उसके किरदार की कहानी को विस्तार नहीं मिला. यही बात पम्मी पहलवान के बारे में कही जा सकती है. बाबा से इनके मोहभंग की घटनाओं में कोई विशेष ड्रामा नहीं है. इसलिए अदिति पोहनकर और त्रिधा चौधरी पिछले सीजन की तरह प्रभाव नहीं छोड़तीं.

बॉबी देओल इस बार घटनाओं को पिछली बार से अधिक नियंत्रित करते हैं और बाबा निराला के रूप में अपने दोस्त, नंबर टू भोपा (चंदन सान्याल) से साफ कहते हैं कि वह उसे पहले की तरह सही-गलत समझाने की कोशिश न करे. बाबा निराला पम्मी के साथ किए रेप को जायज ठहराते हुए उसे समझाता हैः हम सब सत्य और माया में फर्क करने में असमर्थ होते हैं और क्षण भर के शरीर के मोह के लिए आत्मा के आनंद को भूल जाते हैं.

बॉबी के किरदार में राजनीतिक काइयांपन झलकता है और वह आखिर तक नहीं पता लगने देता कि किसे अपने भक्तों से वोट दिलवाएगा. सुंदरलाल को या फिर हुकुम सिंह को.चंदन ने पिछली बार की तरह अपनी भूमिका को सधे अंदाज में निभाया है.

इस साल अगस्त में एमएक्स प्लेयर पर आई वेब सीरीज आश्रम के दूसरे सीजन का लोगों को इंतजार था. इंतजार खत्म हो चुका है और यहां कहानी पहले जैसी रफ्तार से चली है. यह अलग बात है कि इस बार ड्रामा में कोई ऐसा ट्विस्ट नहीं है जो चौंकाए. न ही किरदारों की कोई नई चमक सामने आती है. ऐसा नया तथ्य भी कहानी से नहीं जुड़ता जो नई ताजगी पैदा करे. इसके बावजूद यह सीजन उन लोगों की जिज्ञासा जरूर शांत करेगा जो पहले सीजन में पैदा हुए सवालों के जवाब ढूंढ रहे थे. प्रकाश झा ने सरलता से अपनी बातें कही हैं और डेढ़े-मेढ़े रास्ते नहीं अपनाए हैं.

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