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बीजेपी-कांग्रेस को कौन देता है पैसा? अब सब चलेगा पता

Supreme Court Strikes Electoral Bond: चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक तरीका है. इस व्यवस्था को मोदी सरकार में 2 जनवरी, 2018 को लागू किया गया था.

Supreme Court Strikes Electoral Bond: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए तत्काल प्रभाव से उसपर रोक लगा दी है, लेकिन सवाल है कि इस फैसले का आम आदमी पर असर क्या होगा. क्या अब आम आदमी जान पाएगा कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी को चंदा कौन देता है और कितना देता है. क्या जनता को इस बात का पता चल पाएगा कि वो जिस पार्टी को वोट देते हैं, उसे पैसे कौन देता है और उस पार्टी के पास कितना पैसा है. आखिर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के इस फैसले का चुनावी साल में क्या होगा असर, 

चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक तरीका है. इस व्यवस्था को मोदी सरकार में 2 जनवरी, 2018 को लागू किया गया था. तब सरकार ने इसके पक्ष में दलील दी थी कि इससे राजनीति फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और सियासी दलों को चंदे के तौर पर ब्लैक नहीं बल्कि वॉइट मनी मिलेगी. इस स्कीम में राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए कोई भी शख्स, कॉरपोरेट या फिर कोई संस्था बॉन्ड खरीद सकती है. राजनीतिक दल उस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर वो पैसा पार्टी के खाते में जमा कर सकते हैं. अभी तक देश में सिर्फ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ही चुनावी बॉन्ड जारी कर सकता है. इसके लिए देश भर में स्टेट बैंक के 29 ब्रांच इसके लिए अधिकृत हैं, जिनमें नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु के ब्रान्च हैं. स्टेट बैंक की ये शाखाएं साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में बॉन्ड डारी करती हैं और जिसे खरीदना होता है, वो बैंक जाकर या फिर ऑनलाइन उसे खरीद सकता है.

चुनावी बॉन्ड से चंदा देने का फायदा क्या है?

स्टेट बैंक जो चुनावी बॉन्ड जारी करता है, वो एक हजार रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक के होते हैं. इनमें एक हजार का बॉन्ड, 10 हजार का बॉन्ड, एक लाख का बॉन्ड, 10 लाख का बॉन्ड और एक करोड़ का बॉन्ड होता है. जिसे भी राजनीतिक दलों को चंदा देना होता है, वो बैंक से बॉन्ड खरीदकर चंदा दे सकता है. हालांकि खरीदार कैश में बॉन्ड नहीं खरीद सकता है और उसे बैंक में केवाईसी दर्ज करवानी होती है. इस स्कीम के जरिए चंदा देने वाले की पहचान उजागर नहीं होती है. यानी कि किसी को पता नहीं चलता है कि किसने किस पार्टी को कितना पैसा दिया है. बाकी जिसने भी चंदे के तौर पर बॉन्ड के जरिए पैसा दिया होता है, उसे टैक्स में छूट मिलती है.

कौन सी पार्टी को बॉन्ड से मिलता है चंदा
जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल चुनावी बॉण्ड स्वीकार कर सकते हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा लेने की शर्त ये है कि उस पार्टी को पिछले लोकसभा चुनाव में कम से कम 1 फीसदी वोट हासिल हुए हों. बॉन्ड खरीदने के 15 दिन के अंदर पार्टी को वो रकम अपने रजिस्टर्ड बैंक खाते में जमा करनी होती है. अगर पार्टी ऐसा नहीं करती है तो बॉन्ड रद्द हो जाता है.

चुनावी बॉन्ड से किस पार्टी को मिला है कितना पैसा?

एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2018 से जनवरी 2024 के बीच कुल 28,030 इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए गए हैं, जिनकी कुल कीमत करीब 16,518 करोड़ रुपये है. अगर हालिया आंकड़ों को देखें तो बीजेपी को साल 2021-22 में 614 करोड़ रुपये और 2022-23 में 719 करोड़ रुपये का चंदा मिला है. वहीं कांग्रेस को 2021-22 में 95 करोड़ रुपये और 2022-23 में महज 79 करोड़ रुपये का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड से मिला है. सीपीएम को 2021-22 में करीब 10 करोड़ रुपये मिले थे, लेकिन 2022-23 में उसे महज 6 करोड़ रुपये का ही चंदा मिला. 2022-23 में आम आदमी पार्टी को करीब 37 करोड़ रुपये मिले थे. ये सब वो आंकड़े हैं, जहां चंदे की रकम 20 हजार रुपये से अधिक की है. उससे कम के चंदे का तो अभी कोई हिसाब ही नहीं है. अंदाजा लगा लीजिए कि राजनीतिक दलों के पास आखिर पैसा आ कहां से रहा है और कितना आ रहा है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया है. यानी कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने मोदी सरकार के लाए फैसले को पूरी तरह से रद्द कर दिया है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि चुनावी बॉन्ड जारी करने में जो गोपनीयता बरती जाती है, वो सूचना के अधिकार कानून और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, लिहाजा इसे रद्द किया जाता है और अब से स्टेट बैंक कोई भी नया चुनावी बॉन्ड जारी नहीं कर सकता है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक को कहा है कि पिछले पांच साल में बैंक ने कितने चुनावी बॉन्ड जारी किए हैं. किस पार्टी को कितने बॉन्ड जारी किए हैं, किस पार्टी को कितने पैसे का बॉन्ड जारी किया है, ये सब जानकारी तीन सप्ताह के अंदर इलेक्शन कमीशन को दी जाए. सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्शन कमीशन को भी कहा है कि जब उसे सारी जानकारी मिल जाए तो उस जानकारी को इलेक्शन कमीशन की वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाए.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आम आदमी को फायदा क्या?

चुनावी बॉन्ड पर आए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से आम आदमी पर कोई सीधा असर नहीं होगा, लेकिन इतना जरूर होगा कि अब आम आदमी को भी इस बात का पता चल जाएगा कि देश की राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वाले लोग कौन हैं. अब अगर किसी ने बीजेपी या कांग्रेस या फिर सपा-बसपा, आम आदमी पार्टी किसी को भी चंदा दिया है तो उसका नाम सबको पता चल जाएगा. अभी तक होता ये था कि एक हजार रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक का चंदा लोग अपने-अपने पसंद की पार्टी को दे देते थे, लेकिन कोई जान नहीं पाता था कि पार्टियों को चंदा दिया किसने है और उसने जो पैसा दिया है, वो कितना है. लेकिन अब पिछले पांच साल मे जिन भी लोगों ने राजनीतिक पार्टियों को चंदा दिया है, उन सबके नाम सार्वजनिक होंगे और सबको पता होगा कि किसने किस पार्टी को कितना पैसा दिया है.

कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव में महज चंद महीने बचे हैं. लोकसभा चुनाव में हर पार्टी बेतहाशा खर्च करती है, उसकी आमदनी का जरिया यही चुनावी बॉन्ड हुआ करते थे, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को ही रद्द कर दिया तो आने वाले दिनों में सियासी पार्टियों को पैसे की परेशानी हो सकती है. खास तौर से ये परेशानी छोटी पार्टियों को होगी, जिन्हें छोटी-छोटी रकम चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदे में मिलती थी. बाकी बीजेपी और कांग्रेस जैसी पार्टियों पर इसका जो असर होगा, वो कुछ दिनों के बाद ही होगा, क्योंकि अभी तक बीजेपी या कांग्रेस या फिर कोई भी पार्टी जो इस चुनावी बॉन्ड से करोड़ों रुपये जुटा चुकी है, उसकी रिकवरी के लिए तो सुप्रीम कोर्ट ने कोई आदेश नहीं दिया है. 

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